Tuesday, May 26, 2020

हवा के साथ आंधी की तरह आगे बढ़ रहा टिड्डी दल

  •  पन्ना व सतना जिले को पारकर रीवा और सीधी की ओर 
  •  सतना में केमिकल अटैक कर किया गया टिड्डियों को ढेर 


सतना जिले में केमिकल अटैक करके इस तरह टिड्डी दल को किया गया ढेर। 

अरुण सिंह,पन्ना। प्रदेश के विभिन्न जिलों में आतंक मचाने के बाद टिड्डी दल हवा की दिशा में सावर होकर आंधी की तरह आगे बढ़ रहा है। पन्ना व सतना जिले को पारकर हरियाली का दुश्मन टिड्डियों का यह विशाल झुण्ड तेज गति से बढ़ते हुए  रीवा, सीधी व सिंगरौली की ओर अग्रसर हुआ है। पन्ना और सतना जिले में प्रशासनिक सजगता व किसानों की सक्रियता के चलते यह दल ज्यादा नुकसान नहीं कर पाया। यहाँ के लोगों ने विविध उपायों के जरिये टिड्डियों को खदेड़ने में कामयाबी पाई है। सतना में तो केमिकल अटैक करके टिड्डियों के इस दल के बड़े हिस्से को ढेर कर दिया गया है। इसके बावजूद करोङों की संख्या में टिड्डियाँ हरियाली को सफाचट करते हुए आगे बढ़ रही हैं।
उल्लेखनीय है कि आतंक का पर्याय बन चुके  इस तरह के टिड्डी दल का मुकाबला सबसे ज्यादा राजस्थान के लोग करते हैं।  डॉ. मनोज यादव बताते हैं कि इस टिड्डी दल की खास बात यह है कि ये दिन में केवल उड़ती है, इनको थाली, परात बजाकर भगाते रहो। लेकिन रात्रि 8 बजे के लगभग ये सभी अपना पड़ाव डालती हैं और सुबह 8 बजे तक पड़ी रहती  हैं। उस समय जो टिड्डिया जमीन पर रहती  हैं और जमीन में यदि नमी है तो अंडे भी दे सकती हैं। इनमे देखने वाली बात यह है कि जो टिड्डी भूरे या गुलाबी रंग की है वो अंडा नही देगी लेकिन जिसका रंग पीला है उसकी पूरी सम्भवना है कि या तो इसने पिछली रात अंडे दे दिए या इस रात देगी। इनको मारने के लिए सुबह 4 बजे का इंतजार न करें जैसा कि टिड्डी कंट्रोल बोर्ड वाले कहते  हैं बल्कि रात्रि 12 बजे से ही दवाई डालना शुरू कर दें । तो सुबह तक एक दल पर लगभग 50 प्रतिशत काबू पाया जा सकता है। अंडे देने पर जो बच्चे निकलते  हैं उनको फाका कहते हैं। ये फाका स्टेज ही सबसे ज्यादा खतरनाक होती है। इसपर नियंत्रण पा लिए तो समझो टिड्डिया कंट्रोल हो गई। कीटनाशक पर्याप्त मात्रा में व समय पर न  छिड़कने पर ये 2 प्रतिशत तक ही नियंत्रित होती हैं। जैसा कि बताया ही है दिन में भगाने के लिए धातु के बर्तन जैसे थाली, परात, प्लास्टिक के बड़े ड्रम व टिन के कंटेनर बजायें। मारने के लिए रात्रि में बैठने के बाद कीटनाशकों का छिड़काव करें।
सतना के वरिष्ठ पत्रकार सुरेश दाहिया जो खेती किसानी पर केन्द्रित ख़बरें करते हैं उनका कहना है कि ये मध्यप्रदेश में अंडे नही दे पायेंगी। अपने यहाँ की मिट्टी काली व भारी है, इनको डेजर्ट लोकस्ट कहते हैं यानी ये रेतीली मिट्टी में ही अंडे दे पाती हैं। भारत मे इनका प्रजनन समय राजस्थान को छोड़कर जुलाई अगस्त होता है, लेकिन राजस्थान, गुजरात के कच्छ व पाकिस्तान से लेकर अफ्रीका तक जंहा से आती हैं इनका प्रजनन साल में तीन बार होता है। यानी फाका से अडल्ट होते ही देने लगती है। बारिश शुरू होने पर मानसूनी हवाओ के प्रेसर से या तो वापस पश्चिम को भाग जाती हैं या उड़ना बन्द कर देती हैं। राजस्थान के जैसलमेर व बाड़मेर जिले में अमूमन ये हर साल आती हैं लेकिन इस बार जो 21 मई 2019 को आई तो वापस जाने का नाम नही ले रहीं और लगातर आ रही हैं। इसका कारण ईरान, इराक, पाकिस्तान के द्वारा इनका  प्रभावी नियंत्रण न करना है।

 जीवन सामान्यतया 3 से 6 माह

कीट विशेषज्ञों के अनुसार, टिड्डियों का जीवन सामान्यतया 3 से 6 माह का होता है। अनुकूल परिस्थितियां और भोजन मिलने पर यह 6 माह तक जीवित रह सकती हैं। नमी वाले क्षेत्र में टिड्डियां अंडे देती हैं। टिड्डी एक बार में 20 से 200 तक अंडे देती हैं। मादा टिड्डी जमीन में छेदकर अपने अंडों को सहेजती हैं।     गर्मी में 10 से 20 दिन में अंडे फूट जाते हैं। वहीं सर्दियों में यह अंडे प्रशुप्त रहते हैं। शिशु टिड्डी के पंख नहीं होते और अन्य बातों में यह वयस्क टिड्डी के समान होती है।
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