Thursday, January 2, 2020

उपेक्षित है पन्ना का प्राचीन लोकपाल सागर तालाब

  •   हजारों एकड़ कृषि भूमि की होती रही है सिंचाई
  •   विशालकाय तालाब हो रहा अतिक्रमण का शिकार


पन्ना शहर के निकट स्थित प्राचीन लोकपाल सागर तालाब का द्रश्य। 

अरुण सिंह,पन्ना। राजाशाही जमाने में पन्ना शहर व आसपास तत्कालीन बुन्देला राजाओं ने विशालकाय तालाबों का निर्माण कराया था। इन अनूठी जल संरचनाओं को सहेजने और उनका संरक्षण करने के बजाय हम उनका वजूद ही मिटाये दे रहे हैं। पन्ना का प्राचीन लोकपाल सागर तालाब जो क्षेत्र के किसानों व पन्ना शहरवासियों के जीवन का आधार है, वह अतिक्रमण के चलते निरन्तर सिकुड़ता जा रहा है। तालाब के जीर्णोद्धार व कैचमेन्ट बढ़ाने के कार्य में सिंचाई विभाग द्वारा भी कोई रूचि नहीं ली जा रही, जिससे इस अनमोल धरोहर का वजूद संकट में है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना-पहाड़ीखेरा मार्ग पर शहर के निकट 492 एकड़ क्षेत्र में लोकपाल सागर तालाब का निर्माण पन्ना नरेश महाराजा लोकपाल सिंह द्वारा कराया गया था। इस तालाब की निर्माण शैली जहां अद्वितीय है वहीं कैचमेंट एरिया ऐसा है कि सामान्य बारिश होने पर भी तालाब पानी से लबरेज हो जाता था। लेकिन यह अनूठा तालाब विगत कई दशकों से उपेक्षा का शिकार है। तालाब का कैचमेन्ट भी अतिक्रमण के चलते अनुपयोगी हो गया है, जिससे अच्छी बारिश होने पर भी यह तालाब क्षमता के अनुरूप नहीं भर पाता। पूर्व में इस तालाब के पानी से आसपास के कई ग्रामों की हजारों एकड़ कृषि भूमि जहां सिंचित होती रही है, वहीं पन्ना शहर के पेयजल की जरूरत भी इस तालाब के पानी से पूरी होती रही है। लेकिन अब यह विशाल तालाब सिकुड़ता जा रहा है नतीजतन पानी की कमी के कारण किसानों को जरूरत के मुताबिक समय पर पानी नहीं मिल पाता जिससे उनकी फसलें सूख जाती हैं और उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता है।
जानकारों के मुताबिक सिंचाई विभाग के आधिपत्य में आ चुके इस तालाब का 25 फीसदी हिस्सा अतिक्रमण की चपेट में आ चुका है। अतिक्रमण करने वाले लोग तालाब की जमीन में खेती करने लगे हैं, कैचमेन्ट बढ़ाने के लिये ङ्क्षसचाई विभाग द्वारा कोई  रूचि न लिये जाने से तालाब में क्षमता के मुताबिक पानी नहीं भर पाता, जिससे आधा हिस्सा खाली रह जाता है और अतिक्रमणकारी बिना किसी बाधा के उस जमीन पर खेती करते हैं। पूर्व में लोकपाल सागर तालाब को भरने के लिये कुडिय़ा नाला व किलकिला फीडर का उपयोग होता रहा है। किलकिला फीडर के जरिये तकरीबन 20 किमी दूर तक का पानी इस तालाब में पहुँचता था, जिससे सामान्य बारिश में भी यह विशाल तालाब न सिर्फ  भर जाता था बल्कि तालाब का मोघा भी चलने लगता था। लोकपाल सागर तालाब को बारिश का पानी फीड करने वाला किलकिला फीडर विगत ढाई दशक से पूरी तरह अनुपयोगी हो गया है तथा इसकी नहर जिससे होकर तालाब तक बारिश का पानी पहुँचता है, उसमें अतिक्रमण हो चुका है। इसका खामियाजा जहां क्षेत्र के किसान भुगत रहे हैं वहीं इस प्राचीन तालाब का अस्तित्व ही संकट में आ गया है।

धरोहर के संरक्षण में सिंचाई विभाग ले रूचि



पन्ना शहर की इस अनमोल जल संरचना के संरक्षण तथा उसे अतिक्रमण से बचाने के लिये सिंचाई विभाग क्यों रूचि नहीं ले रहा, यह आश्चर्य जनक है। मौजूदा समय जिले में अरबों रू. की लागत वाली ङ्क्षसचाई परियोजनाओं पर काम चल रहा है, इन परियोजनाओं के काम पर विभाग के अधिकारी दिन व रात एक किये हैं, क्यों कि इसमें उन्हें लाभ ही लाभ है। लेकिन पन्ना शहर को जीवन प्रदान करने वाले तालाब उपेक्षित पड़े हैं, जबकि बहुत ही कम राशि खर्च किये जाने पर यह तालाब आने वाले कई दशकों के लिये अत्यधिक उपयोगी साबित हो सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि सिंचाई विभाग की रूचि करोड़ों रू. की लागत से निर्मित होने वाले नये बांधों पर है, पुरानी जल संरचनाओं को सहेजने व उनके जीर्णोद्धार पर वे कोई ध्यान नहीं दे रहे जो दुर्भाग्य पूर्ण है।
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