Wednesday, May 20, 2020

यहाँ न लॉकडाउन का असर न कोरोना का भय

  •  किशनगढ़ रेंज अंतर्गत वन क्षेत्र के ग्रामों में नहीं थमी जिंदगी 
  •  अभूतपूर्व संकट के इस दौर में वनोपज व जंगल बन रहा सहारा


पन्ना टाइगर रिज़र्व के किशनगढ़ रेन्ज अंतर्गत बफर क्षेत्र के गांव कदवारा का द्रश्य। 

अरुण सिंह,पन्ना। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से आम जन - जीवन थम सा गया है। घरों में रहकर भी लोग अनजाने भय से ग्रसित हैं। इस महामारी के बढ़ते प्रकोप के कारण सरकारी कामकाज भी प्रभावित हुआ है, प्रशासनिक अधिकारी कोरोना संक्रमण को रोकने के प्रयासों तथा संक्रमित पाये जाने वाले व्यक्तियों के इलाज की समुचित व्यवस्था करने तथा गरीबों को जीवनोपयोगी सामग्री व खाद्यान्न उपलब्ध कराने में जुटे हैं। लेकिन इस संकट काल में भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां न तो लॉकडाउन का असर है और न ही कोरोना संक्रमण के भय से उनकी जिंदगी में कोई रुकावट आई है। यहां के लोग बिना किसी डर और भय के सहज और स्वाभाविक जिंदगी जी रहे हैं। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व अंतर्गत किशनगढ़ क्षेत्र के ग्रामों का भ्रमण करने पर यह हकीकत सामने आई है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना टाइगर रिजर्व का बफर क्षेत्र पन्ना, छतरपुर व दमोह जिले तक फैला हुआ है। इस 1021.79 वर्ग किलोमीटर वाले विस्तृत क्षेत्र में सैंकड़ों ग्राम हैं। किशनगढ़ रेंज के बफर क्षेत्र की स्थिति का जायजा लिए जाने पर जो हालात देखने को मिले वह मौजूदा संकट के परिप्रेक्ष्य में बेहद चौकाने वाले हैं। इस क्षेत्र में स्थित ज्यादातर ग्रामों के लोगों की जिंदगी खेती किसानी व जंगल तक ही सीमित है। रबी सीजन की फसल लेने के बाद गांव के लोग वनोपज (महुआ, अचार व तेंदूपत्ता) के संग्रहण में जुटे हुए हैं। किशनगढ़ बफर के ग्राम सैपुरा के लोगों ने चर्चा के दौरान कोरोना संकट के सवाल पर बताया कि अभी यहां इस तरह की कोई समस्या नहीं है। शहरों की तरह कोरोना का डर अभी वन क्षेत्र के ग्रामों में नहीं है। लोग पूर्व की तरह ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं। लगभग पौने दो सौ की आबादी वाले इस ग्राम में सामान्य, पिछड़ा वर्ग व आदिवासी समाज के लोग रहते हैं। जबकि इलाके के अन्य ज्यादातर गांव आदिवासी बहुल हैं। इन ग्रामों में बसुधा, भौरकुआं, सुकवाहा, कदवारा, पटोरी, मैनारी, खरियानी व पाठापुर आदि हैं, जहां आदिवासी समाज की बहुलता है। इन ग्रामों के लोगों का जीवन यापन पूरी तरह से खेत व जंगल पर ही निर्भर है। आमतौर पर बाहरी लोगों से इन ग्रामों के लोगों का सीधा संपर्क तक नहीं होता, इस लिहाज से कोरोना संकट के समय भी वन क्षेत्र के गांव भय और तनाव से मुक्त हैं।

किशनगढ़ रेंज के बफर क्षेत्र में है घना जंगल


बफर क्षेत्र में जंगल व वन्य प्राणियों के सुरक्षा की सपथ लेते हुये ग्रामवासी। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में ज्यादातर जंगल पूर्व से ही उजड़ा हुआ है, लेकिन कुछ इलाके आज भी वनों की सघनता और जैव विविधता के मामले में समृद्ध हैं। किशनगढ़ वन परिक्षेत्र का बफर ऐसे ही समृद्ध वन क्षेत्रों में से एक है, जहां का जंगल देखते ही बनता है। पन्ना जिले के अमानगंज वन परिक्षेत्र की सीमा खत्म होते ही किशनगढ़ का जंगल शुरू हो जाता है। किशनगढ़ से पहले जो घाटी पड़ती है वहां से गुजरने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो पन्ना टाइगर रिज़र्व के कोर क्षेत्र से निकली मंडला घाटी से जा रहे हों। घाटी के दोनों तरफ घना मिश्रित वन है जिसे देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। विशेष गौरतलब बात यह है कि इस वन क्षेत्र में प्राकृतिक जल संरचनाओं का जाल बिछा हुआ है, जिससे यहां पानी का भी संकट नहीं है। इस इलाके के प्रतिष्ठित व्यक्ति करण सिंह परमार निवासी संत सलैया ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व का बफर क्षेत्र घोषित होने से पूर्व बिजावर क्षेत्र का यह जंगल शिकार के लिए प्रसिद्ध रहा है। लेकिन बफर क्षेत्र घोषित होने के बाद पिछले 5 सालों में शिकार का एक भी मामला सामने नहीं आया। ग्रामीण इसका श्रेय वन परिक्षेत्र अधिकारी किशनगढ़ राजेंद्र सिंह नरगेश को देते हुए बताते हैं कि रेंजर साहब के प्रयासों से ग्रामीण अब खुद जंगल की रखवाली करने लगे हैं।

जहाँ जंगल नहीं, वहाँ ज्यादा फैल रहा संक्रमण

जंगल व प्रदूषण मुक्त आबोहवा के बीच रहने वालों में इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) अधिक होती है। इस बात का खुलासा वन विभाग के एक अध्ययन से हुआ है। इस अध्ययन में पता चला है कि जिन जिलों में घने जंगल हैं वहां बाहर के लोगों के लगातार आने के बावजूद भी संक्रमण ज्यादा नहीं फैला। जबकि जहां जंगल कम है वहां न सिर्फ तेजी से संक्रमण फैला है बल्कि अपेक्षाकृत वहां मौतें भी अधिक हुई हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो पन्ना जिले के लोग किस्मत वाले हैं, क्योंकि यह जिला न सिर्फ औद्योगिक प्रदूषण से मुक्त है अपितु एक बड़ा क्षेत्र वनों से आच्छादित भी है। वैज्ञानिकों का भी यह कहना है कि जिन क्षेत्रों में हवा ज्यादा जहरीली है वहां रहने वालों के साफ हवा के क्षेत्रों की तुलना में कोरोना वायरस से संक्रमित होने की ज्यादा संभावना है। वैज्ञानिकों के मुताबिक वायु प्रदूषकों के महीन कण शरीर के अंदर तक प्रवेश कर जाते हैं। जिनके कारण ब्लडप्रेशर, सांस लेने की तकलीफ, हृदय रोग और मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। कोविड-19 से संबंधित ज्यादातर मौतों के लिए एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम मुख्य रूप से जिम्मेदार है। जिसके कारण पहले से ही वायु प्रदूषण का कहर झेल रहे लोगों के लिए यह संक्रमण खतरनाक हो सकता है। अब हमें यह तय करना होगा कि इस महामारी के बाद हमें कैसी दुनिया चाहिये ? जिस पर लगातार इस तरह की बीमारियों का खतरा बना रहता हो या फिर ऐसी जहां आने वाली पीढ़ियां साफ हवा में चैन भरी जिंदगी बसर कर सकें।
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