पाकिस्तान में गांधी को उतना ही उपेक्षित माना जाता है जितना भारत में जिन्ना को। लेकिन आज़ादी से पहले , पाकिस्तान की संकल्पना से भी पहले कराची में कोर्ट रोड पर, जो आज सिंध हाई कोर्ट के दरवाजे के सामने है, महात्मा गांधी की कांसे की प्रतिमा 1931 में स्थापित की गई थी। उसके नीचे एक पट्टी थी जिस पर लिखा था,
Mahatma Gandhi – the reputability of freedom, truth and nonviolence,”
विभाजन के बाद भी वह मूर्ति रही। सन 1950 में फसादों में मूर्ति तोड़ दी गयी। उसके टुकड़े सहेज कर रखे गए और 1981 में खंडित प्रतिमा भारतीय उच्चायोग को सौंप दी गयी। कहा गया कि इस्लामिक देश होने के कारण कोई बुत नहीं लगाया जा सकता।
भारतीय सरकार ने प्रतिमा की तसल्ली से मरम्मत कराई और इसे इस्लामाबाद के उच्चायोग में स्थापित कर दिया गया। यह उस प्रतिमा के निर्माण का 88वां साल है। उस प्रतिमा को भी देखें।
वैसे 2010 में शुरू हुए इस्लामाबाद के नेशनल मोन्यूमेंट म्यूजियम में गांधी की एक प्रतिमा है, बिल्कुल जिन्ना की मूर्ति के सामने।
वैसे कभी कराची में गांधी के नाम पर एक बगीचा भी था। यहां 1934 में गांधी की आमसभा हुई थी, तब इसका नाम विक्टोरिया गार्डन था। आज़ादी के बाद नफरत की आंधी में पार्क से गांधी को बेदखल कर उसका नाम कराची ज़्यूलोजिकल पार्क रख दिया गया।
@पंकज चतुर्वेदी की फेसबुक वॉल से साभार
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