- बिना सरकारी मदद के अकेले ही बना डाली डेढ़ सौ मीटर लम्बी सुरक्षा दीवार
- जंगली जानवरों के कारण मंगल सिंह के खेत में नहीं हो पाती थी कोई फसल
मंगल सिंह जिसने अकेले ही बना डाली सुरक्षा दीवार |
अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले का गरीब किसान मंगल सिंह आदिवासी इंसानी जज्बे और जुनून की एक मिशाल बन चुका है। बिरासत में इसे ऊबड़-खाबड़ कुल ढाई एकड़ जमीन मिली थी, जो जंगल के निकट होने के कारण वहां किसी भी तरह की कोई भी फसल ले पाना मुमकिन नहीं था। इन परिस्थितियों में मेहनत मजदूरी करके जीवनयापन करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था। लेकिन जिन लोगों में हौसला और खुद्दारी होती है, वे कठिन से कठिन चुनौतियों और मुश्किल राहों को भी आसान बना देते हैं। पन्ना के मंगल सिंहआदिवासी की चुनौतियों से भरी कहानी दशरथ मांझी की तरह कम दिलचस्प नहीं है। इसने बिना किसी सरकारी मदद के दो माह में अकेले ही डेढ़ सौ मीटर लम्बी पत्थर की सुरक्षा दीवार बना डाली है। जंगली जानवरों से अपने खेत को सुरक्षित कर अब यह पुरूषार्थी किसान रबी सीजन में गेंहू और सरसों की फसल बोने की तैयारी कर रहा है।
खेत में पत्थरों से निर्मित सुरक्षा दीवार का द्रश्य। |
उल्लेखनीय है कि पहाड़ का सीना चीरकर सड़क तैयार करने वाले दशरथ मांझी की प्रेरक कहानी हर किसी ने सुनी है, लेकिन जिन हालातों व परिस्थितियों में पन्ना के मंगल सिंह ने डेढ़ सौ मीटर लम्बी पत्थर की सुरक्षा दीवार अकेले दम बनाई है, वह भी अपने आप में एक मिशाल है। सरकारी मदद का इंतजार करने वालों तथा गरीबी और भाग्य को कोसने वालों के लिये मंगल सिंह की कहानी प्रेरणा देने वाली है, जिसने स्वयं अपने पुरूषार्थ से जिन्दगी की राह आसान बनाई है। 67 वर्षीय मंगल सिंह पन्ना जनपद के छोटे से गाँव रहुनिया का निवासी है। बँटवारे में उसे 2.5 एकड़ पैतिृक जमीन मिली थी जो न सिर्फ जंगल से लगी हुई है अपितु ऊबड़-खाबड़ भी है। यहां के ज्यादातर किसान अपने खेतों में इसलिये फसल नहीं उगाते, क्योंकि जंगली जानवर पूरी फसल चर जाते हैं। छोटे और गरीब किसान मेहनत मजदूरी करके किसी तरह अपना व परिवार का पेट पालते हैं। मंगल सिंह भी गाँव के बड़े किसानों के यहां मजदूरी करता था, गाँव में काम न मिलने पर मजदूरी के लिये बाहर भी जाता था। वर्षों से जमीन की जुताई न होने तथा खेती न करने के कारण वह बंजर सी पड़ी थी। गत वर्ष समर्थन संस्था के धर्मराज सतनामी से गाँव में ही मंगल सिंह की मुलाकात हुई और यह मुलाकात मंगल की जिन्दगी में एक नई सुबह लाने वाली साबित हुई। समर्थन संस्था के साथी ने चर्चा के दौरान मंगल सिंह को समझाईश दी कि आप यदि थोड़ा प्रयास और मेहनत करें तो अपने खेत में फसल उगा सकते हैं। संस्था ने क्लेड परियोजना से मेड़बंधान के लिये मंगल सिंह को एक हजार रू. का सहयोग प्रदान किया तथा मंगल ने 6 सौ रू. नगद लगाया और श्रमदान किया। इस तरह समर्थन संस्था के सहयोग से महज 16 सौ रू. खर्चकर मंगल सिंह ने अपने खेत में लगभग 40 मीटर लम्बी मेड़बंधान बना डाली। मेड़ बंधान बनने पर खेत की दशा ही बदल गई और मंगल सिंह में भी खेती करने के प्रति रूचि जागृत हो गई। यही रूचि उसे सुरक्षा दीवार बनाने के लिये प्रेरित किया और वह सरकारी मदद के लिये इन्तजार करने के बजाय अकेले ही सुरक्षा दीवार बनाने के काम में जुट गया। दो माह में सुरक्षा दीवार बनकर तैयार हो गई और मंगल सिंह के खेत का भी कायाकल्प हो गया, जो अब बोनी के लिये तैयार है।
पंचायत से नहीं मिली कोई मदद
खेत में मेड़बंधान व कुँआ बनवाने के लिये कई बार ग्राम पंचायत जाकर कहा लेकिन किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली। अपनी कहानी बयां करते हुये मंगल सिंह ने बताया कि वे लोग चार भाई हैं, इसलिये 10 एकड़ पैतिृक जमीन के बँटवारे पर उसे हिस्से में 2.5 एकड़ जमीन मिली है। जमीन ऊबड़-खाबड़ और असुरक्षित थी, इसलिये उसमें कुछ भी पैदा नहीं होता था। अब जमीन को न सिर्फ समतल कर दिया है बल्कि उसमें मेड़ भी बन गई है। पत्थर की ऊँची सुरक्षा दीवार बन जाने से जंगली जानवर अब फसल को नुकसान नहीं पहुँचा पायेंगे। मंगल सिंह ने बड़े ही आत्म विश्वास के साथ कहा कि अब वह निश्चिन्त है, खेत में इतना पैदा हो जायेगा कि उसका बुढ़ापा आराम से कटेगा।मनरेगा से बनीं सुरक्षा दीवारों से बेहतर
मनरेगा योजना के तहत जिले की सभी जनपदों में करोड़ों रू. खर्च कर खेतों में जो सुरक्षा दीवारें बनवाई गई हैं, उनमें से ज्यादातर भसक रही हैं। सुरक्षा दीवारों के नाम पर नीचे से ऊपर तक बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई है, जिससे दीवारें निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप नहीं बनीं। ज्यादातर पंचायतों में सुरक्षा दीवार के निर्माण हेतु वन क्षेत्र में बिखरे पड़े पत्थरों का उपयोग किया गया है जो मवेशियों व जंगली जानवरों के मामूली धक्के से भरभरा कर गिर जाती है। जबकि बिना किसी सरकार मदद के मंगल सिंह ने अपने खेत में जो सुरक्षा दीवार बनाई है वह न सिर्फ पर्याप्त ऊँची है अपितु मजबूत भी है। समर्थन संस्था के प्रेरित करने पर मंगल सिंह ने किचन गार्डन भी बनाया है, जहां उसने बैगन, टमाटर, मुनगा व पपीता के पौधे लगाये हैं।00000
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