- वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी को मिल रही बड़ी जवाबदारी
- माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के बनेंगे कुलपति
।।अरुण सिंह,पन्ना।।
दीपक तिवारी वरिष्ठ पत्रकार |
बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास और यहां की समस्याओं के निराकरण हेतु पिछले ढाई दशक से निरंतर कलम चलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी जी को उनके कदए योग्यता और क्षमता के अनुरूप बड़ी जवाबदारी सौंपी जा रही है। उन्हें माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नया कुलपति बनाया गया है। यह खबर सुनकर समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र के लोग विशेषकर पत्रकार आल्हादित हैं और गौरव का अनुभव कर रहे हैं। अपनी विशिष्ट लेखन क्षमता और लगन के चलते पत्रकारिता के क्षेत्र में आपने जो मुकाम हासिल किया है निश्चित ही नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए वह किसी प्रेरणा से कम नहीं है। आम जनता से जुड़ी समस्याओंए विकास की संभावनाओं तथा राजनीति पर आपका गंभीर लेखन हमेशा शासन व प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराता रहा है। मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी खबरों को कवर करने के लिए सैकड़ों किलोमीटर लंबा सफर तय करने व हर तरह की चुनौतियों का सामना करने को भी हमेशा तत्पर रहे हैं। यही वजह है कि दीपक तिवारी भीड़ से अलहदा अपनी एक अलग पहचान बनाने में न सिर्फ कामयाब हुए अपितु लोगों का भरोसा और विश्वास भी अर्जित किया है। प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहकर पत्रकारिता करने वाले तिवारी जी का पन्ना जिले से भी नाता रहा है उन्होंने यहां आकर आदिवासी बहुल कल्दा पठार की समस्याओं तथा वहां के आदिवासियों की जिंदगी पर जहां बेहतरीन स्टोरी की हैं वहीं पन्ना की रत्नगर्भा धरती से निकलने वाले बेशकीमती हीरो के काले कारोबार पर भी अपनी प्रखर लेखनी से सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया है। मुझे प्रसन्नता है कि इन अवसरों पर मैं भी तिवारी जी के साथ रहा और नवभारत के लिए कवरेज किया।
यह तकरीबन डेढ़ दशक पुरानी बात है जब दीपक तिवारी जी पन्ना की उथली हीरा खदानों से निकलने वाले हीरो के काले कारोबार पर रिपोर्टिंग के लिए पन्ना आए हुए थे। उसी समय मेरी मुलाकात आपसे हुई और कुछ देर की बातचीत में ही मैं उनसे इतना प्रभावित हुआ कि हीरा खदानों की स्टोरी करने उनके साथ जाने को तैयार हो गया। उस समय मैं पन्ना में जिला ब्यूरो प्रमुख के रूप में कार्य कर रहा था तथा संजय तिवारी मंटु मेरे सहयोगी फोटोग्राफर थे। हम तीनो लोग क्षेत्र की उथली हीरा खदान क्षेत्र में पहुंचे उस समय इस इलाके में कई डकैत गिरोह भी सक्रिय थे। जिसे दृष्टिगत रखते हुए ब्रजपुर थाना में जाकर हमने थाना प्रभारी को अवगत कराया कि हम हीरा खदानों का कवरेज करना चाहते हैं। थाना प्रभारी ने हम लोगों के साथ एक राइफल धारी आरक्षक को भेज दिया। वृजपुर के निकट ही बृहस्पति कुंड क्षेत्र में चलने वाली हीरा खदानों को कवर करने जब हम पहुंचे तो सैकड़ों फीट नीचे कुंड में बड़ी संख्या में लोग खदानों में काम करते हुए दिखाई दिए। हम लोग नीचे उतर कर काम करने वाले मजदूरों से बातचीत कर पाते इसके पूर्व ही उस आरक्षक ने ऊपर से ही फायर कर दिया जिसकी आवाज पूरे इलाके में गूंज उठी। राइफल की आवाज सुनकर सारे मजदूर वहां से नौ दो ग्यारह हो गए। फलस्वरुप सिर्फ खदानें देखने को मिली कोई मजदूर वहां बातचीत के लिए नहीं मिला। बाद में पता चला कि यहां की खदाने पुलिस की सह पर ही चलती है। हम लोग हकीकत न जान सके इसलिए उस आरक्षक ने फायर कर मजदूरों को भागने का संकेत दिया था।
जब दीपक तिवारी को बनाया हीरा व्यापारी
उथली हीरा खदानों का कवरेज अधूरा रह जाने पर हमने उस आरक्षक को थाने में छोड़ा और कवरेज के लिए नई योजना बनाई। इलाके में हीरो की चोरी से कैसे खरीद.फरोख्त होती है यह जानने के लिए तिवारी जी को हीरा व्यापारी का रोल अदा करने के लिए कहा जिसके लिए वे तैयार भी हो गए ।अब हम लोग अपनी गाड़ी से बृजपुर से कुछ ही दूर स्थित बडगड़ी गांव की एक दुकान पर पहुंचे। सड़क किनारे स्थित इस दुकान में चाय नाश्ता करते हुए दुकानदार से हीरो के संबंध में चर्चा की और तिवारी जी की ओर इशारा करते हुए उसे बताया कि यह एक बड़े हीरा व्यापारी हैं और हीरा खरीदना चाहते हैं। दुकानदार को भी भरोसा हो गया और उसने तुरंत एक युवक को वहां बुलवाया जिसके पास हीरे थे । उस युवक ने अपनी जेब से कई हीरे निकालकर दिखाएं जिन्हें देख तिवारी जी भी हैरत में पड़ गए। उस युवक से काफी देर तक चर्चा हुई तथा हीरो की कीमत के संबंध में मोलभाव भी किया गया फिर पैसों की व्यवस्था कर वापस आने की बात कहकर हम लोग पन्ना आ गए। इस रोमांचक यात्रा को दीपक तिवारी जी ने बड़े ही प्रभावी अंदाज में लिखा। अंग्रेजी पत्रिका द वीक में कवर स्टोरी द ग्रेट डायमंड लूट प्रकाशित हुई जिससे प्रशासन में हड़कंप मच गया।
कल्दा पठार की यात्रा भी रही अविस्मरणीय
पन्ना जिले के आदिवासी बहुल दुर्गम इलाके कल्दा पठार की यात्रा भी कम रोचक नहीं है। उस समय डॉक्टर रविंद्र पस्तोर पन्ना कलेक्टर थे और अपने अभिनव प्रयोगों व कार्यों के लिए प्रदेश स्तर पर चर्चा में बने रहते थे। कल्दा पठार चूंकि जंगली क्षेत्र है इसलिए वहां वन्य प्राणियों की बहुलता के कारण खेती किसानी कर पाना बेहद कठिन था। इस समस्या से निपटने के लिए डीपीआईपी द्वारा खेतों के चारों ओर पत्थर की सुरक्षा दीवार बनाने की योजना बनाई गई थीए जिसे कार्य रूप में भी परणित किया गया। यह सुरक्षा दीवार भी प्रदेश स्तर पर चर्चित हुई जिसे कवर करने दीपक तिवारी जी कल्दा आए हुए थे। कल्दा पठार के लोगों की जिंदगी को निकट से देखने व समझने के लिए हम लोग पठार में ही स्थित वन विभाग के श्याम गिरी स्थित रेस्ट हाउस में रात्रि रुके। इस प्रवास में डॉक्टर रविंद्र पस्तोर व डीपीआईपी के जिला समन्वयक डीपी सिंह भी थे। कल्दा पठार की यह स्टोरी भी द वीक में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी तथा स्थानीय स्तर पर मेरे द्वारा नव भारत में कल्दा की फसल सुरक्षा दीवार पर केंद्रित स्टोरी लिखी गई थी। इन अवसरों पर तिवारी जी के साथ बहुत कुछ सीखने को मिला। तकरीबन डेढ़ दशक बाद तिवारी जी के नई भूमिका में आने की खबर सुनकर पुरानी यादें तरोताजा हो गई और यह संस्मरण लिख डाला। निश्चित ही तिवारी जी की इस भूमिका से बुंदेलखंड अंचल के पत्रकारों को नई ऊर्जा और प्रेरणा मिलेगीए जिसका लाभ इस पिछड़े क्षेत्र को मिलेगा।
यह तकरीबन डेढ़ दशक पुरानी बात है जब दीपक तिवारी जी पन्ना की उथली हीरा खदानों से निकलने वाले हीरो के काले कारोबार पर रिपोर्टिंग के लिए पन्ना आए हुए थे। उसी समय मेरी मुलाकात आपसे हुई और कुछ देर की बातचीत में ही मैं उनसे इतना प्रभावित हुआ कि हीरा खदानों की स्टोरी करने उनके साथ जाने को तैयार हो गया। उस समय मैं पन्ना में जिला ब्यूरो प्रमुख के रूप में कार्य कर रहा था तथा संजय तिवारी मंटु मेरे सहयोगी फोटोग्राफर थे। हम तीनो लोग क्षेत्र की उथली हीरा खदान क्षेत्र में पहुंचे उस समय इस इलाके में कई डकैत गिरोह भी सक्रिय थे। जिसे दृष्टिगत रखते हुए ब्रजपुर थाना में जाकर हमने थाना प्रभारी को अवगत कराया कि हम हीरा खदानों का कवरेज करना चाहते हैं। थाना प्रभारी ने हम लोगों के साथ एक राइफल धारी आरक्षक को भेज दिया। वृजपुर के निकट ही बृहस्पति कुंड क्षेत्र में चलने वाली हीरा खदानों को कवर करने जब हम पहुंचे तो सैकड़ों फीट नीचे कुंड में बड़ी संख्या में लोग खदानों में काम करते हुए दिखाई दिए। हम लोग नीचे उतर कर काम करने वाले मजदूरों से बातचीत कर पाते इसके पूर्व ही उस आरक्षक ने ऊपर से ही फायर कर दिया जिसकी आवाज पूरे इलाके में गूंज उठी। राइफल की आवाज सुनकर सारे मजदूर वहां से नौ दो ग्यारह हो गए। फलस्वरुप सिर्फ खदानें देखने को मिली कोई मजदूर वहां बातचीत के लिए नहीं मिला। बाद में पता चला कि यहां की खदाने पुलिस की सह पर ही चलती है। हम लोग हकीकत न जान सके इसलिए उस आरक्षक ने फायर कर मजदूरों को भागने का संकेत दिया था।
जब दीपक तिवारी को बनाया हीरा व्यापारी
उथली हीरा खदानों का कवरेज अधूरा रह जाने पर हमने उस आरक्षक को थाने में छोड़ा और कवरेज के लिए नई योजना बनाई। इलाके में हीरो की चोरी से कैसे खरीद.फरोख्त होती है यह जानने के लिए तिवारी जी को हीरा व्यापारी का रोल अदा करने के लिए कहा जिसके लिए वे तैयार भी हो गए ।अब हम लोग अपनी गाड़ी से बृजपुर से कुछ ही दूर स्थित बडगड़ी गांव की एक दुकान पर पहुंचे। सड़क किनारे स्थित इस दुकान में चाय नाश्ता करते हुए दुकानदार से हीरो के संबंध में चर्चा की और तिवारी जी की ओर इशारा करते हुए उसे बताया कि यह एक बड़े हीरा व्यापारी हैं और हीरा खरीदना चाहते हैं। दुकानदार को भी भरोसा हो गया और उसने तुरंत एक युवक को वहां बुलवाया जिसके पास हीरे थे । उस युवक ने अपनी जेब से कई हीरे निकालकर दिखाएं जिन्हें देख तिवारी जी भी हैरत में पड़ गए। उस युवक से काफी देर तक चर्चा हुई तथा हीरो की कीमत के संबंध में मोलभाव भी किया गया फिर पैसों की व्यवस्था कर वापस आने की बात कहकर हम लोग पन्ना आ गए। इस रोमांचक यात्रा को दीपक तिवारी जी ने बड़े ही प्रभावी अंदाज में लिखा। अंग्रेजी पत्रिका द वीक में कवर स्टोरी द ग्रेट डायमंड लूट प्रकाशित हुई जिससे प्रशासन में हड़कंप मच गया।
कल्दा पठार की यात्रा भी रही अविस्मरणीय
पन्ना जिले के आदिवासी बहुल दुर्गम इलाके कल्दा पठार की यात्रा भी कम रोचक नहीं है। उस समय डॉक्टर रविंद्र पस्तोर पन्ना कलेक्टर थे और अपने अभिनव प्रयोगों व कार्यों के लिए प्रदेश स्तर पर चर्चा में बने रहते थे। कल्दा पठार चूंकि जंगली क्षेत्र है इसलिए वहां वन्य प्राणियों की बहुलता के कारण खेती किसानी कर पाना बेहद कठिन था। इस समस्या से निपटने के लिए डीपीआईपी द्वारा खेतों के चारों ओर पत्थर की सुरक्षा दीवार बनाने की योजना बनाई गई थीए जिसे कार्य रूप में भी परणित किया गया। यह सुरक्षा दीवार भी प्रदेश स्तर पर चर्चित हुई जिसे कवर करने दीपक तिवारी जी कल्दा आए हुए थे। कल्दा पठार के लोगों की जिंदगी को निकट से देखने व समझने के लिए हम लोग पठार में ही स्थित वन विभाग के श्याम गिरी स्थित रेस्ट हाउस में रात्रि रुके। इस प्रवास में डॉक्टर रविंद्र पस्तोर व डीपीआईपी के जिला समन्वयक डीपी सिंह भी थे। कल्दा पठार की यह स्टोरी भी द वीक में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी तथा स्थानीय स्तर पर मेरे द्वारा नव भारत में कल्दा की फसल सुरक्षा दीवार पर केंद्रित स्टोरी लिखी गई थी। इन अवसरों पर तिवारी जी के साथ बहुत कुछ सीखने को मिला। तकरीबन डेढ़ दशक बाद तिवारी जी के नई भूमिका में आने की खबर सुनकर पुरानी यादें तरोताजा हो गई और यह संस्मरण लिख डाला। निश्चित ही तिवारी जी की इस भूमिका से बुंदेलखंड अंचल के पत्रकारों को नई ऊर्जा और प्रेरणा मिलेगीए जिसका लाभ इस पिछड़े क्षेत्र को मिलेगा।
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