Wednesday, February 27, 2019

जीर्ण - शीर्ण हो चुका है महेबा का ऐतिहासिक किला

  • पुरातत्व विभाग भी इस प्राचीन धरोहर के प्रति उदासीन 
  • किले के निकट स्थित मानसरोवर तालाब की दशा दयनीय


पन्ना जिले के महेबा गांव में स्थित राजा मल्लार के प्राचीन किले का प्रवेश द्वार

।।  अरुण सिंह,पन्ना ।।   

बुन्देलखण्ड अंचल के पन्ना जिले को प्रकृति ने जहां अनमोल उपहारों व सौगातों से खूबसूरती प्रदान की है, वहीं यह जिला प्राचीन भव्य मंदिरों, ऐतिहासिक इमारतों व किलों तथा राजाशाही जमाने की हवेलियों की मौजूदगी के चलते हर किसी को सहज ही अपनी ओर आकृष्ट करता है. जिले के ग्रामीण अंचलों में ऐसे अनेकों स्थल हैं जहां पुरा संपदा बिखरी पड़ी है. प्राचीन हवेलियां व किले उपेक्षित और लावारिश हालत में हैं, जिनकी कोई देखरेख नहीं होती. फलस्वरूप इस जिले के अतीत की गौरव गाथा व इतिहास नष्ट हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिले के अजयगढ़ किले के बारे में तो हर कोई जानता है, लेकिन अजयगढ़ से ही ताल्लुक रखने वाला लगभग चार सौ वर्ष पुराना एक किला महेबा में भी है, जो पूरी तरह से उपेक्षित व बद्हाल स्थिति में है. जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 50 किमी. दूर अमानगंज - गुनौर मार्ग पर ग्राम पंचायत महेबा में यह प्राचीन किला स्थित है जो उपेक्षा और समुचित देखरेख के अभाव में खण्डहर में तब्दील हुआ जा रहा है. 

जिले की इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण व सुरक्षा की ओर न तो प्रशासन ध्यान दे रहा है और न ही पुरातत्व विभाग ने इस किले को बचाने की कोई पहल की है. इन हालातों के चलते ऐतिहासिक महत्व का यह प्राचीन और भव्य किला जमीदोज हुआ जा रहा है. यदि इस किले को बचाने के लिए कारगर पहल नहीं की गई तो आने वाले वर्षों में महेबा किले के सिर्फ अवशेष ही नजर आयेंगे, किले का आकार नष्ट हो जायेगा.

समुचित देखरेख व संरक्षण के अभाव में इस धरोहर की दुर्दशा का नजारा 

महेबा किले के बारे में बताया जाता है कि सन् 1600 के आसपास अजयगढ़ महाराज ने इस किले का निर्माण कराया था. शुरू में यह किला गढ़ी की शक्ल में था, लेकिन बाद में अजयगढ़ महाराज ने यह गढ़ी दासी पुत्र राजा मल्लारी को सौंप दिया. जिन्होंने गढ़ी को किले में परिवर्तित किया. इस प्राचीन किले का मुख्य प्रवेश द्वार 22 फिट ऊंचा है, जिसके अन्दर प्रवेश करने पर अब चारो तरफ झाड़ झंखाड़ नजर आते हैं. राजा मल्लारी के इस किले में राजस्थानी कलाकारी के दर्शन होते हैं. 

समुचित देखरेख न होने से यह किला खण्डहर हो चुका है लेकिन अभी भी इस किले की भव्यता देखते ही बनती है. महेबा का किला लगभग 5 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, इसके उत्तर में धनुषधारी महाराज की 10वीं शताब्दी की अद्भुत मूर्ति विराजमान है. इस किले के अन्दर 9वीं शताब्दी की अनेकों कलाकृतियां व पुरातात्विक महत्व की मूर्तियां थीं जो नष्ट हो रही हैं.
इस प्राचीन किले के पूर्व में 65 एकड़ का विशाल मानसरोवर तालाब है, जिसका निर्माण राजा मल्लारी द्वारा करवाया गया था. यह तालाब आज भी महेबा गांव के जीवन का आधार है. प्रशासनिक उदासीनता के चलते यह प्राचीन जलाशय अब अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. तालाब का तकरीबन 10 एकड़ क्षेत्र अतिक्रमण की गिरफ्त में आ चुका है तथा पुराने घाट जीर्ण - शीर्ण हो चुके हैं. 

तालाब की खुदाई व जीर्णाेद्वार न होने से इस विशाल जलाशय में मलबा पट गया है. गांव के बड़े बुजुर्गों का कहना है कि 10 से 15 फिट मलबा तालाब में जमा है, फलस्वरूप तालाब की जल धारण क्षमता अब आधी भी नहीं बची. मान सरोवर तालाब के कारण ही महेबा गांव में जल का स्तर बना रहता है जिससे कुंओं व हैण्ड पम्पों से पानी मिलता रहता है. तालाब का वजूद नष्ट हो जाने पर 8 - 9 हजार की आबादी वाले महेबा गांव में पानी के लिए त्राहि - त्राहि मच जायेगी.

किले में है देवी की रहस्यमयी प्रतिमा 




महेबा किले में जगह- जगह पुरा संपदा बिखरी पड़ी है, लेकिन इस किले के भीतर एक रहस्यमयी देवी प्रतिमा भी है जिसके बारे में तरह-तरह की किवदंतियां प्रचलित हैं. बताया जाता है कि इस देवी प्रतिमा को कोई भी व्यक्ति स्पर्श नहीं करता, यदि कोई धोखे से भी इस प्रतिमा को छू लेता है तो कुछ ही देर के बाद वह व्यक्ति तेज बुखार से पीडि़त हो जाता है. ऐसा क्यों होता है यह रहस्य है, इस रहस्य का राज कोई नहीं जानता. 

महेबा गांव के एक बुजुर्ग  ने बताया कि वे इस बात पर भरोसा नहीं करते थे, फलस्वरूप उन्होंने देवी प्रतिमा के रहस्य को परखने के लिए तीन बार प्रतिमा का स्पर्श किया. उन्होंने  बड़े ही विश्मय विमुग्ध होकर बताया कि हर बार उन्हें तेज बुखार आया, फलस्वरूप अब वे भी न सिर्फ विश्वास बल्कि भरोसा करते हैं कि इस देवी प्रतिमा में जरूर कोई राज है.
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