Saturday, May 9, 2020

कोरोना संकट: आयुर्वेद के उत्साहजनक नतीजों से दिखी उम्मीद की किरण



आयुर्वेद में गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज है। संक्रमण से जूझने के लिए आयुर्वेद में भी कई औषधियां मौजूद हैं। ये औषधियां किसी साइड इफेक्ट के बगैर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं, जो गंभीर बीमारियों से लड़ने के लिए आवश्यक है। आयुष मंत्रालय के तहत हुए कुछ प्रयोगों के दौरान देखा गया कि जिन लोगों ने क्वारंटीन की अवधि में कम से कम सात दिन आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक दवा ली, उन सभी मरीजों में संक्रमण नहीं बढ़ा और वे रोगमुक्त हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘मन की बात’ में हाल ही इनोवेटिव इंडिया मुहिम से जोड़कर परंपरागत आयुर्विज्ञान को बढ़ावा देने पर जोर दिया था। आयुष मंत्रालय के शोधों में सामने आ रहे उत्साहजनक नतीजों ने उम्मीद की किरण दिखाई है।

क्वारंटीन में काढ़े फायदेमंद

मंत्रालय के दिशा-निर्देशों में कहा गया है, क्वारंटीन के दौरान लोग आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों वाले काढ़ों और कुछ होम्योपैथिक दवाइयों का प्रयोग फायदेमंद है। आयुर्वेद के मौलिक सिद्धांतों का चिकित्सा विज्ञान के मानकों पर तकनीकी अध्ययन की यह गंभीर शुरुआत है। इससे रोजगार के बड़े अवसर सृजित होंगे और रिसर्च करने के लिए देश के युवा और चिकित्सा जगत के विशेषज्ञ आकर्षित भी होंगे। प्रधानमंत्री की पहल पर मंत्रालय ने आधुनिक चिकित्सा के मानकों पर आयुर्वेद के चिकित्सा सूत्रों को अपनाया है।

औषधियों पर शोध

पहले भी स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत परंपरागत भारतीय औषधि विभाग गठित कर सचिव तैनात किया गया था। इसके बावजूद एलोपैथी के मुकाबले आयुर्वेद से दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा। पहली बार सरकार ने आईएएस की जगह आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. राजेश कोटेचा को सचिव नियुक्त किया। इसके बाद कई नए शोधकार्यों को गति मिली। कोटेचा की पहल पर ही एक प्रकार के रक्त कैंसर एक्यूट प्रोमाइलोसिटिक ल्यूकेमिया के इलाज में दिवंगत चंद्रप्रकाश द्वारा विकसित रसौषधि पर शोध करके, उसे प्रभावी पाया गया। इसके बाद इस औषधि के वैज्ञानिक विकास का रास्ता साफ हुआ।

बजट बढ़ने के बाद से मिली आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार को गति

पहले आयुर्वेद के नगण्य बजट के कारण इस पद्धति के विकास, प्रचार-प्रसार को गति नहीं मिली। वर्ष 2014-15 में आयुष का बजट 1069 करोड़ रु था, वहीं 2020-21 में 2122.08 करोड़ रु है। 1956 में दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना की गई थी। सात दशक के बाद आज भी एम्स परिसर में आयुर्वेद नाम का कक्ष ढूंढने से भी नहीं मिलता। अब राजधानी में लगभग 10.015 एकड़ क्षेत्र में 157 करोड़ रुपये की लागत से अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान की स्थापना हुई है।

 वैज्ञानिकों का दावा, कोविड संक्रमण को रोकेगी ये एंटीबॉडी


कोरोना वायरस को लेकर हो रही रिसर्च में यह बात तो प्रमाणित हो चुकी है कि संक्रमण से लड़ने में एंटीबॉडी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन वह एंटीबॉडी हो कैसी, जो कोरोना को रोकने में कारगर हो। नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी एंटीबॉडी की खोज की है, जो कोरोना वायरस का संक्रमण रोकती है। 47D11 नाम की इस एंटीबॉडी के बारे में दावा किया जा रहा है कि यह कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को ब्लॉक कर देती है। मालूम हो कि इसी स्पाइक प्रोटीन से कोशिकाओं को जकड़कर कोरोना शरीर में संक्रमण फैलाता है और फिर अपनी संख्या बढ़ाता जाता है। यह खोज नीदरलैंड की यूट्रेच्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की है।

नीदरलैंड्स के वैज्ञानिकों ने चूहों पर प्रयोग करते हुए इस  47D11 एंटीबॉडी की खोज की है। उन्होंने शोध के दौरान पाया कि चूहों की कोशिकाओं में मौजूद यह एंटीबॉडी कोरोना के प्रोटीन को पकड़कर ब्लॉक करती है और उसका असर खत्म कर देती है। यह एंटीबॉडी कोरोना वायरस को मानव शरीर में पहुंचने में मदद करने वाली ।ACE2 एंजाइम को जकड़ लेती है। शोधकर्ताओं का दावा है कि यह एंटीबॉडी कोरोना मरीजों के इलाज में विशेष रूप से मददगार साबित होगी।

एंटीबॉडी क्या होती है?

एंटीबॉडी प्रोटीन से बनीं इम्यून कोशिकाएं होती हैं। शरीर में कोई बाहरी चीज पहुंचते ही यह अलर्ट हो जाती है। बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण होने पर यह जीवाणु या विषाणु के विषैले पदार्थों को निष्क्रिय कर देती है। इस तरह यह हमारे शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली के तौर पर कार्य करती है और संक्रमण के असर को खत्म करती है।

चूहों पर हुआ शोध

नीदरलैंड के शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में अलग-अलग कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन को चूहे की कोशिकाओं में इंजेक्ट किया। इन वायरसों में सार्स, मर्स, SARS-CoV2 जैसे वायरस शामिल थे। कोरोना संक्रमण से लड़ने वाली करने वाली चूहे की 51 एंटीबॉडीज को शोधकर्ताओं ने अलग किया, जिनमें से केवल 47D11 नाम की एंटीबॉडी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में सफल हुई।

असरदार साबित होगी एंटीबॉडी

शोधकर्ताओं का दावा है कि मानव शरीर में यह एंटीबॉडी पहुंचाई जाए तो यह वायरस संक्रमण के तरीके को बदल देगी और संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में वायरस को फैलने से रोकेगी। शोधकर्ता प्रोफेसर बर्नंड-जेन बॉश का दावा है कि यह दोनों कोरोनावायरस SARS-CoV और SARS-CoV2) का संक्रमण रोकने में यह एंटीबॉडी कारगर है। इसके प्रयोग से बढ़ते कोरोना संक्रमण को भी काफी हद तक रोका जा सकेगा।
(साभार: अमर उजाला)
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