दशक का अवसान हो गया है और उम्मीद है कि एक नई सुबह होगी। 2010-2019 के जिस दशक को हम अपने पीछे छोड़ रहे हैं, उसमें नेताओं की छवि धूमिल हुई है, हमारी अर्थव्यवस्था संकट में पड़ी है और हर तरफ संघर्ष व गुस्सा नजर आया । इस दशक में हमने महसूस किया कि जलवायु परिवर्तन भविष्य की बात नहीं है, बल्कि यह वर्तमान में देखा जा रहा है। आने वाले दिनों में इसकी गंभीरता बढ़ेगी। तापमान में वृद्धि और चरम मौसमी घटनाओं के मामले में इस दशक के हर साल ने एक नया रिकॉर्ड बनाया। गुजरा दशक केवल मौसम से संबंधित नहीं रहा। लेकिन, बात सिर्फ मौसम की नहीं है। इस दशक ने यह भी बताया कि दुनियाभर मंे लोग अपने वर्तमान और भविष्य को किस तरह देखते हैं।
हम जानते हैं कि संभवतः पिछले किसी भी दशक के मुकाबले आज युवा ज्यादा बेचौन हैं। अमीर मुल्कों में युवा वर्ग चौकन्ना और अनिश्चितताओं से घिरा है, क्योंकि उसे नहीं पता है कि इस गर्म होती दुनिया में वे कैसे खुद को बचाए रखेंगे। इसके साथ ही युवा अपनी नौकरियों को लेकर भी चिंतित हैं क्योंकि उनके देश की समृद्ध अर्थव्यवस्थाएं भी अब कुशल मजदूरों को हटाने लगी हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई यानी कृत्रिम बौद्धिकता) सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि यह भविष्य के गर्भ में है।
एआई जब आएगा, तो दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर लेगा। समस्या यह है कि जब ऐसा होगा तो यह इतनी तेजी से होगा कि नियंत्रण से बाहर हो जाएगा। तब कोई भी इसे नियंत्रित या नियमन करने में सक्षम नहीं होगा। ये एआई म्यूटेंट की तरह है, जिसका अपना जीवन होता है। यह पीढ़ी इंटरनेट और सोशल मीडिया द्वारा सृजित है। लेकिन उसे भी पता है कि यह टूल कितना भी शानदार हो लेकिन इसका नकारात्मक पक्ष भी है। फेक न्यूज से लेकर लोकतंत्र को कमजोर करने तक में इसकी भूिमका होगी। आज इंटरनेट कारोबार का मक्का कहे जाने वाले अमरीका के बहुत सारे युवा नई कंपनियों अमेजन, गूगल और फेसबुक के प्रभाव से खुद को मुक्त करने की पुकार में शामिल हो रहे हैं। मगर, मुझे लगता है कि युवाओं की चिंता यह है कि उन्हें लग रहा है कि बदलाव लाने की शक्ति उनमें नहीं है। यानी जो इन युवाओं के लिए बुनियादी और आवश्यक है, उसे ही समस्या बताया जा रहा है। वे इसे कैसे बदलेंगे? युवा इसको लेकर चिंतित हैं और ऐसा ही होना भी चाहिए।
गरीब मुल्कों में युवाओं को अवसर चाहिए, लेकिन जहां वे रह रहे हैं वहां उनका भविष्य अंधकारमय दिखता है। इसलिए वे वहां से पलायन करना चाहते हैं। गांवों के युवा शहरों में आना चाहते हैं और शहरों से फिर दूसरे देशों में जाना चाहते हैं। वे अपने परिवार की दयनीय हालत से संतुष्ट नहीं हैं। हालांकि, यह भी सही है कि उनके पास औपचारिक शिक्षा नहीं है (क्योंकि सरकार उन्हें शिक्षा मुहैया नहीं करा पाई) फिर भी वे मोबाइल के माध्यम से वर्तमान से ताल मिला रहे हैं। वे सुनहरे अवसर के बारे में जानते हैं और ये भी जानते हैं कि दुनिया उनका इंतजार कर रही है। वे इन अवसरों को भुनाना चाहते हैं और ऐसा उन्हें करना भी चाहिए। वे अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं को लेकर दब्बू नहीं बल्कि आक्रामक हैं। युवा देख रहे हैं कि उनके आसपास की दुनिया ताश के पत्तों की तरह बिखर रही है। उनके किसान पिता दो जून की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पा रहे हैं। खाद्यान उत्पादन में दाम और मौसम का जोखिम बढ़ रहा है और हर मौसम के साथ उन पर कर्ज का बोझ भी बढ़ रहा है। अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि दुनिया के कमोबेश हर हिस्से में चीजें बहुत जल्दी नियंत्रण से बाहर चली जा रही हैं। ईंधन की कीमत में मामूली इजाफा या यूनिवर्सिटी में फीस बढ़ोतरी किसी सरकार को अस्थिर कर सकती है। सेना सड़कों पर आ सकती हैं, गोलीबारी, आगजनी व लूटपाट हो सकती है। दुनिया विस्फोटकों से भरा एक डिब्बा हो गई है, जो आग की भट्टी पर चढ़ी है।
@downtoearth
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