- पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में क्षमता से अधिक बाघ
- अब बफर में कोर जैसी सुरक्षा व्यवस्था प्रबंधन के लिए बड़ी चुनौती
- जंगल में जगह-जगह अस्थाई कैंप बनाने की हो रही अभिनव पहल
- कैम्पों में तैनात वन श्रमिक जंगल व बाघों की कर रहे निगरानी
पन्ना टाइगर रिज़र्व के अकोला बफर टूरिस्ट ज़ोन में अपने शावक के साथ बाघिन पी-234 |
अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसके चलते टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र यहां जन्मे सभी बाघों को उनके लिए अनुकूल रहवास दे पाने में नाकाम साबित हो रहा है।। बाघों की बढ़ती तादाद के लिहाज से 576 वर्ग किलोमीटर का कोर क्षेत्र काफी छोटा पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में यहां के युवा व बुजुर्ग बाघ अपने लिए नये आशियाना की तलाश में कोर क्षेत्र से बाहर निकलकर बफर के जंगल में पहुंच रहे हैं। कोर क्षेत्र के चारों तरफ 1021.97 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले बफर के जंगल में मौजूदा समय दो दर्जन से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। बफर क्षेत्र में अपने लिए ठिकाना तलाश रहे इन बाघों की निगरानी व उनकी सुरक्षा इस समय पर प्रबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
उल्लेखनीय है कि बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों की नई पीढ़ी को बफर क्षेत्र में अनुकूल माहौल व रहवास उपलब्ध कराना पार्क प्रबंधन की पहली प्राथमिकता बन चुकी है। इसके लिए जरूरी है कि बफर क्षेत्र के बिगड़े हुए वन को सुरक्षित कर उसे सुधारा और संवारा जाये। इस दिशा में टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के एस भदौरिया ने 2 वर्ष पूर्व ही पहल शुरू कर दी थी। उन्होंने भविष्य की जरूरतों व बाघों के रहवास को लेकर आने वाली समस्याओं का पूर्वानुमान लगाते हुए अकोला बफर क्षेत्र से अभिनव प्रयोग की शुरुआत की। बीते 2 सालों में ही यह बिगड़ा और उजड़ा हुआ वन क्षेत्र हरियाली से न सिर्फ आच्छादित हो गया अपितु यहां जल संरचनाओं का भी विकास और संरक्षण हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि इस उजड़े वन क्षेत्र में बड़ी संख्या में चीतल, सांभर, नीलगाय जैसे वन्य प्राणी पहुंच गये और इनके साथ बाघ परिवार का भी आगमन हो गया। मौजूदा समय कई बाघ अकोला बफर क्षेत्र को न केवल अपना ठिकाना बनाये हुये हैं बल्कि बाघिन भी नन्हे शावकों के साथ यहां देखी गई है।
पन्ना बफर क्षेत्र के जंगल में स्थित अस्थाई निगरानी कैम्प में सुरक्षा श्रमिकों को खाद्यान प्रदान करते क्षेत्र संचालक। |
अकोला बफर की कामयाबी से प्रेरित होकर पार्क प्रबंधन द्वारा बफर क्षेत्र के दूसरे इलाकों पर भी ध्यान देना शुरू किया है। क्षेत्र संचालक श्री भदौरिया ने बताया कि बफर क्षेत्र के बिगड़े हुए वन को सुधारने तथा संरक्षित करने के लिए हमने शिकार व अवैध कटाई के लिहाज से संवेदनशील स्थानों पर अस्थाई कैंप बनाकर वहां सुरक्षा श्रमिकों की तैनाती का कार्य नवंबर 18 से शुरू किया था, यह सिलसिला निरंतर जारी है। अब तक बफर क्षेत्र के जंगल में 106 अस्थाई कैंप बन चुके हैं तथा 12 अस्थाई कैंपों को स्थाई कैम्पों में तब्दील किया गया है। इन कैम्पों के बनने तथा वहां पर हर समय सुरक्षा श्रमिकों व वनकर्मियों की तैनाती तथा सतत निगरानी से जहां अवैध कटाई पर अंकुश लगा है वहीं शिकार की घटनायें भी कम हुई हैं। सुरक्षा बढ़ने से जंगल की स्थिति पहले की तुलना में बेहतर हुई है। यह जंगल आने वाले समय में बाघों के लिए अनुकूल माहौल व परिस्थितियां प्रदान करेगा। इससे कोर क्षेत्र में बाघों की अधिक संख्या के चलते उनके बीच जो आपसी संघर्ष की स्थिति निर्मित हो रही है, वह भी कम हो जायेगी।
वन क्षेत्र के ग्रामीणों को किया जा रहा जागरूक
वनकर्मियों के साथ किशनगढ़ बफर के जंगल में गस्त करते हुये ग्रामवासी। |
जंगल व वन्य प्राणियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वन क्षेत्रों के ग्रामों में जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। ग्रामीणों को पर्यावरण संरक्षण की महत्ता और उसके लाभों को बताकर उन्हें जंगल की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिसके बहुत ही सकारात्मक और उत्साहजनक परिणाम आने शुरू हुए हैं। क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के एस भदौरिया बताते हैं कि बफर क्षेत्र के जंगल को सुधार कर उसे बाघों के रहवास लायक बनाना आज की जरूरत है। पन्ना के बाघों को बचाने तथा उन्हें सुरक्षित रखने का यही एकमात्र विकल्प है, क्योंकि बाघों को रहने के लिए सुरक्षित वन क्षेत्र चाहिए। इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए हमने सोशल फेंसिंग के कॉन्सेप्ट पर कार्य करना शुरू किया है ताकि ग्रामीणों की संरक्षण के कार्य में सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने बताया कि बफर क्षेत्र के कई इलाकों में यह अनूठा कॉन्सेप्ट कारगर साबित हो रहा है। ग्रामवासी वन कर्मियों के साथ मिलकर जंगल में गस्ती कर रहे हैं।
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