Saturday, December 7, 2019

बाघ पुनर्स्थापना के लिए विश्व गुरु बन चुका है पन्ना

  • चमत्कारिक सफलता की स्मृतियों को तरोताजा करने आयोजित हो रहा कार्यक्रम 
  • जिस मार्ग पर चला था बाघ टी-3 उसी मार्ग पर पर्यावरण प्रेमी करेंगे ट्रेकिंग 
  • म.प्र. राज्य जैव विविधता बोर्ड और वन विभाग की अभिनव पहल 

बाघ टी-3 जिसने पन्ना को आबाद कर पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाई। 

अरुण सिंह, पन्ना।  म.प्र. के पन्ना टाइगर रिजर्व ने देश और दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। बाघ पुनर्स्थापना योजना को यहाँ मिली चमत्कारिक सफलता से पन्ना विश्व गुरु के रूप में अपने को स्थापित करने में कामयाब हुआ है। बीते 10 सालों में यहां जो कुछ हुआ उसे देखकर दुनिया भर के वन्य जीव प्रेमी उत्साहित और हतप्रभ हैं। एक ऐसा वन क्षेत्र जो वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो गया था वहां 10 साल में ही आधा सैकड़ा से भी अधिक बाघ हैं। यहाँ घटित बाघ पुनर्स्थापना की अनूठी कामयाबी की प्रेरणादायी स्मृतियों को तरोताजा करने के लिये मध्यप्रदेश राज्य जैव-विविधता बोर्ड और वन विभाग द्वारा एक अनूठी गतिविधि के आयोजन की तैयारी की गई है। जिसके तहत पन्ना में 20 से 26 दिसम्बर, 2019 तक दुनिया भर के पर्यावरण व बाघ प्रेमी जंगल में उस मार्ग पर ट्रेकिंग करेंगे जिस मार्ग से होकर बाघ टी-3 गुजरा था। यह वही बाघ है जिसने पन्ना में बाघों की नई दुनिया आबाद करके  इतिहास रचा है। इतिहास रचने वाले इस बाघ को 10 वर्ष पूर्व 26 दिसम्बर 2009 को पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की वंश वृद्धि के लिए छोंड़ा गया था, इसलिए यह दिन पन्ना बाघ पुर्नस्थापना योजना के लिए एक चिर स्मरणीय दिन है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना में बाघ पुनर्स्थापना योजना के सफलता की रोचक दास्तान कुछ इस प्रकार है। शोक गीत में तब्दील हो चुके पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों की नई दुनिया आबाद करने के लिए 7 नवम्बर 2009 को पेंच टाइगर रिजर्व से नर बाघ टी - 3 को यहां लाया जाकर इन्क्लोजर में रखा गया।  बाड़े में कुछ दिन रखने के बाद 13 नवम्बर को खुले जंगल में स्वच्छन्द विचरण के लिए छोंड़ दिया गया।  मालुम हो कि बाघ टी - 3 को पन्ना लाये जाने से पूर्व कान्हा व बांधवगढ़ से दो बाघिनों को  पन्ना में 3 और 6 मार्च को लाया जाकर टाइगर रिजर्व के जंगल में छोंड़ दिया गया था ताकि नर बाघ के संपर्क में आकर दोनों बाघिन वंशवृद्धि कर सकें। लेकिन नर बाघ की मुलाकात इन बाघिनों से नहीं हो सकी और 27 नवम्बर को पेंच का यह बाघ पन्ना से अपने घर पेंच की तरफ कूच कर गया।  पूरे 30 दिनों तक यह बाघ कड़ाके की ठंड में अनवरत यात्रा करते हुए 442 किमी. की दूरी तय कर डाली,जिसे 25 दिसम्बर को पकड़ लिया गया और 26 दिसम्बर को दुबारा पन्ना टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया।
पन्ना टाइगर रिजर्व के तत्कालीन  क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति बताते हैं कि टी - 3 पेंच से लाया गया वह नर बाघ है जो एक तरह से पुन: स्थापित बाघों के कुनबा का पिता है। बाघ टी - 3 के 30 दिनों की यात्रा का स्मरण करते हुए श्री मूर्ति बताते हैं कि ये दिन हमारे लिए बेहद चुनौतीपूर्ण व महत्व के थे, क्यों कि इसी नर बाघ पर पन्ना बाघ पुर्नस्थापना योजना का भविष्य टिका हुआ था।  इन 30 दिनों में टी - 3 ने बाघ आवास व उनके जीवन के बारे में पन्ना टाइगर रिजर्व की टीम व पूरे देश को इतना ज्ञान दिया जो अन्यत्र संभव नहीं था। यह बाघ पन्ना के दक्षिणी दिशा में छतरपुर, सागर एवं दमोह जिलों में विचरण करते हुए 442 किमी. की यात्रा की। जिस इलाके में बाघ विचरण कर रहा था वह पूरी तरह असुरक्षित था और शिकार हो जाने की प्रबल संभावना थी।  लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और कडाके की ठंड में नदी, नाले व जंगल पार करते हुए उक्त बाघ को सुरक्षित तरीके से पुन: बेहोश करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व में मुक्त किया। बाघ टी - 3 की इस खोज ने ही पन्ना टाइगर रिजर्व के प्रबंधन को एक टीम का रूप दिया। पन्ना टाइगर रिज़र्व के अधिकारियों-कर्मचारियों की रात-दिन की कड़ी मेहनत, सतत निगरानी और स्थानीय लोगों का सहयोग तब रंग लाया जब बाघिन टी-1 ने पहली बार 16 अप्रैल, 2010 को 4 शावकों को जन्म देकर वन्य-प्राणी जगत में पन्ना टाइगर रिजर्व का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा दिया।

पन्ना  में खुले ग्लोबल टाइगर लर्निंग सेन्टर

म.प्र. का पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ पुर्नस्थापना के लिए विश्व स्तर पर सफलता का मानक बन चुका है. यही वजह है कि दुनिया भर से लोग पन्ना आकर बाघों को फिर से आबाद करने के गुर सीखना चाहते हैं. बाघ पुर्नस्थापना योजना को यहां पर जिस तरह से शानदार सफलता मिली है, उसे द्रष्टिगत रखते हुए पन्ना में ग्लोबल टाइगर लर्निंग सेन्टर की स्थापना यथाशीघ्र होनी चाहिए. यदि यहां पर टाइगर लर्निंग सेन्टर की स्थापना हो जाती है तो पूरी दुनिया के लोग यहां बाघों के संरक्षण व पुर्नस्थापना का पाठ सीखने के लिए आयेंगे, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ - साथ स्थानीय कम्युनिटी को लाभ मिलेगा. पन्ना की सफलता पूरे विश्व में उत्कृष्ट श्रेणी का है, जहां सभी पुर्नस्थापित बाघिनों का सफलतम प्रजनन हुआ है. पन्ना में न सिर्फ पुर्नस्थापित बाघों ने सफलता पूर्वक प्रजनन कर वंशवृद्धि की है, अपितु दो अर्द्ध जंगली बाघिनों को भी यहां जंगली बनाने में सफलता मिली है. इन दोनों ही बाघिनों ने जंगली बनकर शावकों को जन्म भी दिया है. यहां के बाघ अब नर्मदा से लेकर बेतवा, केन एवं सोन के कछारों में विद्यमान हैं. विन्ध्यांचल के लगभग 30 हजार वर्ग किमी. क्षेत्र में (ललितपुर से लेकर सीधी व चित्रकूट तक) पन्ना के बाघ बुन्देलखण्ड की पताका फहरा रहे हैं.

बाघ टी-3 के चले मार्ग पर होगी वॉक 


कार्यक्रम के संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार  टी-3 द्वारा अपनाए गये रास्ते पर 20 से 26 दिसम्बर तक बाघ प्रेमियों और संरक्षकों द्वारा वॉक की जायेगी। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ये प्रतिभागी 19 दिसम्बर को पन्ना टाइगर रिजर्व में रिपोर्ट करेंगे। बीस दिसम्बर को 12 किलोमीटर लम्बे देवरादेव, गहारीघाट और टी-3 ग्रेट स्केप पाइंट, 21 दिसम्बर को 10 किलोमीटर लम्बे माटीपुरा, राजपुरा और टी-3 फाइनल स्केप पाइंट, 22 दिसम्बर को 10 किलोमीटर के पहले पग मार्क मिलने वाले कॉरिडोर पर, 23 दिसम्बर को 10 किलोमीटर लम्बे सगुनि जंगल, 24 दिसम्बर को 15 किलोमीटर के पातरीकोटा, जहाँ से बाघ को वापस लाये थे और 25 दिसम्बर को 10 किलोमीटर लम्बे गन्ने के खेत, जहाँ से टी-3 को पुन: टाइगर रिजर्व लाया गया था, पर वॉक होगा। छब्बीस दिसम्बर को प्रतिभागी पन्ना टाइगर रिजर्व के खमानी तालाब पर अपने अनुभव साझा करेंगे। दोबारा पार्क पहुँचने पर टी-3 को यहीं छोड़ा गया था।

टी-3 की रोमांचक यात्रा के मुख्य बिन्दु 

  •    पेंच से आया बाघ 7 नवम्बर 2009 को पन्ना टाइगर रिजर्व के बाडे में पहुंचा, जिसे 13 नवम्बर को रेडियो कॉलर पहनाया गया। 
  •   14 नवम्बर को उसे बाडे से निकालकर खुले जंगल में आजाद छोंड़ दिया गया, जो 27 नवम्बर को पन्ना से पेंच की तरफ कूच कर गया। 
  •   25 दिसम्बर को उसे फिर से पकड़ लिया गया और 26 दिसम्बर को दोबारा पन्ना टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया। 
  •   अपनी इस यात्रा में बाघ प्रतिदिन 15 से 50 किमी. तक चला, जिस जगह शिकार करता वहां तीन से चार दिन तक रूका। 
  •  यात्रा के दौरान चार भारतीय वन अधिकारियों ने बाघ टी - 3 का पीछा करने वाली टीम का नेतृत्व किया, टीम में 40 से 70 वनकर्मी, चार हांथी व 25 वाहन शामिल रहे। 
  •   बाघ ने केन, सुनार, बेबस और व्यारमा जैसी नदियों को तैरकर पार किया तथा रात में बटिया खेड़ा और गढ़ाकोटा जैसे कस्बों से होकर गुजरा । 
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