Wednesday, June 19, 2019

पन्ना में सड़क मार्ग के किनारे बाघ ने किया बैल का शिकार

  •   सुबह से दोपहर डेढ़ बजे तक वहीं झाड़ी के नीचे किया विश्राम
  •   सड़क मार्ग से गुजरने वाले सैकड़ों लोगों ने वनराज के किये दर्शन
  •   हाँथियों की मदद से दोपहर बाद वन अमले ने जंगल की ओर खदेड़ा


पन्ना टाईगर रिजर्व का नर बाघ पी-111


 अरुण सिंह,पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघ दर्शन अब इतना सहज और आसान हो गया है कि लोगों को सड़क मार्ग से गुजरते हुये भी वनराज के दीदार हो जाते हैं। पन्ना-अमानगंज मार्ग पर रमपुरा बैरियर के निकट मुख्य सड़क मार्ग से बमुश्किल 25 मीटर की दूरी पर बाघ पी-111 कई घण्टे तक लेन्टाना की झाडिय़ों के नीचे आराम फरमाता रहा। झाडिय़ों की घनी छाँव में पूरी बेफिक्री के साथ लेटे इस वनराज को सड़क मार्ग से गुजरते हुये देखा जा सकता था। पन्ना टाईगर रिजर्व के इस बाघ ने बीती रात यहीं पर बैल का शिकार किया और उसे भरपेट खाने के बाद बचे हुये किल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सड़क किनारे ही झाडिय़ों के नीचे छाँव में डेरा डाले रहा। मॉनीटरिंग दल द्वारा बाघ को वहां से हटाने का प्रयास जब विफल हो गया तो दोपहर लगभग डेढ़ बजे उसे दो हाँथियों की मदद से जंगल के भीतर अन्दर खदेड़ा गया। तब  तक सड़क मार्ग के किनारे मॉनीटरिंग  दल सहित वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता, सहायक संचालक आर.के. सक्सेना तथा रेंजर लालजी तिवारी पूरे समय मौजूद रहे।

 बाघ की निगरानी के लिये सड़क पर मौजूद वन अमला व अधिकारी ।

उल्लेखनीय है कि नर बाघ पी-111 बांधवगढ़ की बाघिन टी-1 की संतान है। बाघ पुनर्स्थापना  योजना के तहत इस बाघिन को 4 मार्च 2009 को पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया था। पन्ना की पटरानी के रूप में प्रसिद्ध हुई इस बाघिन ने बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाईगर रिजर्व को फिर से आबाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बाघिन टी. की मेटिंग  बाघ टी-3 के साथ होने के बाद 16 अप्रैल 2010 को रात्रि के समय धुंधवा सेहा में इस बाघिन ने पहली बार 4 शावकों को जन्म दिया था। उन्हीं शावकों में पहला बाघन पी-111 है जो मौजूदा समय 9 वर्ष का होकर पन्ना टाईगर रिजर्व का प्रमुख व सबसे विशालकाय नर बाघ है। लगभग 230 किग्रा वजन वाले इस शानदार बाघ को निकट से देखना बेहद रोमांचकारी अनुभव है, जिसे प्राप्त करने का अवसर बुद्धवार 19 जून  मुझे  मिला। मालुम कि  अपने जन्म के डेढ़ वर्ष बाद ही यह बाघ  अपनी माँ से पृथक होकर तालगाँव पठार पर अपना अलग साम्राज्य कायम किया तथा अपने पिता टी-3 के पूर्व इलाके पर कब्जा जमाया। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पन्ना टाईगर रिजर्व में जन्मे इस पहले बाघ का जन्म दिवस यहां पर हर साल 16 अप्रैल को बड़े ही धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है। केक काटकर बाघ का जन्म दिवस मनाने की यह अनूठी परम्परा पन्ना टाईगर रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति ने शुरू की थी जो अनवरत् जारी है।

ओवर ईटिंग  के कारण कर रहा था विश्राम


 हाँथी धूल फेंककर बाघ को झाड़ी के नीचे से हटाते हुये।
यह पहला अवसर है जब बाघ पी-111 मुख्य सड़क मार्ग के इतने निकट झाड़ी के नीचे लेटा रहा। इस रेडियो कॉलर बाघ की निगरानी करने वाले दल ने बाघ को अन्दर जंगल की तरफ करने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुये निगरानी दल ने इसकी जानकारी पार्क के वरिष्ठ अधिकारियों को दी। कई घण्टे तक बाघ जब वहां से नहीं उठा तो वन अमले को बाघ की सेहत को लेकर आशंका हुई तथा उनके जेहन में तरह-तरह के सवाल भी उठने लगे कि आखिर इतना शोर-शराबा होने के बावजूद बाघ अपनी जगह से उठ क्यों नहीं रहा? यह आशंका भी हुई कि कहीं किल में तो कोई गड़बड़ नहीं है, जिसे बाघ ने खाया है। इन सारी आशंकाओं का समाधान करने के लिये वन अधिकारियों ने हाँथियों की मदद से बाघ के निकट जाकर स्थिति का जायजा लेने का निर्णय लिया और दो प्रशिक्षित हाँथी मौके पर बुलाये गये।

हाँथी ने सूंड़ से धूल फेंका तो उठ खड़ा हुआ बाघ


दोपहर लगभग 1 बजे दोनों हाँथी झाडिय़ों के नीचे लेटे बाघ के निकट पहुँचे, फिर भी यह बाघ पूरी बेफिक्री से ऐसे लेटा रहा मानो उसके आस-पास कोई है ही नहीं। जब बाघ नहीं उठा तो महावत के संकेत पर हाँथी ने सूंड़ से धूल उठाकर बाघ के ऊपर उछाल दिया, हाँथी की इस गुस्ताखी से नाराज होकर जोरदार दहाड़ के साथ बाघ तेजी से उठ  खड़ा हुआ। मौके की नजाकत को समझते हुये प्रशिक्षित हाँथी तत्काल पीछे हटकर बाघ से दूर हो गया। कुछ ही मिनट के इस रोमांचक घनाक्रम के बाद सारी आशंकाओं का समाधान हो चुका था, वन अधिकारी भी आश्वस्त हो गये थे कि बाघ बिलकुल सामान्य स्थिति में है कोई समस्या नहीं है। मौके पर मौजूद वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि ओवर ईटिंग  के कारण भोजन को पचाने के लिये बाघ इतने लम्बे समय तक यहां लेटा रहा। इसके अलावा पास में ही पड़े बचे हुये किल की सुरक्षा के लिये भी बाघ वहां से हट नहीं रहा था, जो सामान्य और स्वाभाविक बात है।

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