Friday, August 23, 2019

मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष के बन रहे हालात

  •  बीते 2 माह के दौरान तेंदुआ  दो बार कर चुका है हमला 
  •  टकराव रोकने समय रहते करने होंगे कारगर उपाय


मानव और वन्य प्राणियों के बीच होने वाले संघर्ष का द्रश्य। ( फाइल फोटो )

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष के हालात निर्मित हो रहे हैं। वन्य प्राणी जंगल से निकलकर आबादी क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं जिससे हिंसक टकराव की स्थिति निर्मित हुई है। जिले के अमानगंज क्षेत्र में ही बीते 2 माह के दौरान तेंदुआ द्वारा हमला किए जाने की दो घटनाएं हो चुकी हैं। ताजी घटना 22 अगस्त की है जिसने हर किसी को दहला कर रख दिया है। जंगल से निकलकर एक तेंदुआ सुबह अमानगंज कस्बा स्थित सरकारी रेस्ट हाउस में घुस आया जिसके हमले से 2 लोग जख्मी हुए इसके बाद का घटनाक्रम अत्यधिक भयावह और चिंताजनक है। दोपहर के समय पन्ना टाइगर रिजर्व के 4 हाथियों को लेकर रेस्क्यू दल व वन अमला मौके पर पहुंचा और तेंदुए को ट्रेंकुलाइज करने का प्रयास किया तो यह तेंदुआ बेहद खूंखार हो गया और असामान्य बर्ताव करते हुए हाथी के ऊपर हमला बोल दिया, जिससे हाथी में सवार वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता ट्रेंकुलाइज गन सहित हाथी से नीचे गिर गए। मौके पर 4 हाथियों की मौजूदगी के कारण वे तेंदुए के हमले से बाल - बाल बच गए हैं लेकिन हाथी से गिरने के कारण चोट आई है।

इसके पूर्व अमानगंज क्षेत्र में ही पगरा गांव में तेंदुआ ने 21 जून 19 को वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव गुप्ता सहित दो वन सुरक्षा श्रमिकों व एक ग्रामीण को घायल कर दिया था। इन घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात किस तरह से बिगड़ रहे हैं तथा टकराव की स्थितियां निर्मित हो रही हैं। यहां यह विचार करना जरूरी है कि आखिर इस तरह के हालात क्यों बने हैं कि वन्य प्राणी आबादी क्षेत्र में आने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण जंगल में इंसानी आबादी का लगातार बढ़ता जा रहा दबाव है जो वन्यजीवों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। बड़े पैमाने पर हो रही अवैध कटाई से जंगल सिमटते जा रहे हैं जिससे वन्यजीवों के प्राकृतिक अधिवास तथा भोजन की उपलब्धता में कमी हुई है, परिणाम स्वरूप वन्यजीव आबादी क्षेत्र में घुसपैठ करने लगे हैं। टकराव की दूसरी बड़ी वजह एक जंगल से दूसरे क्षेत्र के जंगल तक पहुंचने का मार्ग कॉरीडोर खत्म हो गया है, वहां आबादी बस गई है ।पूर्व में वन्य प्राणी इन क्षेत्रों को कॉरीडोर के रूप में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए उपयोग करते रहें हैं। वे अभी भी उन्हीं रास्तों का अनुकरण करते हैं नतीजतन टकराव की स्थितियां निर्मित होती है। वन व पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार मानव जनित अथवा प्राकृतिक परिस्थितियां वन्यजीवों को आक्रमण करने के लिए विवश करती हैं। अतीत में जब जंगल बहुतायत में थे और मानव आबादी कम थी तब मानव और वन्यजीव दोनों अपनी अपनी सीमाओं में सुरक्षित रहते रहे हैं, लेकिन मानव आबादी में हुई बेतहाशा वृद्धि से परिस्थितियां बदल गई हैं। वन क्षेत्र में मानवीय दबाव बढ़ने के साथ-साथ वनों की अंधाधुंध कटाई व अवैध उत्खनन का सिलसिला भी शुरू हुआ है जिसका परिणाम मानव और वन्यजीवों के बीच न खत्म होने वाला संघर्ष है जो सामने दिखाई दे रहा है।

मानव केंद्रित विकास की सोच खतरनाक


समस्या पर यदि गहराई से विचार करें तो पता चलेगा कि मानव केंद्रित विकास की सोच ही इन सारी समस्याओं की जननी है। अहंकार के वशीभूत होकर मानव अपने को सर्वोपरि मानता है जबकि प्रकृति की नजर में किसी के प्रति कोई दुराभाव नहीं है, सब बराबर हैं और सभी को सह अस्तित्व की भावना के साथ धरती में रहने का हक है। लेकिन मनुष्य की सर्वोपरि होने की सोच ने प्रकृति पर ही जीत हासिल करने की कोशिश शुरू की, नतीजतन प्राकृतिक ताना-बाना तहस-नहस हो गया और आपदाओं के रूप में वह प्रकट होने लगा। सोचने की बात है कि वन्यजीवों के आश्रय पर हमने कब्जा कर घर बना लिए और अब अगर वह हमारे घरों में आकर अपना हिस्सा मांगते हैं तो हमें उनकी  इस गुस्ताखी पर गुस्सा आता है। इस सब के बावजूद अभी भी वक्त है कि गंभीर होती जा रही इस समस्या का रचनात्मक समाधान निकाला जाए ताकि मानव और वन्यजीवों के बीच हो रहे टकराव को खत्म किया जा सके। ऐसे में संघर्ष टालने का सबसे बेहतर विकल्प है पर्यावरण के अनुकूल विकास यानि कि तुम भी रहो और हम भी रहें ताकि बिना किसी टकराव के जिंदगी की गाड़ी मजे से चलती रहे।
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