Tuesday, May 26, 2020

गर्मी में वन्य प्राणियों के लिये जीवनदायी बने प्राकृतिक जलश्रोत

  •  पन्ना टाइगर रिज़र्व में वन्य प्राणियों की प्यास बुझाने किये गये अभिनव प्रयास
  •   सूखे पुराने जलश्रोतों को किया गया पुनर्जीवित, नवनिर्मित तालाब भी बने सहारा


भीषण गर्मी में प्यास बुझाने के बाद पानी की शीतलता का आनंद लेती बाघिन। 

। अरुण सिंह 

पन्ना। भीषण तपिश भरी गर्मी में जब तापमान का पारा 45 डिग्री सेल्सियस के पार जा रहा है, उस समय मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में वन्य प्राणियों को अपनी प्यास बुझाने के लिये ज्यादा भटकना नहीं पड़ रहा। पन्ना टाईगर रिजर्व के तकरीबन 576 वर्ग किमी. वाले कोर क्षेत्र में हर दो से चार वर्ग किमी. के दायरे में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पार्क प्रबन्धन द्वारा अभिनव प्रयास किये गये हैं। 

जल संकट वाले इलाकों में पुराने सूख चुके जल श्रोतों को चिह्नित कर वहां पर खुदाई करने से वे  पुनर्जीवित हो उठे हैं। इन जलश्रोतों में प्राकृतिक रूप से पानी आ जाने से अब हिनौता व पन्ना वन परिक्षेत्र के वन्य प्राणियों को पानी की तलाश में भटकना नहीं पड़ रहा है। जिन स्थानों में ऐसे श्रोत विकसित नहीं हुये वहां टैंकरों से गड्ढों को भरकर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि तापमान में हो रही  वृद्घि को देखते हुये पन्ना टाईगर रिजर्व क्षेत्र के वन्य प्राणियों को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए विशेष इंतजाम किये जा रहे हैं।  केन नदी के दोनों तरफ 576 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले पन्ना टाईगर रिजर्व में बीते 10 वर्षों के दौरान वन्य प्राणियों की संख्या में तेजी से वृद्घि हुई है। वर्ष 2009 में बाघों का यहाँ पर पूरी तरह से खात्मा होने के बाद बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पन्ना में बाघों का संसार एक बार फिर आबाद हो  गया है। 

मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों का भरा पूरा कुनबा पूरे इलाके में स्वच्छन्द रूप से विचरण करता है। बाघों के अलावा पन्ना टाईगर रिजर्व में मांसाहारी वन्य प्राणियों में तेंदुआ, हाइना, सोनकुत्ता, सियार, भालू आदि के साथ शाकाहारी वन्य प्राणी सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा,चौसिंगा, जंगली सुअर आदि बहुतायत से पाये जाते हैं। 

पन्ना टाईगर रिजर्व में केन नदी उत्तर से दक्षिण की ओर लगभग 55 किमी. की लम्बाई में बहती है। किन्तु भौगोलिक क्षेत्र विशिष्ट प्रकार का होने  से वन्य प्राणियों को पेयजल की कमी अप्रैल व मई के महीने में होने लगती थी। इस समस्या को द्रष्टिगत रखते हुए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने  संकटग्रस्त इलाकों में सौसर का निर्माण कराया गया है, जिनमें टैंकरों से पेयजल की आपूर्ति की जा रही है।  यह व्यवस्था बारिश शुरू होने तक जारी रहेगी।

बफरजोन में भी वन्य प्राणियों को मिल रहा पानी 


जंगल में बनवाये गये सौंसर में पानी पीने बैठा बाघ। 

पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में प्राकृतिक जल श्रोतों को विकसित कर व अन्य वैकल्पिक व्यवस्था करके पेयजल की उपलब्धत सुनिश्चित की गई है। लेकिन बफरजोन क्षेत्र का बहुत  बड़ा इलाका जल संकट की समस्या से जूझ रहा था। जल संकट से ग्रसित इन इलाकों में भी पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी पहल की गई है। 

क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व के.एस. भदौरिया ने बताया कि एक हजार वर्ग किमी. से भी अधिक क्षेत्र में फैले बफर क्षेत्र के जंगल में मौजूदा समय डेढ़ दर्जन से भी अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं। इन बाघों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ बफर क्षेत्र में पर्याप्त जलश्रोत विकसित करना हमारी प्राथमिकता रही है, जिसमे काफी हद तक सफलता मिली है। 

हमने जंगल में उपयुक्त स्थलों का चयन कर छोटे तालाबों का निर्माण कराया है, जहाँ मई के महीने में भी पानी भरा है।नवनिर्मित ज्यादातर तालाबों में प्राकृतिक श्रोत हैं जिससे उनमें पर्याप्त पानी बना हुआ है। यही वजह है कि इस प्रचण्ड गर्मी में भी वन्य प्राणियों को पानी की तलाश में दूर-दूर तक भटकना नहीं पड़ रहा।

लबालब भरा है किशनगढ़ बफर का स्टापडैम 


किशनगढ़ बफर क्षेत्र के खजरा नाले में बने स्टापडैम का नजारा। 

पन्ना टाइगर रिज़र्व के किशनगढ़ बफर क्षेत्र का जंगल गर्मी के इस मौसम में वन्य प्राणियों को खूब रास आ रहा है। इसकी वजह इलाके के जंगल में पानी की प्रचुर उपलब्धता है। बफर क्षेत्र से होकर गुजरने वाले खजरा नाले में पार्क प्रबंधन द्वारा स्टापडैम का निर्माण कराया गया था जो मई के महीने में भी लबालब भरा हुआ है। यह स्टापडैम न सिर्फ वन्य प्राणियों अपितु मवेशियों के लिये भी गर्मी में सहारा बना हुआ है। 

वन परिक्षेत्राधिकारी किशनगढ़ राजेन्द्र सिंह नरगेश ने बताया कि स्टापडैम से तक़रीबन 3 किमी. दूर स्थित बिला गांव के लोग भी यहाँ नहाने धोने आते हैं। विशेष गौरतलब बात यह है कि इस इलाके का जंगल तेंदुओं का प्रिय रहवास स्थल है। आलम यह है कि यहाँ आये दिन ग्रामीणों को तेंदुआ दिखते हैं, लेकिन ग्रामीणों और वन्य प्राणियों के बीच किसी तरह का संघर्ष व तनाव नहीं है। यह इलाका सहअस्तित्व का शानदार उदाहरण है। 

ग्राम सलैया के चन्दू यादव ने बताया कि कुछ दिनों पूर्व वह खेत में बनी झोपड़ी में रात को जब सोने के लिये गया तो देखकर हैरान रह गया, क्योकि उसके बिस्तर में नर व मादा तेंदुआ आराम फरमा रहे थे। चन्दू ने बताया कि यह नजारा देख वह चुपचाप लौट आया और दूसरे खेत में जाकर सोया।

जल श्रोतों की पूरे समय की जाती है निगरानी 


 वन्य प्राणी इस तपिश भरी गर्मी में अपनी प्यास बुझाने के लिये आसपास उपलब्ध जलश्रोतों में जरूर जाते हैं, ऐसी स्थिति में शिकार की संभावना भी बनी रहती है। इस बात को दृष्टिगत रखते हुये नये जलश्रोतों का विकास करने के साथ-साथ शिकारियों पर चौकस नजर रखने व निगरानी की चुस्त व्यवस्था हेतु बफर के जंगलों में जगह-जगह अस्थाई कैम्प बनाये गये है जहाँ वनकर्मियों की तैनाती रहती है। 

ये वनकर्मी जंगल में गस्त करने के साथ शिकारियों की गतिविधि पर चौकस नजर रखते हैं। बफर क्षेत्र में अब तक 106 अस्थाई कैम्प बनवाये जा चुके हैं। अस्थाई कैम्प दर्रा के वन श्रमिक राजाराम ने बताया कि बीती रात्रि कैम्प के सामने से होकर बाघ निकला है। उसने बाघ के पगमार्क भी दिखाये और बताया की कई बाघ इलाके के जंगल में विचरण कर रहे हैं।

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