Saturday, January 5, 2019

पर्यावरण संरक्षण के संवाहक बन रहे स्कूली बच्चे

  • अनुभूति कार्यक्रम में 130 स्कूली बच्चों ने सीखा प्रकृति का पाठ 
  • गंगऊ अभ्यारण्य के जंगल में वन्य प्राणियों को देख हुए रोमांचित 

जंगल भ्रमण के उपरान्त मन में उठे सवालों का जवाब पूंछते बच्चे। फोटो - अरुण सिंह 

 अरुण सिंह 

पन्ना। स्कूली बच्चों में वन एवं वन्य प्राणियों तथा पर्यावरण संरक्षण के प्रति अभिरुचि पैदा करने तथा उनमें जागरूकता लाने के लिये म.प्र. ईको पर्यटन विकास बोर्ड द्वारा अनुभूति कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस अनूठे कार्यक्रम के माध्यम से स्कूली बच्चे जंगल की निराली दुनिया से जहां रूबरू हो रहे हैं वहीं प्रकृति की पाठशाला में उसके विविध रूपों से भी परिचित हो रहे हैं। 

मालुम हो कि स्कूली बच्चों को ईको पर्यटन संदेश का प्रभावशाली संवाहक माना गया है, इसी अवधारणा पर अनुभूति कार्यक्रम की परिकल्पना की गई है। जिसके सफल क्रियान्वयन से बच्चों में प्रकृति को निकट से जाकर महसूस करने, जानने और समझने का जहां भाव पैदा हो रहा है वहीं वे पर्यावरण संरक्षण के लिये भी प्रेरित हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि पन्ना टाईगर रिजर्व के निकट स्थित डीएव्ही पब्लिक स्कूल मझगवां के 130 बच्चों को आज गंगऊ अभ्यारण्य के कटरिया, बड़ौर व उमरावन बीट का भ्रमण कराया गया। यहां के बेहद खूबसूरत और घने व समृद्ध वन क्षेत्र में पैदल भ्रमण करते बच्चों का उत्साह देखते ही बन रहा था। जंगल के विविध रूपों को निकट से देख उनके मन में जहां कौतूहल था वहीं अनेकों सवाल भी उठ रहे थे। भ्रमण के दौरान बच्चों ने चहचहाते विभिन्न प्रजातियों के रंग-बिरंगे पक्षियों का जहां दर्शन किया, वहीं चीतल, सियार और सांभर जैसे वन्यजीवों का भी दीदार किया। 

इस भ्रमण में बच्चों को वनराज के तो दर्शन नहीं हुये लेकिन वहां से कुछ ही देर पूर्व गुजर चुकी बाघिन टी-2 के पग मार्क जरूर देखने को मिले। कुछ ही देर पूर्व इस वन क्षेत्र में बाघिन मौजूद थी, यह जानकार बच्चे अत्यधिक रोमांचित हुये। मौके पर मौजूद वन परिक्षेत्राधिकारी गंगऊ अमर सिंह  ने प्रतिभागी बच्चों को बाघ के पग मार्क के संबंध में विस्तार से बताया। उन्हें यह जानकारी भी दी कि पग मार्क से कैसे पहचान की जाती है कि यह बाघ का है। अनुभूति कार्यक्रम में शामिल बच्चों को जंगल में पाये जाने वाले औषधीय पौधों सहित विभिन्न प्रजाति की वनस्पतियों और वृक्षों के बारे में भी बताया गया। प्रकृति की इस जीवन्त पाठशाला में बच्चों के जेहन में उठने वाले सवालों का वहां मौजूद वन अधिकारियों व  पर्यावरण विदों द्वारा समाधान भी किया गया।

बच्चों ने पूछे कठिन और रोचक सवाल



प्रतिभागी बच्चों को प्रमाण पत्र प्रदान करते अतिथिगण। 

जंगल में पैदल भ्रमण के बाद वहां गंगाझिरिया नामक सरम्य स्थल में प्रकृति की पाठशाला आयोजित हुई, जिसमें बच्चों ने अनेकों रोचक तथा कठिन सवाल पूछे। एक बच्चे ने सवाल किया कि पन्ना टाईगर रिजर्व से बाघों का खात्मा कैसे हुआ था और फिर उन्हें यहां किस तरह से आबाद किया गया। इस पेचीदे सवाल का जवाब देते हुये बच्चों को बताया गया कि वर्ष 2009 में शिकार व अन्य कारणों से पन्ना टाईगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था। यहां पर बाघों का संसार फिर से आबाद करने के लिये बाघ पुनस्र्थापना योजना शुरू की गई और संस्थापक बाघों के रूप में कान्हा, बांधवगढ़ व पेंच से नर व मादा बाघ पन्ना लाये गये। बेहतर टीम वर्क व चाक चौबन्द सुरक्षा इंतजाम के साथ स्थानीय जनमानस के सहयोग से योजना सफल हुई और बाघ विहीन पन्ना टाईगर रिजर्व पुन: बाघों से आबाद हो गया। 

जन्म लेने वाले सभी बाघ शावक क्यों नहीं बच पाते? यहां के बाघों का नामकरण किस आधार पर और कैसे किया जाता है? बाघों के संरक्षण को इतना अधिक महत्व क्यों दिया जाता है, जैसे अनेकों सवाल बच्चों ने किये, जिनका जवाब दिया जाकर उन्हें संतुष्ट किया गया। इस मौके पर प्रतिभागी बच्चों को अतिथियों द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किये गये। प्रकृति की इस पाठशाला में स्कूली बच्चों के साथ जिला पंचायत अध्यक्ष रविराज सिंह  यादव, सहायक संचालक मड़ला प्रतिभा शुक्ला, वन परिक्षेत्र अधिकारी अमर सिंह , प्रदीप द्विवेदी, अनिल जैन, देवीदत्त चतुर्वेदी, डीएव्ही पब्लिक स्कूल के प्राचार्य, शिक्षक सहित वन कर्मचारी मौजूद रहे।

जंगल में ही सभी ने किया सुस्वाद भोजन


जंगल में ही साथ बैठकर भोजन करते प्रतिभागी बच्चे व अन्य। 

अनुभूति कार्यक्रम के अंतिम चरण में प्रतिभागी 130 बच्चों सहित वहां मौजूद वन अधिकारियों, कर्मचारियों व डीएव्ही पब्लिक स्कूल के शिक्षकों सहित अन्य अतिथियों ने सुस्वाद भोजन का लुत्फ लिया। गंगाझिरिया के जंगल में एक साथ बैठकर पत्तलों में परोसे गये भोजन को बच्चों ने बड़े ही चाव से खाया। 

यहां की आबोहवा और परिवेश बच्चों को अत्यधिक सुहानी लग रही थी, जिससे वे बेहद उत्साहित और प्रसन्न थे। वन परिक्षेत्राधिकारी अमर सिंह  ने बताया कि यहां प्राकृतिक जल श्रोत से हर समय पानी रिसकर आता रहता है, जिससे गॢमयों में भी यहां शीतलता का अहसास होता है। पानी की उपलब्धता होने के चलते इस स्थल पर अनेकों वन्य प्राणी भी आते हैं। यह स्थल गंगाझिरिया के नाम से जाना जाता है।
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