Wednesday, January 29, 2020

विलुप्त हो चुके चीते की मध्यप्रदेश में दिखेगी रफ़्तार ?

  • सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले से फिर जागी उम्मीद 
  • 73 साल पहले भारत की धरती से विलुप्त हो चुका था चीता


अरुण सिंह, पन्ना। भारत की धरती से 73 साल पहले विलुप्त हो चुका चीता अब मध्यप्रदेश के कूनो या नौरादेही के जंगलों में फिर से रफ्तार भरता दिखेगा। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में भारत में अफ्रीका से चीता को लाकर बसाने की अनुमति दे दी है जिससे चीतों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद किये जाने की उम्मीद जागी है। मालुम हो कि 1947 में आखिरी तीन चीतों के शिकार के बाद रफ़्तार का पर्याय यह अनूठा वन्य जीव भारत से विलुप्त हो चुका है। हालांकि कोर्ट ने पहले उनके लिए उपयुक्त ठिकाने की तलाश करने को कहा है। इसके लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी का भी गठन किया है, जो हर चार महीने में इससे जुड़ी प्रगति रिपोर्ट कोर्ट को देगी। विशेषज्ञों के मुताबिक देश में चीता को अंतिम बार 1947 में देखा गया था, जब सरगुजा महराज ने देश में बाकी बचे तीन चीतों को एक शिकार में मार दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीकी चीतों को बसाने की यह अनुमति राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की ओर से दाखिल की गई याचिका की सुनवाई के दौरान दिया। जिसमें अफ्रीकी देश नामिबिया से चीतों को लाने को लेकर अनुमति मांगी गई थी। हालांकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर में एशियाई शेरों की जगह चीता को बसाने के एक प्रस्ताव को खारिज भी कर चुका था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय पीठ के इस ताजा आदेश से चीता को लाने की उम्मीद फिर जगी है। वन्यजीव प्रेमियों के लिए निश्चित ही यह एक बड़ी खबर है। अगर सब कुछ सही दिशा में चला तो अफ्रीका के नामीबिया के चीते मध्यप्रदेश के कूनो या नौरादेही के जंगलों में दौड़ते हुए दिखाई पड़ सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि दुनिया में बड़ी बिल्लियों की आठ प्रजाति पाई जाती हैं। इनमें से जेगुआर और प्यूमा दो ऐसी प्रजातियां हैं जो केवल अमरीकी महाद्वीप में पाई जाती है। भारत की वन्यजीवन की खूबसूरती और विशेषता रही है कि बाकी छह प्रजातियां---शेर यानी लायन, बाघ यानी टाइगर, तेंदुआ यानी लेपर्ड, हिम तेंदुआ यानी स्नो लेपर्ड, बादली तेंदुआ यानी क्लाउडेड लेपर्ड और चीता कभी भारत के अलग-अलग जंगलों में स्वच्छंद विचरण किया करते थे। लेकिन अंधाधुंध शिकार और पर्यावास छिनने के चलते इनमें से चीता भारत से विलुप्त हो गया। माना जाता है कि 1947 में अंतिम तीन चीते मार डाले गए थे। इसके बाद संभवतः 1952 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया गया। चीता एकमात्र बड़ा जानवर है जो हाल की सदियों में भारत से विलुप्त हुआ है। इससे पहले शेर लगभग विलुप्ति की कगार पर पहुंचकर वापसी कर चुके हैं। चीता को दोबारा भारत में बसाने की कार्ययोजना पर लगभग दस साल पहले काम शुरू किया गया था। उस समय भारत में तीन स्थानों राजस्थान के शाहगढ़ और मध्यप्रदेश के नौरादेही और कूनोपाल पुर के जंगलों में इन्हें बसाने की योजना थी। तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश नामीबिया में जाकर चीते देख भी आए थे। लेकिन, कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के चलते चीता के आने पर रोक लग गई। दरअसल,सुप्रीम कोर्ट में गिर के शेरों की कुछ आबादी को अन्यत्र बसाने को लेकर बहस चल रही थी। गुजरात सरकार इसका विरोध कर रही थी। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना था कि शेरों की आबादी को बचाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान यह मुद्दा आया कि कूनोपाल पुर में शेरों को बसाया जाना है। इस पर गुजरात सरकार ने कहा कि वहां पर तो चीते बसाए जाने हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उस समय बाहर से लाकर किसी प्रजाति को बसाए जाने पर रोक लगा दिया था। वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने शेरों की आबादी के एक हिस्से को कूनो पालपुर में बसाने के निर्देश दिए। यह भी एक अलग किस्सा है कि किस तरह से बीते छह सालों में सुप्रीम के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। शेर अपने छोटे से घर में कसमसा रहे हैं। अच्छी खबर यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अब नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी को अफ्रीका से चीता लाकर बसाने के पायलट प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है। बस एक्सपर्ट पैनल को हर चार महीने में इसकी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपनी होगी। इसके बाद अब चीते की वापसी का रास्ता पूरी तरह से खुल चुका है। अगर ऐसा होता है तो यह भी एक बड़ी ऐतिहासिक परिघटना होगी, जिस पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी होंगी।

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