- मार्च 2009 में शुरू हुई थी पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना
- बीते 10 वर्षों में बाघों से आबाद हुआ पन्ना टाईगर रिजर्व
- उत्सव मनाने व कार्यक्रमों को लेकर आयोजित हुई बैठक
अरुण सिंह,पन्ना। बाघ पुनर्स्थापना योजना के 10 वर्ष पूरे होने पर पन्ना टाईगर रिजर्व में विविध कार्यक्रम आयोजित होंगे। पुनर्स्थापना योजना को यहां पर मिली उल्लेखनीय सफलता का उत्सव मनाने तथा बुन्देलखण्ड क्षेत्र की प्राकृतिक सम्पदा और बाघों की सुरक्षा व संरक्षण के लिये आम जनमानस में जागरूकता पैदा करने के लिये विविध कार्यक्रमों के आयोजन की योजना बनाई गई है। जिसकी तैयारी के लिये रविवार को क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व कार्यालय के सभाकक्ष में बैठक आयोजित हुई, जिसमें मुख्य वन संरखक एवं पदेन सदस्य सचिव म.प्र. राज्य जैव विविधता बोर्ड आर. श्रीनिवास मूर्ति की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। बाघ पुनर्स्थापना योजना को कामयाबी के शिखर तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व क्षेत्र संचालक श्री मूर्ति के कार्यकाल में ही पन्ना का गौरव वापस मिला है। बाघ पुनर्स्थापना के नायक इस वन अधिकारी को अब टाईगर मैन के नाम से भी जाना जाता है।
उल्लेखनीय है कि 10 वर्ष पूर्व पन्ना टाईगर रिजर्व का जंगल बाघ विहीन हो गया था। उस समय जब इस बात का खुलासा किया गया तो पन्ना सहित समूचे बुन्देलखण्ड के लोगों में हताशा और निराशा थी। पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों की सुरक्षा व प्रबन्धन को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही थी। ऐसी प्रतिकूल व विकट परिस्थितियों में शासन द्वारा आर. श्रीनिवास मूर्ति को पन्ना में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस तरह से पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना का श्री गणुश हुआ और योजना के तहत सबसे पहले दो बाघिन बांधवगढ़ व कान्हा से 3 एवं 6 मार्च 2009 को पन्ना लाई गईं। लेकिन जब दो बाघिन पन्ना पहुँचीं, उस समय तक यहां एक भी नर बाघ नहीं बचा था। ऐसी स्थिति में पेंच टाईगर रिजर्व से नर बाघ टी-3 को पन्ना लाया गया। विस्थापित बाघों की सफल निगरानी, अचूक सुरक्षा व्यवस्था और उत्कृष्ट प्रबन्धन के चलते 16 अप्रैल 2010 को बाघिन टी-1 ने धुंधवा सेहा में चार शावकों को जन्म देकर पन्ना को उसका खोया हुआ गौरव वापस प्रदान किया। इस दिन को यादगार बनाये रखने के लिये हर वर्ष 16 अप्रैल को प्रथम बाघ शावक का जन्म दिन यहां बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस अनूठी परम्परा की शुरूआत भी तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति ने वर्ष 2011 में की थी, जो अनवरत् जारी है।
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