- रेडियो कॉलर वाली बाघिन का सड़ी गली हालत में मिला कंकाल
- 10 वर्षीय इस बाघिन ने 6 बार दिया है शावकों को जन्म
- पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने में इसका है अहम योगदान
- संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत से पार्क प्रबंधन में हड़कंप
।। अरुण सिंह, पन्ना ।।
बाघिन पी-213 का सड़ चुका शव जो ट्रैकिंग दल को मिला। |
मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की सबसे ज्यादा चर्चित और चहेती बाघिन पी- 213 की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत से बाघों की सुरक्षा और निगरानी व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। पन्ना में बाघों के उजड़ चुके संसार को आबाद करने में अतुलनीय योगदान देने वाली इस बाघिन की अचानक मौत होने की खबर से पार्क प्रबंधन में हड़कंप मचा हुआ है। रेडियो कॉलर युक्त इस बाघिन के मृत शरीर का सड़ा गला अवशेष पन्ना कोर क्षेत्र के तालगांव सर्किल में रविवार की सुबह ट्रैकिंग दल को मिला है। रेडियो कॉलर वाली ब्रीडिंग टाइगर का इस तरह सड़ गल चुका अवशेष मिलने से बाघों की सुरक्षा और मॉनिटरिंग सिस्टम के क्रियान्वयन को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
बाघिन की मौत के इस सनसनीखेज मामले के संबंध में पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया ने जानकारी देते हुये बताया कि बाघिन पी- 213 का शव पन्ना कोर परिक्षेत्र के बीट महुआ मोड़ कक्ष क्रमांक पी 1345 में तालगांव से महुआमोड़ वनमार्ग पर बाघ अनुश्रवण दल को मिला है। मौके पर तहकीकात करने पर बाघिन के शव को घसीटने के निशान भी पाये गये हैं। उन्होंने बताया कि घसीटने के निशान का पीछा करने पर एक स्थान पर बाघों के आपसी मुटभेड़ के चिन्ह मिले हैं, जिससे प्रतीत होता है कि बाघिन की मृत्यु आपसी लड़ाई में हुई है। यदि इसे सच मान भी लिया जाय तब भी सवाल यह उठता है कि रेडियो कॉलर वाली बाघिन जिसकी चौबीसों घण्टे निगरानी होती है, उसका किसी बाघ से संघर्ष होने पर ट्रैकिंग दल को इसकी जानकारी क्यों नहीं हुई ? बाघिन का शव सड़कर कंकाल में तब्दील हो गया फिर भी ट्रैकिंग दल घटना से अनजान बना रहा। क्या यह मॉनिटरिंग सिस्टम की असफलता या कहें घोर लापरवाही नहीं है ? उल्लेखनीय है कि बाघिन पी-213 पन्ना टाइगर रिजर्व की सबसे ज्यादा चर्चित और चहेती बाघिन थी। तालगांव रेस्ट हाउस में आराम फरमाते हुए इस बाघिन की फोटो बीते माह सुर्खियों में रही है। स्वभाव से बेहद सीधी और पर्यटकों को सहजता से दिख जाने वाली यह बाघिन कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया, इसलिए लोग इसे पन्ना की रानी कहकर पुकारते थे। पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघों से आबाद करने में अहम भूमिका निभाने वाली बाघिन पी- 213 बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत कान्हा से लाई गई बाघिन टी-2 की संतान है। बाघिन टी-2 ने अक्टूबर 2010 में इसी वन परिक्षेत्र में इसे जन्म दिया था।
बाघिन की दो-तीन दिन पूर्व हो चुकी थी मौत
बाघिन पी- 213 की मौत का सबसे ज्यादा चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इसकी मौत दो-तीन दिन पूर्व ही हो चुकी थी। लेकिन ट्रैकिंग दल सहित पन्ना टाइगर रिजर्व के जिम्मेदार अधिकारियों को इसकी भनक नहीं लग सकी। मालूम हो कि वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था। उस समय यहां बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। यह योजना बेहतर प्रबंधन और चुस्त मॉनिटरिंग सिस्टम के चलते कामयाबी की मिसाल कायम कर दी। मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र सहित बफर व टेरिटोरियल के जंगल में 60 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। बाघों की यह संख्या पन्ना टाइगर रिजर्व के इतिहास में सर्वाधिक है। लेकिन अब इन बाघों की सुरक्षा पार्क प्रबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
बाघिन की मौत से कैसे अनजान रहा ट्रैकिंग दल
घटना के बाद सबसे अहम सवाल यह उठता है कि रेडियो कॉलर वाले बाघों की जब चौबीसों घंटे ट्रैकिंग दल द्वारा आधुनिक उपकरणों के माध्यम से निगरानी की जाती है तो फिर बाघिन की मौत होने पर ट्रैकिंग दल कैसे अनजान बना रहा ? दो-तीन दिन पूर्व 10 वर्षीय बाघिन की मौत हो जाती है और वन्य प्राणी उसके मृत शरीर को खाते व घसीटते हैं लेकिन ट्रैकिंग दल को इसकी भनक तक नहीं लग पाती। पूर्व क्षेत्र संचालक आर श्रीनिवास मूर्ति के समय यहां जो ट्रैकिंग सिस्टम था उसके मुताबिक रेडियो कॉलर वाले बाघ या बाघिन की रिपोर्ट ट्रैकिंग पार्टी से लेकर रेंजर, एसडीओ, डिप्टी डायरेक्टर व फील्ड डायरेक्टर तक को होती रही है। लेकिन मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व में किस तरह का ट्रैकिंग सिस्टम लागू है यह समझ से परे है।
बाघिन पी- 213 ने 6 बार दिया शावकों को जन्म
नर बाघ पी-111 के साथ बाघिन पी-213 की फ़ाइल फोटो। |
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