Saturday, February 1, 2020

वृक्ष जो चाँदनी रात में बढ़ाता है जंगल की खूबसूरती

  •   लेडी लेग के नाम से भी जाना जाता है कुल्लू का पेड़
  •   इस चमकदार वृक्ष की पन्ना के जंगलों में मौजूदगी बरकरार


पन्ना बफर के जंगल में  पथरीली जमीन पर खड़ा कुल्लू का पेड़  

। अरुण सिंह 

पन्ना। किस्मत वाले हैं वे लोग जो जंगल, पहाड़ और नदियों के सानिद्ध में कुछ समय गुजारते हैं। क्योंकि इनका सानिद्ध व्यक्ति को न सिर्फ तनाव मुक्त करता है बल्कि उसे तरोताजा और जीवन ऊर्जा से लवरेज भी कर देता है। इस लिहाज से पन्ना जिले के वाशिंदे निश्चित ही भाग्यशाली हैं। 
यहां अन्य दूसरे जिलों की तुलना में औद्योगिक विकास नहीं हुआ, नतीजतन भौतिक समृद्धि का अभाव है। लेकिन आर्थिक विपन्नता के बावजूद यहां के लोगों में एक अलग तरह की समृद्धि है जिसका अनुभव महानगरों में कोलाहल और जानलेवा प्रदूषण के बीच रहने वालों को नहीं हो सकता। पन्ना के लोग कथित विकास से भले वंचित हैं लेकिन शान्ति और सुकून की जिन्दगी जी रहे हैं। पेड़-पौधों, पहाड़ों, नदी-नालों तथा पशु-पक्षियों से उनका नाता बना हुआ है, इसीलिये पन्नावासी भाग्यशाली हैं।
पन्ना के जंगल, पहाड़, गहरे सेहा और कल-कल बहते पहाड़ी नाले सब कुछ बहुत ही सुन्दर और अनूठे हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण अनूठे स्थलों की यहां भरमार है। ऐसा ही एक स्थल है पण्डवन जो पन्ना शहर से महज 15 किमी दूर बराछ गाँव के निकट है। पन्ना टाईगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में आने वाला यह इलाका विगत कुछ साल पूर्व तक सामान्य वन क्षेत्र में आता था, फलस्वरूप यहां का जंगल अवैध कटाई व अनियंत्रित चराई के कारण उजड़ गया। बफर में आने के बाद इस वन क्षेत्र की सुरक्षा बढ़ी, फलस्वरूप यहां के जंगल की रौनक फिर लौटने लगी है। 
पण्डवन स्थित बराछ की पहाड़ी प्राचीन शैल चित्रों के लिये जानी जाती है, इसी पहाड़ी व शैल चित्रों का दीदार करने पिछले दिनों मैं जब यहां पहुँचा तो नाले के किनारे चट्टानों के बीच खड़े एक चमकीले वृक्ष ने बरबस ही मेरा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। असल में चाँदी जैसे चमकदार तने वाले इस वृक्ष को स्थानीय लोग कुल्लू का पेड़ कहते हैं। चाँदनी रात में इस वृक्ष की छटा देखते ही बनती है। जंगल में सैकड़ों वृक्षों के बीच यह वृक्ष रात में अलग ही चमकता हुआ नजर आता है। पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में कुल्लू के पेड़ कई जगह दिख जाते हैं लेकिन एक उजड़े हुये वन क्षेत्र में इस पेड़ की मौजूदगी से सुखद अनुभूति हुई।


गौरतलब है कि संगमरमरी सुन्दरता की वजह से इस वृक्ष को लेडी लेग के नाम से भी जाना जाता है। कुल्लू को उसकी खूबसूरती के चलते ही अंग्रेजों ने लेडी लेग नाम दिया था। अंग्रेज इस चमकदार पेड़ के तने की तुलना गोरी मेम की टाँगों से करते थे, लिहाजा इस पेड़ को लेडी लेग के नाम से भी पुकारा जाने लगा। कुल्लू के पेड़ की पत्तियां अक्टूबर के महीने से पीली पडऩे लगती हैं और दिसम्बर व जनवरी तक पूरी तरह पतझड़ हो जाता है। 
इस समय जब कुल्लू के सभी पत्ते झड़ जाते हैं, तब यइ पेड़ रात के समय अजीब तरह से चमकता हुआ नजर आता है जिसे देख दहशत पैदा होती है। यही वजह है कि कुल्लू के पेड़ को घोस्ट ट्री (भुतिया पेड़) भी कहा जाता है। जब पेड़ से पत्तियां झड़ जाती हैं तभी दिसम्बर से मार्च के बीच इसमें फूल खिलते हैं। फल अप्रैल व मई के महीने में लगते हैं। चमकदार तने वाले कुल्लू के पेड़ से शक्तिवर्धक और औषधीय गुणों वाली गोंद निकलती है। 
पेड़ से अधिक गोंद प्राप्त करने के लिये लोग वृक्ष के तनों पर कुल्हाड़ी से वार भी करते हैं। यही वजह है कि यह अनूठा पेड़ धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर जा पहुँचा है। पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में चूँकि सुरक्षा और निगरानी सख्त होती है, इसलिये वहां कुल्लू के कई विशाल पेड़ शान से मौजूद हैं, लेकिन जिले के उत्तर व दक्षिण वन मण्डल क्षेत्र के जंगलों में जहां-तहां नजर आने वाले कुल्लू के वृक्षों को सुरक्षा और संरक्षण प्रदान किये जाने की आवश्यकता है ताकि चाँदी जैसी चमक बिखेरने वाले इन खूबसूरत वृक्षों का वजूद बना रहे।

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