- आवागमन के लिये सुगम मार्ग का नहीं हो सका निर्माण
- बारिश के चार माह टापू में तब्दील हो जाता है गाँव
पन्ना जिले का कुड़रा गांव जहाँ पहुँचने के लिए नहीं है सड़क मार्ग। |
अरुण सिंह
पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले में आज भी ऐसे अनेकों गाँव हैं जहां पहुँच पाना बेहद कठिन और दुश्कर है। इन ग्रामों तक आज भी सुगम आवागमन के लिये सड़क मार्ग का निर्माण नहीं हो सका है जिससे ग्रामीण विकास की मुख्यधारा से कटे हुये हैं। बुनियादी और आवागमन सुविधाओं से वंचित ग्रामों की फेहरिस्त में एक गाँव अजयगढ़ जनपद क्षेत्र का कुडऱा है जहां के रहवासियों की जिन्दगी कठिनाईयों और मुसीबतों की पर्याय बन चुकी है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले के अजयगढ़ जनपद क्षेत्र में आने वाली धरमपुर ग्राम पंचायत के राजस्व ग्राम कुडऱा के निवासी आज भी आवागमन की सुविधा के लिये तरस रहे हैं। वर्षों से ग्रामवासी कुडऱा से धरमपुर तक सुगम सड़क मार्ग के निर्माण की माँग करते आ रहे हैं लेकिन उनकी यह माँग आज तक पूरी नहीं हो सकी है।
जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 52 किमी. दूर अजयगढ़ जनपद की सबसे बड़ी पंचायत धरमपुर के अन्तर्गत आने वाले कुडरा गांव की आबादी तकरीबन 600 है।
धरमपुर तक तो पक्का सड़क मार्ग है तथा यात्री बसों का भी अवागमन होता है, लेकिन धरमपुर से कुडरा गांव तक 7 किमी. की दूरी तय करना आसान नहीं है। धरमपुर से कुडरा के लिए जो कच्चा मार्ग है, उस मार्ग से जाने पर रास्ते में जो परिद्रश्य और माहौल नजर आता है, उसे देख चंबल के बीहडों की याद ताजा हो जाती है। मिट्टी के ऊंचे टीलों के बीच से गुजरने वाले इस टेढ़े - मेढ़े कच्चे मार्ग पर यदा - कदा पैदल या साईकिल सवार ग्रामीण मिलते हैं, दूर - दूर तक और कुछ नजर नहीं आता।मुख्य मार्ग से 8 किमी दूर बसे इस गांव तक पहुचने में दर्जनों बरसाती नाले और ऊंचे नीचे टीलों सहित गहरी खईयों से गुजरना पड़ता है।
बारिश के दिनों में यह मार्ग नदी नालों में तब्दील हो जाने से संपूर्ण गांव टापू में तब्दील हो जाता है। ग्रामवासी बताते है कि बारिश के चार माह हमारे लिये काला पानी की सजा से कम नहीं होते, इन दिनों बीमार व्यक्ति को इलाज के लिये भी कहीं ले जाना नामुमकिन हो जाता है, जिससे अब तक बारिश के दिनों में इलाज के अभाव में सैकड़ों लोगों की असमय मौत हो चुकी है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी कुडऱा गांव को एक सड़क नसीब नहीं हो सकी जिसके कारण यहां के निवासी बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। बच्चे पढऩे नहीं जा पाते, किसान अपना माल बेंचने बाजार नहीं जा पाते और बीमार व्यक्ति को समय पर जरूरी चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती।
ग्रामीणों की असुविधा और परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, बुनियादी सुविधाओं के अभाव व सड़क मार्ग न होने के कारण इस गाँव के युवक कुंवारे ही रह जाते हैं। इस गांव में दूसरे गांव के लोग अपने बेटी या बेटे का विवाह नहीं करना चाहते, जिससे यहां का सामाजिक ताना बाना भी प्रभावित हो रहा है। लोग इस गाँव के पहाड़ी पथरीले मार्गों को देख कर ही डर जाते हैं और रिश्ता होने से पहले ही टूट जाता है।
गांव के लिए ऐसे बीहड़ नुमा रास्तों से होकर जाना पड़ता है। |
ग्रामीणों की असुविधा और परेशानी यहीं खत्म नहीं होती, बुनियादी सुविधाओं के अभाव व सड़क मार्ग न होने के कारण इस गाँव के युवक कुंवारे ही रह जाते हैं। इस गांव में दूसरे गांव के लोग अपने बेटी या बेटे का विवाह नहीं करना चाहते, जिससे यहां का सामाजिक ताना बाना भी प्रभावित हो रहा है। लोग इस गाँव के पहाड़ी पथरीले मार्गों को देख कर ही डर जाते हैं और रिश्ता होने से पहले ही टूट जाता है।
ऐसा नहीं कि यहां की बदहाली के बारे में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को जानकारी नहीं है। सैकड़ों बार यहां के निवासियों ने सामूहिक रूप से अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के दरवाजे खटखटाये, आवेदन-पत्र देकर अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से गांव तक सड़क बनवाये जाने की प्रार्थना की, पर उनकी फरियाद पर आज तक अमल नहीं किया गया जिससे आज भी कुडऱा गांव के लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।
रोड नहीं तो वोट नहीं का नारा बुलन्द करते हुये कुडऱा गाँव के लोगों ने अभी हाल ही में संपन्न हुये विधानसभा चुनाव में मतदान के बहिष्कार की घोषणा भी की थी जिस पर अधिकारियों की समझाईश पर ग्रामीण मतदान करने को इस शर्त पर तैयार हुये कि उनके गाँव तक सड़क मार्ग का निर्माण शीघ्र कराया जायेगा। विधानसभा चुनाव संपन्न हो गये और प्रदेश में नई सरकार ने कार्यभार भी संभाल लिया लेकिन कुडऱा गाँव के लोगों की समस्याओं से अधिकारियों ने फिर मुँह फेर लिया है जिससे ग्रामवासियों में आक्रोश है।
इस गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल और सड़क मार्ग का अभाव है. दुनिया से अलग - थलग पड़े तथा विकास से अछूते इस गांव के लोगों में आक्रोश तो है लेकिन वे बेवश और लाचार हैं. इन्द्रपाल सिंगरौल का कहना है कि हम चाहते हैं गांव की पेयजल समस्या दूर हो तथा सड़क बन जाय। अभी गांव में सिर्फ एक हैण्डपम्प है तथा खेत में बना एक निजी कुंआ है जिससे गांव का निस्तार होता है। इन्द्रपाल ने बताया कि वह 40 साल का हो गया लेकिन हमारी समस्या दूर करने का कोई प्रयास नहीं हुआ अब तो ऐसा लगता है कि इस गांव का भविष्य अंधकारमय है। आप लोगों ने इस गांव की सुध ली है तो एक उम्मीद जागी है कि शायद पानी और सड़क की समस्या दूर करने के लिए कोई पहल हो।
गांव में सिर्फ आठवीं कक्षा तक के लिए स्कूल है, इसलिए गांव के लड़के व लड़कियां आठवीं तक पढ़ाई कर लेते हैं, लेकिन आगे की पढ़ाई नहीं कर पाते। ग्रामवासी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं लेकिन मजबूरी ऐसी है कि चाहकर भी वे पढ़ा नहीं पाते। पक्की सड़क न होने से बारिश के मौसम में पैदल जाना मुश्किल हो जाता है। कुडरा से धरमपुर तक 7 किमी. लम्बे मार्ग पर सात नाले पड़ते हैं जिन्हें बारिश में पार करना कठिन हो जाता है। ठंड के मौसम में भी बच्चे जंगली रास्ते से होकर नहीं जा पाते, जिससे आगे की पढ़ाई थम जाती है। गांव के कुछ बच्चों ने साहस दिखाते हुए उच्च शिक्षा हासिल करने का प्रयास भी किया है, कई अन्य युवक भी शिक्षा हासिल करना चाहते हैं लेकिन हालात इतने विपरीत हैं कि उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाती।
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पेयजल और सड़क सबसे बड़ी समस्या
गांव की महिलाऐं पत्रकारों से अपनी समस्यायें बताते हुए। |
इस गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल और सड़क मार्ग का अभाव है. दुनिया से अलग - थलग पड़े तथा विकास से अछूते इस गांव के लोगों में आक्रोश तो है लेकिन वे बेवश और लाचार हैं. इन्द्रपाल सिंगरौल का कहना है कि हम चाहते हैं गांव की पेयजल समस्या दूर हो तथा सड़क बन जाय। अभी गांव में सिर्फ एक हैण्डपम्प है तथा खेत में बना एक निजी कुंआ है जिससे गांव का निस्तार होता है। इन्द्रपाल ने बताया कि वह 40 साल का हो गया लेकिन हमारी समस्या दूर करने का कोई प्रयास नहीं हुआ अब तो ऐसा लगता है कि इस गांव का भविष्य अंधकारमय है। आप लोगों ने इस गांव की सुध ली है तो एक उम्मीद जागी है कि शायद पानी और सड़क की समस्या दूर करने के लिए कोई पहल हो।
आठवीं के बाद नहीं पढ़ पाते बच्चे
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