Saturday, December 21, 2019

फिर जीवन्त हो रही बाघ टी-3 के रोमांचक यात्रा की कहानी

  •   10 वर्ष पूर्व जिस रास्ते चला था टी-3 उसी मार्ग पर चल रहे पर्यावरण प्रेमी
  •   इस अनूठे आयोजन में देशभर के दर्जनों प्रतिभागी हो रहे शामिल
  •   बाघ टी-3 वाक में प्रतिभागी उस समय की चुनौतियों व हालातों से होंगे रूबरू


पन्ना को आबाद करने वाला नर बाघ टी-3 जिस मार्ग से 10 वर्ष पूर्व गुजरा था, उसी मार्ग पर वॉक करते पर्यावरण प्रेमी।  

अरुण सिंह,पन्ना। म.प्र. का पन्ना जिला इन दिनों एक अनूठे आयोजन को लेकर चर्चा में है। यह आयोजन बाघ पुनस्र्थापना योजना के 10 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया है। उस समय की चुनौतियों और बाधाओं का सामना करते कैसे कामयाबी का मुकाम हासिल किया गया इससे रूबरू कराने के लिये म.प्र. वन विभाग, बायोडायवॢसटी बोर्ड व डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के तत्वाधान में यह अनूठी पहल हुई है। इसकी खासियत यह है कि इस पूरे आयोजन के केन्द्र में वह बाघ है जिसने पन्ना को फिर से आबाद किया है। पन्ना के बाघों का पितामह बाघ टी-3 की वह रोमांचक यात्रा जो उसने 10 वर्ष पूर्व दिसम्बर 2009 में की थी, उस यात्रा मार्ग पर देशभर से आये पर्यावरण प्रेमी वॉक कर रहे हैं। 20 दिसम्बर से शुरू हुई यह जंगल यात्रा टी-3 के विभिन्न पड़ावों से होते हुये उस स्थल तक पहुँचेगी, जहां से इस नर बाघ को ट्रंक्यूलाइज कर वापस पन्ना टाईगर रिजर्व में लाया गया था। वॉक में भाग ले रहे लोग कड़ाके की इस ठण्ड में 10 वर्ष पूर्व के रोमांचक दास्तान को न सिर्फ महसूस करेंगे अपितु उसे जी भी सकेंगे।

उल्लेखनीय है कि शुक्रवार 20 दिसम्बर को शुरू हुई बाघ टी-3 वॉक पहले दिन 12 किमी की दूरी तय करते हुये अपने पहले पड़ाव किशनगढ़ पहुँची। शनिवार को सभी प्रतिभागी 10 किमी जंगल के कठिन रास्तों से होकर गुजरेंगे। इस तरह तकरीबन 70 किमी पैदल वॉक करने के बाद 26 दिसम्बर को अभियान का समापन होगा। इस आयोजन की खास बात यह है कि भाग लेने वाले प्रतिभागियों का नेतृत्व वही शख्स कर रहा है जिसकी अगुवाई में पन्ना को चमत्कारिक सफलता मिली है। बीते 10 वर्षों में पन्ना टाईगर रिजर्व ने शून्य से 54 तक का जो सफर तय किया है, उसके मूल में इसी शख्स आर. श्रीनिवास मूर्ति की पन्ना को फिर से आबाद करने का जुनून, जज्बा और काबिलियत छिपी है। बतौर क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व श्री मूर्ति ने पन्ना टाईगर रिजर्व के उजड़े संसार को फिर से आबाद करने के लिये अथक मेहनत करते हुये पूरे अमले में ऐसा जज्बा जगाया कि पूरी टीम एकजुट होकर हर तरह की बाधाओं को पार करते हुये कामयाबी का वह करिश्मा दिखाया, जिससे पूरी दुनिया चमत्कृत हो गई। इस चमत्कारिक सफलता का ही यह परिणाम है कि दुनिया के कई देश बाघ संरक्षण का पाठ सीखने के लिये पन्ना आ रहे हैं।

बाघ टी-3 के यात्रा की रोमांचक दास्तान


प्रतिभागी पर्यावरण प्रेमियों को टी-3 का यात्रा वृत्तांत सुनाते हुये श्री मूर्ति। 

पन्ना की कामयाबी का सूत्रधार बाघ टी-3 की दास्तान रहस्य और रोमांच से भरपूर है। मार्च 2009 में जब अधिकृत रूप से यह घोषणा हो चुकी थी कि पन्ना टाईगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं है यानि पन्ना बाघ विहीन हो चुका है। पन्ना में बाघों को फिर से आबाद करने के लिये बाघ पुनर्स्थापना योजना के प्रथम चरण में कान्हा और बांधवगढ़ से बाघिन टी-1 व टी-2 को पन्ना लाने के बाद 7 नवम्बर 2009 को पेंच से नर बाघ  को यहां लाया गया था। जंगल में पूर्व से ही विचरण कर रहीं दो बाघिनों से इस नर बाघ की मुलाकात न होने पर यह 27 नवम्बर को अपने पुराने ठिकाने की ओर कूच कर गया। जिस बाघ पर पन्ना को आबाद करने की उम्मीदें टिकी थीं, जब वह यकायक गायब हो गया तो उस समय के क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति  ने बाघ को खोजकर लाने के उस महाअभियान की शुरूआत यह कहते हुये की थी कि नर बाघ को हर हाल में खोजकर पन्ना लाना है अन्यथा पन्ना को आबाद करने का सपना कभी हकीकत नहीं बन सकेगा।

कड़ाके की ठण्ड में शुरू हुआ तलाश अभियान

दिसम्बर महीने की हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड में बाघ की तलाश में निकलने से पहले श्री मूॢत ने वन अधिकारियों व कर्मचारियों में देश भक्ति के उस जज्बे का संचार किया कि पूरी टीम जय हिन्द का उद्घोष करते हुये हर तरह की मुसीबतों से जूझने तत्पर हो गई। चार हाथियों, पच्चीस वाहनों और सत्तर वन कॢमयों के साथ क्षेत्र संचालक श्री मूर्ति बाघ की तलाश में जुट गये। इस जंगल से उस जंगल, नदी-नालों व पहाड़ों को पार करते हुये भीषण ठण्ड में रातों दिन बाघ की तलाश की जाती रही। पेंच के इस बाघ ने पूरे एक माह तक वन अधिकारियों व कर्मचारियों को हैरान और परेशान किया, लेकिन श्री मूर्ति की टीम ने हिम्मत नहीं हारी। कामयाबी का नया इतिहास रचने वाले इस वनराज को 25 दिसम्बर 2009 को बेहोश करके पुन: पन्ना लाया गया और 26 दिसम्बर को इसे खुले जंगल में छोड़ दिया गया। पन्ना की कामयाबी का यही टर्निंग प्वाइंट था, टी-3 की मुलाकात बाघिन टी-1 से हुई और पन्ना में नन्हे शावकों के आगमन का सिलसिला शुरू हो गया जो अनवरत् जारी है। मौजूदा समय पन्ना में बाघों का कुनबा 50 के भी पार जा पहुँचा है।

टी-3 वॉक के आयोजन से बढ़ेगी जनभागीदारी



जन समर्थन से बाघ संरक्षण पन्ना की कामयाबी का मूल मंत्र रहा है। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुये पार्क प्रबन्धन द्वारा इस तरह की गतिविधियां आयोजित की जाती हैं ताकि आम जनता में पर्यावरण व बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा हो तथा वे संरक्षण के कार्य में सहभागी भी बनें। इस यात्रा का मूल उद्देश्य भी बाघ संरक्षण में जनभागीदारी बढ़ाना और देश दुनिया के पर्यावरण प्रेमियों व आम जनमानस को उन चुनौतियों और किये गये प्रयासों से परिचित कराना है, जिससे पन्ना को उसका पुराना गौरव वापस मिला है। यात्रा से पन्ना के इस गौरव को सुरक्षित, संरक्षित और सहेजकर रखने की प्रेरणा मिलेगी।
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