Monday, June 24, 2019

बुन्देलखण्ड की जीवनरेखा अस्तित्व बचाने कर रही संघर्ष

  •   रेत कारोबारियों ने सदानीरा केन नदी को कर दिया है खोखला
  •   अप्रैल में ही रुक जाता है जल प्रवाह, कई जगह मैदान में हुई तब्दील
  •   केन की अधिकांश सहायक नदियां बन चुकी हैं बरसाती नाला




पन्ना जिले में पण्डवन के पास सूखी पड़ी केन नदी का दृश्य।

अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवनरेखा कही जाने वाली केन नदी को बीते एक दशक में ही रेत कारोबारियों ने इस कदर खोखला कर दिया है कि गर्मी शुरू होते ही मार्च और अप्रैल के महीने में इस सदानीरा नदी की जलधार टूट जाती है। लगभग 427 किमी लम्बी इस नदी के कई हिस्से गर्मी के मौसम में मैदान बन जाते हैं जहां धूल के बबन्डर उठते नजर आते हैं। अविरल बहने वाली स्वच्छ नदियों में शुमार केन की ऐसी दुर्दशा की कल्पना एक-डेढ़ दशक पूर्व शायद ही किसी ने की हो। चिन्ता की बात यह है कि हम अभी भी नहीं चेत रहे, केन नदी से भारी भरकम मशीनों द्वारा बड़े पैमाने पर रेत निकालकर उसका सीना छलनी करने में जुटे हुये हैं। जिससे यह बारहमासी नदी अब बरसाती बन रही है। रही सही कसर नदी के प्रवाह क्षेत्र में बन रहे बड़े बांध पूरी किये दे रहे हैं। इसका दुष्परिणाम केन नदी के तटवर्ती ग्रामों के रहवासियों को भोगना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि केन नदी के तटवर्ती 95 फीसदी ग्रामों के कुयें जल स्तर नीचे खिसकने के कारण जहां सूख चुके हैं, वहीं गर्मी के मौसम में हैण्डपम्पों से भी पानी निकलना बन्द हो जाता है। रेत के अधाधुन्ध उत्खनन से केन नदी का नैसॢगक प्रवाह बाधित होने तथा पानी की मात्रा कम होने से तटवर्ती ग्रामों के मछवारों, मल्लाहों, नदी किनारे खेती करने वाले किसानों की जीवनचर्या पर बुरा असर हुआ है। इतना ही नहीं जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध रही केन नदी में पाई जाने वाली वनस्पतियां जहां नष्ट हो रही हैं वहीं जीव-जन्तुओं और मछलियों की विभिन्न प्रजातियों के भी नष्ट होने का खतरा मंडराने लगा है। अपने अस्तित्व को बचाने के लिये बीते एक दशक से संघर्ष कर रही इस जीवनदायिनी नदी की पुकार सुनने को कोई तैयार नहीं है। लालची और संवेदनशील रेत कारोबारी तथा निहित स्वार्थों की पूर्ति में रत रहने वाले राजनेताओं व अधिकारियों की सांठगांठ से केन सहित उसकी सहायक नदियों का सुनियोजित तरीके से जिस तरह से गला घोंटा जा रहा है, यह आने वाले समय में भयावह साबित हो सकता है। यह कितनी हास्यास्पद बात है कि एक ओर प्रदेश सरकार द्वारा नदियों को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर 15 जून से रेत के उत्खनन पर प्रतिबन्ध के बावजूद केन नदी से बेरोकटोक रेत निकाली जा रही है। पूरी रात रेत से उफनाते तक भरे डम्फर गरजते हुये सड़कों से निकलते हैं, लेकिन जिम्मेदारों को यह दिखाई नहीं देता। रेत से भरे डम्फर जब सड़कों से गुजरते हैं तो उनसे पानी टपकता रहता है जो इस बात का सबूत है कि लोड हुई रेत नदी के प्रवाह क्षेत्र की है।

 केन नदी में होने वाले रेत के अवैध उत्खनन का नजारा। ( फाइल फोटो )


सरकार ने माना 40 नदियों की टूटी जलधार

प्रदेश सरकार के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल ने बदहाली की ओर अग्रसर हो चुकी नदियों को चिह्नित कर उनको पुनर्जीवन देने के कार्य में रूचि दिखाई है। श्री पटेल का मानना है कि बीते 15 साल में बातें तो खूब हुईं लेकिन किसी ने नदियों की चिन्ता नहीं की। अवैध उत्खनन की खुली टूट देकर नदियों का तंत्र ही समाप्त कर दिया गया। बेतहासा पेड़ काटने की वजह से जड़ों से रिसकर जो पानी नदियों में आता था, वह व्यवस्था खत्म हो गई। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने पहले चरण में प्रदेश की 40 नदियों को पुनर्जीवित करने का रोड मैप बनाया है। विभाग ने इस काम में समाज की सहभागिता को फोकस में रखने की रणनीति बनाई है। यह शुभ संकेत है कि देर से सही किन्तु सरकार ने नदियों को बचाने तथा उनके पुनर्जीवन पर रूचि दिखाई है, लेकिन सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि नदियों के नैसॢगक प्रवाह को बाधित करने वाली गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगे। अन्यथा नदियों को पुनर्जीवित करने की योजना का कोई मतलब नहीं रह जायेगा। भीषण जल संकट, सूखा और बाढ़ की विभीषिका से बचने व आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रखने के लिये हमें प्रकृति, पर्यावरण और नदियों का सम्मान करना सीखना होगा।

मिढ़ासन नदी के पुनर्जीवन में खर्च हुये 20 करोड़, हालात जस के तस


 पुनर्जीवन के नाम पर 20 करोड़ खर्च होने के बाद मिढ़ासन की हालत।

पन्ना जिले से प्रवाहित होने वाली केन नदी की सहायक नदियों में शुमार मिढ़ासन नदी को पुनर्जीवित करने के नाम पर 20 करोड़ रू. खर्च किये जा चुके हैं, फिर भी इस नदी की हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ गई है। पहले तो इस नदी में गर्मी के समय कहीं-कहीं गड्ढों में पानी दिख भी जाता था, लेकिन अब तो यह पूरी तरह सूखे मैदान में तब्दील हो जाती है। मालुम हो कि मिढ़ासन नदी को सदानीरा बनाने का संकल्प तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लिया था और 10 वर्ष पूर्व बड़े ही धूमधाम के साथ इस अभिनव योजना का शुभारंभ किया था लेकिन भ्रष्ट तंत्र ने योजना की हवा निकाल दी और पुनर्जीवन के नाम पर खर्च की गई राशि कहां और कैसे खर्च हुई, इस बात का आज तक खुलासा नहीं हो सका। मिढ़ासन नदी जस की तस रूखी-सूखी पड़ी है, सिर्फ बारिश होने पर ही यह नदी बहती नजर आती है। इस लिहाज से सदानीरा बनने के बजाय यह नदी बरसाती बनकर रह गई है। केन की ही सहायक पतने नदी अभी सूखे मैदान में तो तब्दील नहीं हुई, लेकिन नदी में हर तरफ गन्दगी और कचरे के ढेर नजर आते हैं। पवई के सुप्रसिद्ध कलेही माता मन्दिर के निकट से प्रवाहित होने वाली इस नदी को स्थानीय युवकों द्वारा अभियान चलाकर साफ सुथरा बनाने की प्रयास किया गया, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
किलकिला नदी। 

            गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है किलकिला                 


प्रणामी धर्मावलंबियों की गंगा कही जाने वाली किलकिला नदी समुचित देखरेख के अभाव और सतत उपेक्षा के चलते गन्दे नाले में तब्दील हो चुकी है। हालात ये हैं कि इस नदी का पानी आचमन तो दूर छूने लायक तक नहीं बचा। नदी के आस-पास भीषण दुर्गन्ध उठती है तथा इसमें जहां-तहां सुअर लोटते हुये नजर आते हैं। गौरतलब है कि पन्ना शहर के नालियों का गन्दा पानी इसी किलकिला नदी में जाकर मिलता है। दुर्गन्धयुक्त नालियों का गन्दा पानी इस नदी में मिलने से नदी का पानी विषाक्त और जहरीला हो गया है। जलकुम्भी ने नदी के प्रवाह क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया है, जिसके चलते पवित्र कही जाने वाली यह नदी गन्दगी और कचरे के ढेर में तब्दील हो चुकी है। किलकिला नदी के दोनों किनारों पर सब्जी की खेती होती है। सब्जी उगाने वाले कृषक खेतों में लगी सब्जी फसलों की ङ्क्षसचाई इसी नदी के जहरीले पानी से करते हैं, जिससे यहां उगने वाली सब्जी भी दूषित और जन स्वास्थ्य के लिये खतरनाक हो जाती है।
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दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर 

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