Sunday, January 6, 2019

पन्ना के विकास की संभावनाओं को कब लगेंगे पंख

  • विकास के रंगीन सपने अभी भी हैं हकीकत से बहुत दूर 
  • शिक्षा, स्वास्थ्य व पर्यटन विकास हेतु हो ठोस एवं प्रभावी पहल 


मंदिरों के शहर पन्ना का विहंगम द्रश्य। 


अरुण सिंह, पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले में विकास की विपुल संभावनाएं मौजूद हैं, जन प्रतिनिधियों द्वारा जिले के रहवासियों को विकास के रंगीन सपने भी दिखाए जाते हैं . लेकिन वे आज तक हकीकत नहीं बन सके. बड़े - बड़े वायदे करके तथा झूठे सपने दिखाकर चुनाव जीतने वाले नेता जनता को उसके हाल में छोड़ अपने विकास में जुट जाते हैं. नतीजतन विकास की अनगिनत संभावनाओं के रहते हुए भी पन्ना जिले की हालत जस की तस बनी हुई है. सक्षम नेतृत्व व जागरूकता के अभाव में पन्ना जिला आज भी पिछड़ा और उपेक्षित है. बड़े उद्योगों के नाम पर यहां सिर्फ एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना है जिसके ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. यहां के समग्र विकास व खुशहाली के लिए जो पहल व प्रयास होने चाहिए थे वे नहीं हो सके. यदि शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सार्थक और गंभीर प्रयास किये जाएं तो यह पिछड़ा इलाका भी प्रगति और खुशहाली की ओर अग्रसर हो सकता है.
मालुम हो कि वन व खनिज संपदा से समृद्ध पन्ना जिले की वैभवपूर्ण सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत रही है. इस अनूठी विरासत को सहेजने व संरक्षण से ही खुशहाली का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. लेकिन दुर्भाग्य से किसी भी राजनीतिक दल व सरकारों ने पन्ना जिले के समग्र विकास व यहां के लोगों की खुशहाली और समृद्धि के लिए योजना बनाने में कोई रूचि नहीं ली. परिणाम यह हुआ कि आजादी के 70 साल बाद भी यह जिला जस का तस है. अकूत वन संपदा व बेशकीमती रत्न हीरा की उपलब्धता के बावजूद यहां के वाशिंदे मूलभूत और बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. यहां की खनिज व वन संपदा पर कुछ मुट्ठी भर लोगों का कब्जा है जबकि अधिसंख्य आबादी गरीब और फटेहाल है. इनकी हैसियत व पहचान कुछ भी नहीं है, अपना व परिवार का भरण पोषण करने के लिए खदानों में हाड़तोड़ मेहनत करते हैं और सिलीकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी की गिरफ्त में आकर असमय काल कवलित हो जाते हैं.



पन्ना के समृद्ध  वन सम्पदा का खूबसूरत नजारा। 


यह कितनी विचित्र बात है कि जो लोग यहां की वन व खनिज संपदा के असली हकदार हैं, उन्हें ही उनके हक से बेदखल कर दिया गया है. उनकी नासमझी, अशिक्षा और भोलेपन का फायदा उठाकर उंगलियों में गिने जा सकने वाले लोग इस जिले की संपदा को लूट रहे हैं और शासन व प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है. अब आगे और इस तरह से लूट की इजाजत नहीं दी जा सकती अन्यथा यहां की प्राकृतिक सांस्कृतिक अस्मिता पर संकट के बादल और गहरा जायेंगे. पन्ना जिले की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए यहां के समग्र विकास का मॉडल एक समृद्ध प्राकृतिक सांस्कृतिक तीर्थ व परम्परागत वन क्षेत्र के रूप में ही हो सकता है. इसके लिए अलग समझ, आस्था व ईमानदारी की जरूरत है. मौजूदा समय यहां पर प्राकृतिक संसाधनों की जिस तरह से खुली लूट हो रही है उससे हर कोई वाकिफ है. व्यावसायिक निगाहें पन्ना जिले की जमीन, पानी, जैव विविधता को लूटने के लिए टिकी हुई हैं. कुछ प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग भी इस जिले में पैर जमाने की फिराक में हैं. इन्होंने यहां देखा कि इस जिले में जमीन बहुत सस्ती है और जमीन के भीतर अकूत खजाना है, जिसका दोहन आसानी से किया जा सकता है. उन्होंने यह विशेषता भी देखी कि प्रदूषण और कचरा फैलाने पर भी यहां कोई बोलने वाला नहीं है क्यों कि अधिसंख्य आबादी गरीब - गुरबा और असहाय है. इन्हीं गरीबों की जमीनें हथियाकर उन्हें भूमिहीन बनाने व दर - दर की ठोकरें खाने को मजबूर करने की साजिशें रची जा रही हैं. इस खतरनाक साजिश में सफेदपोश भी शामिल हैं. जिले के कई हिस्सों में सैकडों एकड़ जमीन पर व्यावसायिक घरानों ने कब्जा भी जमा लिया है.
संकट के इस दौर में यह समझना जरूरी हो गया है कि पन्ना जिले की समृद्धि का रास्ता प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और खनन से नहीं निकल सकता. जिले के विकास व यहां के वाशिंदों की खुशहाली के लिए समग्र योजना बनाने की महती आवश्यकता है, जिसके लिए सरकार व जनप्रतिनिधियों को विवश करना होगा. वनोपज व हस्त कौशल आधारित कुटीर उद्योग, स्थानीय जैव विविधता का सम्मान करने वाले सघन वन, चारागाह, जैविक खेती, ईको टूरिज्म व शिक्षा की समृद्धि से ही समग्र विकास का सटीक रास्ता निकल सकता है.

लड़नी  होगी अपने हक की लड़ाई 


शिक्षित बेरोजगार युवकों तथा नागरिकों को अब अपने हक की लड़ाई लडऩे की तैयारी दिखानी होगी. जनता के साथ छलावा करने वाले नेताओं तथा भृष्ट नौकरशाहों से विकास की उम्मीद करना नासमझी होगी. पन्ना जिले के हितों पर लगातार कुठाराघात हो रहा है. यहां की धरती में हीरा निकलता है लेकिन यहां   डायमण्ड पार्क  तक  नहीं  बनाया जा सका . शैक्षणिक संस्थानों के लिए यहां अनुकूल वातावरण व आवोहवा है. फिर भी यहां एक भी इंजीनियरिंग कॉलेज या अन्य उच्च शिक्षण संस्थान नहीं खुल सका है. मेडिकल सुविधा के नाम पर सिर्फ जिला चिकित्सालय है. जहां सुरक्षित प्रसव तक की सुविधा नहीं है. पर्यटन विकास की यहां पर सिर्फ बड़ी - बड़ी बातें होती हैं, ठोस पहल व प्रयास का नितान्त अभाव है. पर्यटन विकास के नाम पर आने वाला पैसा कहां खर्च हो जाता है पता ही नहीं चलता. पिछले दस सालों में धरमसागर तालाब के सौन्दर्यीकरण में करोडों रू. खर्च हुए फिर भी इस प्राचीन जलाशय की हालत बद्तर बनी हुई है. जनता यदि अभी भी नहीं चेती तो जिले के विकास का सपना महज सपना ही बना रहेगा.
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