- बृहस्पति कुण्ड सहित वन क्षेत्रों में चल रही हैं अवैध खदानें
- वनों की अधाधुंध कटाई से पर्यावरण को हो रहा नुकसान
अवैध हीरा खदानों के चलते वन क्षेत्र में हुये उत्खनन का दृश्य। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 40 किमी दूर पहाड़ीखेरा के निकट स्थित प्राकृतिक मनोरम स्थल बृहस्पति कुण्ड सहित आस-पास के जंगलों में बड़े पैमाने पर अवैध हीरा की खदानें चल रही हैं, जिससे वनों से आच्छादित रहने वाला इलाका वीरान हो रहा है। रत्नगर्भा बाघिन नदी बृहस्पति कुण्ड पर गिरती है, फलस्वरूप इस नदी के प्रवाह क्षेत्र में कई किमी की लम्बाई में बेशकीमती हीरे निकलते हैं। इन्हीं हीरों की खोज में यहां पर सैकडों की संख्या में अवैध हीरा की खदानें चल रही हैं, जिससे इलाके का जंगल उजड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि इस गहरे कुण्ड में अनेकों प्राचीन गुफायें भी स्थित हैं। बताया जाता है कि इन गुफाओं के भीतर ऋषि मुनि तपस्या में लीन रहा करते थे। बृहस्पति कुण्ड के पास विद्यमान आश्रम भी इंगित करता है कि किसी समय यह इलाका प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ धार्मिक आस्था का केन्द्र भी रहा है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर इस स्थल में एक विशाल मेला भी भरता है। लेकिन अवैध उत्खनन व जंगल की हो रही अधाधुंध कटाई से इस पुरातात्विक महत्व वाले मनोरम स्थल की रौनक गायब हो रही है। जानकारों का कहना है कि बृहस्पति कुण्ड के जंगल में दुर्लभ किस्म की आयुर्वेेदिक जड़ी-बूटियां प्राकृतिक रूप में प्रचुरता से पाई जाती हैं। इन जड़ी-बूटियों की खोज में आयुर्वेद के ज्ञाता व वैद्य यहां दूर-दूर से आते हैं।
प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण में रूचि रखने वाले लोग इस अनूठे कुण्ड की दुर्दशा को देख आहत हैं। उनका कहना है कि यदि इस स्थल के संरक्षण हेतु प्रभावी कदम न उठाये गये तो आने वाले कुछ वर्षों में यह पूरा इलाका वीरान हो जायेगा। बृहस्पति कुण्ड के आस-पास पाई जाने वाली जड़ी-बूटियां भी जंगल की अधाधुंध कटाई व उत्खनन से विलुप्त हो जायेंगी।
उल्लेखनीय है कि इस गहरे कुण्ड में अनेकों प्राचीन गुफायें भी स्थित हैं। बताया जाता है कि इन गुफाओं के भीतर ऋषि मुनि तपस्या में लीन रहा करते थे। बृहस्पति कुण्ड के पास विद्यमान आश्रम भी इंगित करता है कि किसी समय यह इलाका प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ धार्मिक आस्था का केन्द्र भी रहा है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर इस स्थल में एक विशाल मेला भी भरता है। लेकिन अवैध उत्खनन व जंगल की हो रही अधाधुंध कटाई से इस पुरातात्विक महत्व वाले मनोरम स्थल की रौनक गायब हो रही है। जानकारों का कहना है कि बृहस्पति कुण्ड के जंगल में दुर्लभ किस्म की आयुर्वेेदिक जड़ी-बूटियां प्राकृतिक रूप में प्रचुरता से पाई जाती हैं। इन जड़ी-बूटियों की खोज में आयुर्वेद के ज्ञाता व वैद्य यहां दूर-दूर से आते हैं।
प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण में रूचि रखने वाले लोग इस अनूठे कुण्ड की दुर्दशा को देख आहत हैं। उनका कहना है कि यदि इस स्थल के संरक्षण हेतु प्रभावी कदम न उठाये गये तो आने वाले कुछ वर्षों में यह पूरा इलाका वीरान हो जायेगा। बृहस्पति कुण्ड के आस-पास पाई जाने वाली जड़ी-बूटियां भी जंगल की अधाधुंध कटाई व उत्खनन से विलुप्त हो जायेंगी।
इस संबंध में जब खनिज विभाग से पूछा जाता है तो उनका साफ कहना रहता है कि बृहस्पति कुण्ड के जंगल में पट्टे की हीरा खदानें नहीं चलतीं। इस क्षेत्र में जो भी खदानें चलती हैं वे अवैध हैं, लेकिन वन क्षेत्र होने के कारण इस संंबंध में हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। जिले के वन अधिकारियों का कहना होता है कि यह पूरा इलाका जहां हीरा की खदानें चलती हैं वह सतना जिले में आता है। इस विचित्र भौगोलिक स्थिति के कारण यहां धड़ल्ले से अवैध खदानें चलती हैं और कोई कुछ कहने वाला नहीं है।
जंगलों का तेजी से हो रहा सफाया
जिले में जंगलों का तेजी से सफाया हो रहा है। अवैध वन कटाई पर प्रभावी अंकुश न लग पाने के कारण घने जंगल मैदान में तब्दील हो रहे हैं। वन विभाग के आला अधिकारी निहित स्वार्थों के चलते वन माफियाओं पर नकेल कसने से जहां कतरा रहे हैं वहीं विभाग का मैदानी अमला भी महज खानापूर्ति कर रहा है। नतीजतन जिले का बेशकीमती जंगल नष्ट हो रहा है।जंगल की अवैध कटाई सबसे ज्यादा उत्तर वन मण्डल क्षेत्र में होती है। जलाऊ लकड़ी के नाम पर प्रतिदिन सैकडों गट्ठा लकड़ी जंगल से जहां आती है वहीं इसकी आड़ में सागौन की सिल्लियों का भी परिवहन होता है। वन नाके वसूली नाके में तब्दील हो गये हैं जिससे अवैध कटाई धड़ल्ले से जारी है। यदि वन कटाई पर अंकुश नहीं लगा तो कुछ सालों में जंगल के दर्शन दुर्लभ हो जायेंगे।
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