Tuesday, January 28, 2020

हमें भूखे मारने को तैयार है क्लाईमेट क्राईसिस...

  • क्लाईमेट क्राईसिस ने पूरे मौसम चक्र को बिगाड़ करके रख दिया
  • राजस्थान, गुजरात और पंजाब में टिड्डी दलों का तगड़ा अटैक



ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। इसके बाद हमारे देश में भी क्लाईमेट क्राईसिस को लेकर थोड़ी बहुत बातें की जाने लगी हैं। पर साहेब, ऑस्ट्रेलिया की आग को भूल जाइये। क्लाईमेट क्राईसिस हमें भी भूखे मारने को तैयार बैठी है। कैसे....
देश में इस बार राजस्थान, गुजरात और पंजाब में टिड्डी दलों का तगड़ा अटैक हुआ है। लाखों करोड़ों की संख्या में आने वाले ये कीट किसानों की आजीविका को कुछ ही घंटों में चट कर जाते हैं। यह समस्या कितनी बड़ी है, शहरों में रहने वाले शायद इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि टिड्डी दलों के हमले से बचाने के लिए दिल्ली से तिगुने आकार के बराबर क्षेत्रफल में कीटनाशकों का छिड़काव किया गया है। इसके बावजूद यह कीट फसलों को भारी नुकसान पहुंचा चुका है। टिड्डियों का हमला कोई नई बात नहीं है। लेकिन, जिस तरह का हमला इस बार हुआ यह नई बात है। जिस तरह से उनकी संख्या बढ़ी है, जिस तरह से उनका खतरा बढ़ा है, उसमें कई नई बातें हैं जो क्लाईमेट क्राईसिस के गहराने की तरफ इशारा करती है।
आपको शायद यकीन नहीं हो कि यह कीट कितनी तेजी से बढ़ता है। इसके एक झुंड में अस्सी लाख तक कीट हो सकते हैं। जो कि एक दिन में ही ढाई हजार लोगों के बराबर या दस हाथियों के बराबर खाना खा सकता है। अपने पहले प्रजनन काल में यह कीट बीस गुना बढ़ता है, दूसरे प्रजनन काल में 400 गुना और तीसरे प्रजनन काल में 16 हजार गुना बढ़ जाता है। टिड्डी दलों का हमला तमाम प्रकार के अकालों के लिए जिम्मेदार रहा है। इस कीट के पनपने के लिए नमी वाले वातावरण की जरूरत होती है। इस बार हमारे यहां राजस्थान में तो बिना बरसात वाली बरसात तो रिकार्ड हुई है इसी प्रकार की बिना मौसम वाली बरसात अरब सागर और लाल सागर के        आसपास के कई हिस्सों में हुई है। इसके चलते टिड्डियों के पनपने के लिए बेहद मुफीद स्थिति बनी है। इसी के चलते वे पहले से कई गुना ज्यादा बड़ी संख्या में हमला बोल रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि बिना मौसम वाली बरसात के पीछे कारण क्या है।
क्लाईमेट क्राईसिस ने पूरे मौसम चक्र को बिगाड़ करके रख दिया है। इसके चलते या तो बारिश का मौसम देर से शुरू हो रहा है या जल्दी शुरू हो रहा है। कहीं तो बारिश होती नहीं। कहीं होती है तो बहुत ही थोड़े समय में बहुत ही ज्यादा पानी बरस रहा है। जिसका नतीजा सूखा और बाढ़ के तौर पर तो हम देखते ही हैं। टिड्डी दलों के हमले के तौर पर भी देख रहे हैं। समुद्र का तापमान बढ़ने से उसमें उठने वाले चक्रवाती तूफानों की संख्या में इजाफा हो रहा है। जो कि आसपास के क्षेत्रों में तबाही और बारिश ला रहे हैं। जाहिर है कि ये कुछ नतीजे हैं जो अभी हमारे सामने आए हैं। ऐसे ही न जो कि कितने नतीजे अभी आने बाकी है। फिर भी हम जरूरी मुद्दों पर सोचने की बजाय गैर-जरूरी विषयों पर गाल बजाने में ही जुटे हुए हैं। क्योंकि जिन लोगों को हमने चुन कर भेजा है उन्हें संकट का सामना करना पसंद नहीं है। बल्कि वे संकट को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं।
(इस लेख के कई तथ्य और तर्क प्रख्यात पर्यावरणविद सुनीता नारायण के लेख से लिए गए हैं। उनका आभार। चित्र इंटरनेट से। )
@ कबीर संजय की फेसबुक वॉल से 

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