- तीन बाघ एक साथ मारने पर हुआ हृदय परिवर्तन
- पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह के जीवन की रोचक दास्तान
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उल्लेखनीय है कि राजाशाही खत्म होने के बाद आबादी का दबाव जंगलों पर बढ़ता गया, फलस्वरूप जंगल सिकुड़ते चले गये और इसी के साथ जंगल की शान कहे जाने वाले वनराज भी गायब होते गये। वन्य प्रांणी संरक्षण अधिनियम लागू होने के पूर्व तक जंगल में बाघ का शिकार करना बड़े ही गर्व की बात मानी जाती रही है। पन्ना राजघराने के सदस्य पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह जब महज नौ वर्ष के थे, तब उन्होंने एक बाघ को मार गिराया था। पांच साल बाद जब लोकेन्द्र सिंह 15 वर्ष के हुए तो उन्होंने सन् 1960 में पटोरी नामक स्थान पर तीन बाघों को एक साथ मौत की नींद सुला दिया। इस बाघ परिवार का सफाया करने के बाद 15 वर्ष के इस राजकुमार ने बड़े ही गर्व के साथ शिकार किये गये बाघों के पास बैठकर हांथ में बन्दूक लिए फोटो भी खिंचाई. लेकिन शिकार की इस घटना ने बालक लोकेन्द्र सिंह को विचलित कर दिया और उनकी जिन्दगी के नये अध्याय का श्रीगणेश हो गया।
शिकार के शौकीन रहे लोकेन्द्र सिंह का हृदय परिवर्तन होने पर उन्होंने यह कसम खा ली कि अब कभी बाघ का शिकार नहीं करूंगा। उन्होंने वन व पर्यावरण को सुरक्षा तथा बाघों के संरक्षण को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। इसी सोच के चलते लोकेन्द्र सिंह की पहल से पन्ना में सर्वप्रथम गंगऊ सेंचुरी बनी, बाद में 1981 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण हुआ। वर्ष 1994 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व बनाया गया. लेकिन टाइगर रिजर्व बनने के बाद भी यहां बाघों की दुनिया आबाद होने के बजाय सिमटती चली गई। हालत यहां तक जा पहुंची कि वर्ष 2009 में बाघों की यह धरती बाघ विहीन हो गई। पूरे देश व दुनिया में किरकिरी होने पर यहां बाघ पुर्नस्थापना योजना शुरू हुई, जिसके चमत्कारिक परिणाम देखने को मिले। अब पन्ना का यह जंगल बाघों से आबाद है, और यहां तीन दर्जन से अधिक नर व मादा बाघ विचरण कर रहे हैं।बाघ बचे भी तो रहेंगे कहां ?
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