Saturday, September 14, 2019

दुर्लभ वन्यजीव पैंगोलिन के अंगों सहित चिकित्सक गिरफ्तार

  •   एसटीएफ जबलपुर की टीम ने सूचना मिलने पर की कार्यवाही
  •   पैंगोलिन के शिकार व तस्करी से जुड़े हैं चिकित्सक के तार


 दुर्लभ वन्य जीव पैंगोलिन। (फाइल फोटो)

अरुण सिंह,पन्ना। घने जंगल व विभिन्न प्रजातियों के दुर्लभ वन्यजीवों के लिये प्रसिद्ध म.प्र. के पन्ना जिले में हर समय शिकारियों व तस्कारों की नजरें गड़ी रहती हैं। यहां के जंगलों में पाये जाने वाले संकटग्रस्त दुर्लभ वन्य प्राणी पैंगोलिन के अवैध शिकार व उसके अंगों की तस्करी के मामले में एसटीएफ जबलपुर की टीम ने जिला मुख्यालय पन्ना से एक झोलाछाप चिकित्सक को गिरफ्तार किया है। एसटीएफ की टीम ने इस कथित चिकित्सक के कब्जे से पैंगोलिन के  12 नग शल्क बरामद किये हैं।

गिरफ्तार आरोपी के साथ एसटीएफ जबलपुर की टीम।

मामले के संबंध में जानकारी देते हुये उत्तर वन मण्डल पन्ना के डीएफओं नरेश सिंह यादव ने आज बताया कि मुखबिर की सूचना मिलने पर जबलपुर एसटीएफ की टीम व वन अमले द्वारा संयुक्त रूप से कार्यवाही की गई है। विदित हो कि शुक्रवार 13 सितम्बर की रात एसटीएफ जबलपुर की टीम अचानक पन्ना पहुँची और डायमण्ड चौराहा जगात चौकी के पास दबिश देकर आरोपी चिकित्सक तपश राय को दबोच लिया। एसटीएफ की टीम आरोपी को लेकर सीधे डीएफओ उत्तर वन मण्डल पन्ना के कार्यालय में पहुँची और देर रात तक पूछताछ करती रही। ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि आरोपी से सघन पूछताछ करने पर पैंगोलिन के शिकार व तस्करी में लिप्त अन्य आरोपियों का भी खुलासा हो सकता है।

पैंगोलिन की 12 नग शल्क बरामद


 आरोपी से बरामद पैंगोलिन के 12 नग शल्क।
आरोपी झोलाछाप चिकित्सक तपश राय तनय गुरूपत राय के सब्जे से एसटीएफ की टीम ने संकटग्रस्त वन्यजीव पैंगोलिन के 12 स्केल(शल्क) सहित मोबाइल व एक मोटरसाइकिल बरामद की है। आरोपी चिकित्सक के खिलाफ वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9, 39, 49 एवं 51 के तहत मामला दर्ज किया गया है। डीएफओ उत्तर नरेश सिंह यादव ने बताया कि एसटीएफ जबलपुर की टीम में शैलेन्द्र कुमार (एएसआई), मनीष तिवारी, नीतेश दुबे, हर्षवर्धन तिवारी, दिलावर सिंह तथा निर्मल सिंह सभी आरक्षक शामिल थे। एसटीएफ टीम व वन अमले द्वारा पैंगोलिन के शिकार व तस्करी के इस सनसनीखेज मामले की गहराई के साथ  छानबीन की जा रही है।

संरक्षण अधिनियम की अनुसूची प्रथम में आता है पैंगोलिन

दुर्लभ वन्य प्राणी पैंगोलिन के शरीर शरीर पर बालों के गुच्छे(कैरेटाइन) सख्त होकर सेल में रूपांतरित हो जाते हैं और रक्षा कवच बनाते हैं। भारत में यह प्रजाति संरक्षित है, इसे वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची प्रथम में रखा गया है। यह बंगलादेश, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल, ताइवान, थाईलैण्ड और वियतनाम में राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय कानूनों से संरक्षित है। लगभग 100 सेमी. की लम्बाई वाला यह प्राणी खतरे का आभास होते ही अपने शरीर को गेंद की तरह गोल बनाकर निर्जीव की तरह पड़ा रहता है। इस शक्ल में पेंगोलिन ऐसा प्रतीत होता है मानो जमीन में भूरे या पीले रंग का कोई गोल पत्थर पड़ा है। वन अधिकारियों के मुताबिक पेंगोलिन का पूरा शरीर एक-दूसरे पर चढ़े हुये पीले भूरे रंग के शल्कों से ढँका रहता है। अत्यधिक कठोर ये शल्क पेंगोलिन के लिये रक्षा कवच साबित होते हैं। लभग 5 से 9 किग्रा. वजन वाले इस दुर्लभ प्राणी का शरीर सिर, गर्दन, धड़ व पूँछ में विभक्त रहता है। अत्यधिक चौकन्ना होकर धीमी चाल से जब पेंगोलिन चलता है तो उसकी पीठ ऊपर उठी रहती है। इस अनूठे वन्यजीव का उपयोग सेक्सुअल पावर बढ़ाने की दवाईयां बनाने में उपयोग होने के चलते तस्करों की नजर इस पर बनी रहती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक पेंगोलिन के अंगों की कीमत लाखों में होती है, अत्यधिक माँग के चलते यह वन्यजीवन विलुप्ति की कगार पर जा पहुँचा है।

अनोखा है भोजन करने का तरीका


पेंगोलिन एक रात्रिचर प्राणी है जिसका मुख्य आहार चीटियां, दीमक व उनके अण्डे हैं। इस विचित्र जीव का भोजन करने का तरीका भी अनोखा है। यह अपनी लगभग 30 सेमी. लम्बी चिपचिपी जीभ को चीटियों व दीमक के घरों में डालकर चुपचाप पड़ा रहता है। जब चीटियां व दीमक इसकी जीभ में चिपक जाते हैं तो यह जीभ को मुँह के भीतर खींचकर उन्हें चट कर जाता है। जानकार यह बताते हैं कि गठिया बात, बबासीर व भगंदर जैसे असाध्य रोगों के लिये भी पेंगोलिन के अंगों का उपयोग किया जाता है। भूत-प्रेत की छाया से बचने के लिये भी इसकी हड्डियों की अंगूठी पहनने का रिवाज है। ऐसी अवैज्ञानिक धारणाओं और अंधविश्वास के चलते ही यह अद्भुत प्राणी अब दुर्लभ हो गया है।

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