Monday, October 7, 2019

गड्ढों में तब्दील हुई पन्ना की ऐतिहासिक अजयगढ़ घाटी

  •   समुचित देखरेख के अभाव में संकट में है घाटी का वजूद
  •   सुरक्षा दीवारों के क्षतिग्रस्त होने से आवागमन हुआ खतरनाक


पन्ना जिले की ऐतिहासिक अजयगढ़ घाटी की बद्हाली का नजारा। 

अरुण सिंह, पन्ना। राजाशाही जमाने में निर्मित  पन्ना जिले की ऐतिहासिक अजयगढ़ घाटी समुचित देखरेख न होने के कारण जानलेवा गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। बदहाली का दंश झेल रही घाटी की सुरक्षा दीवारें भी जीर्ण-शीर्ण और क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, जिससे इस महत्वपूर्ण मार्ग पर आवागमन अब खतरनाक हो गया है। इस घुमावदार घाटी को क्षरण से बचाने के लिये बारिश के पानी की निकासी हेतु जो पूर्व की व्यवस्थायें थीं, वे पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं, जिससे बारिश के पानी की निकासी न होने की स्थिति में घाटी जगह-जगह धसक भी रही है। इन हालातों के चलते इस खतरनाक हो चुकी घाटी में हर समय दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना जिला मुख्यालय को पड़ोसी राज्य उ.प्र. के बांदा जिले से जोडऩे वाले मार्ग पर यह घाटी पड़ती है, जिसका निर्माण तकरीबन डेढ़ सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा रूद्र प्रताप सिंह द्वारा कराया गया था। पिछले दिनों हुई जोरदार बारिश के कारण इस घाटी में घुमावदार मोड़ों पर गहरे और खतरनाक गड्ढे हो गये हैं। इसी मार्ग से रेत से भरे डम्फर व ट्रक भी निकलते हैं जिससे घाटी की हालत दिनों दिन और बिगड़ रही है। हालात ये हैं कि मोड़ों पर भारी वाहन एक बार में नहीं निकल पाते। ऐसी स्थिति में जरा सी असावधानी व चूक होने पर वाहन सैकड़ों फिट नीचे खाई में गिर सकते हैं। घाटी इतनी घुमावदार व खतरनाक है कि जरा सी चूक भी दुर्घटना का कारण बन सकती है। गड्ढों की वजह से पूर्व में कई घटनायें घटी हैं, जिसमें अनेकों लोग घायल हुये हैं। इस मार्ग से निकलने वाले बाईक सवारों का कहना है कि घाटी के गड्ढे जानलेवा बनते जा रहे हैं और दिन-प्रतिदिन इनकी गहराई और चौड़ाई बढ़ती जा रही है। इन्हीं गड्ढों की वजह से बाईक सवार  आये दिन दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। बारिश के समय में इन गड्ढों में पानी भर जाता है और बाईक चालकों को यह समझ में नहीं आता कि यहां पर इतना बड़ा गड्ढा होगा और वह सीधे गड्ढे में जा गिरते हैं और चोटिल हो जाते हैं।  घाटी में कहीं पर भी सूचनात्मक साईन बोर्ड नहीं दिखाई देते जिससे यह संकेत वाहन चालक को मिल सके कि आगे जाकर अंधा मोड़ है। कई जगह घाटी की सुरक्षा दीवार भी क्षतिग्रस्त है जिससे दुर्घटनाओं की सम्भावना बढ़ जाती है।

प्राचीन धरोहर अनदेखी का हो रही शिकार

इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि हम अपनी प्राचीन धरोहरों को बचाने व उनका संरक्षण करने के बजाय उनकी अनदेखी कर रहे हैं। यह प्राचीन धरोहर भी उपेक्षा और अनदेखी का शिकार है, जिससे इसका वजूद संकट में पड़ गया है। घाटी के मार्ग में निर्मित प्राचीन नालियां मलबे से पट चुकी हैं। क्षरण के कारण पहाड़ों की मिट्टी व पत्थर नालियों में भर गये हैं, जिससे जल निकासी की पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो गई हैं। इस लापरवाही का यह परिणाम  है कि पहाड़ों का जहां तेजी से क्षरण होने लगा है, वहीं घाटी में निर्मित सुरक्षा दीवालें भी नष्ट हो रही हैं। पहाड़ों के क्षरण का यह आलम है कि ऊंचाई से बड़ी-बड़ी चट्टानें लुड़क कर सड़क मार्ग पर आ जाती हैं। नतीजतन   कभी भी भयावह हादसा घटित हो सकता है। मालूम हो कि पन्ना जिले को पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश के बांदा जिले से जोडऩे वाला यह प्रमुख मार्ग हैं। इस मार्ग पर चौबीसों घंटे आवागमन होता है, फि र भी घाटी के जीर्णोद्धार व देख-रेख में शासन-प्रशासन द्वारा कोई रूचि नहीं ली जाती, जिससे घाटी जीर्ण-शीर्ण हो रही है। इस मार्ग से जब भी कोई पहली बार निकलता है, तो यहां की प्राकृतिक मनोरम छटा व घाटी की निर्माण शैली को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है।

हैरतअंगेज है घाटी के निर्माण की कहानी 

इस मनोरम घाटी के निर्माण की कहानी भी हैरतअंगेज और अविश्वनीय है। बताया जाता है कि तकनीकी कौशल से परिपूर्ण इस घुमावदार घाटी के निर्माण में खच्चरों की भूमिका सबसे अहम रही है। घाटी के मार्ग का निर्धारण खच्चरों के द्वारा ही किया गया था। तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा रूद्रप्रताप सिंह ने खच्चरों की पीठ में चूने की बोरियां लदवाकर बोरियों में छेद करके उन्हें इस पहाड़ पर छुड़वा दिया था। खच्चर घने जंगल से होकर जिस मार्ग से गए, चूने की लाइन खिंचती चली गई और इसी नक्शे के आधार पर ही अजयगढ़ की घाटी का निर्माण हुआ।
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