पन्ना। घर के आंगन में गमले पर लगा क्रिसमस ट्री खूबसूरत पक्षियों का बसेरा बनेगा, इसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। मई के महीने में गौरैया से भी छोटे पक्षियों का जोड़ा अक्सर आंगन में आने लगे। इस पौधे की एक शाखा पर अपनी नुकीली चोंच से कई दिनों तक यह पक्षी कुछ करते रहे। सुबह चाय पीते हुए इन पक्षियों के दर्शन कर मन प्रफुल्लित हो जाता लेकिन इनकी मंशा क्या है यह समझ में नहीं आता। पक्षियों के इस जोड़े में एक चमकीला गहरा नीला वह बैगनी रंग का तथा दूसरा भूरे रंग का है। चमकीला और आकर्षक दिखने वाला पक्षी नर व भूरे रंग वाला पक्षी मादा है।
कई दिनों तक निरंतर यह जोड़ा क्रिसमस ट्री की शाखा में लटक - लटक कर अथक श्रम करते रहे। तकरीबन 10 दिन में पौधे की शाखा से एक जाल सी संरचना लटकने लगी, जिसे बनाने में इन पक्षियों ने घास फूस के अलावा भी तमाम तरह की सामग्री का उपयोग किया। अभी भी हम समझ पाने में नाकाम रहे कि आखिर यह पक्षी यहां आकर करते क्या हैं और इतना श्रम क्यों कर रहे हैं। लेकिन जालनुमा यह संरचना जब आश्चर्यजनक रूप से एक थैली की तरह नजर आने लगी तब हमें एहसास हुआ कि पक्षियों ने पौधे की शाखा पर घोंसला बनाया है।
जून के पहले सप्ताह में घोंसला बनकर तैयार हो गया और भूरे रंग वाला पक्षी इस घोसले में बसेरा भी करने लगा। दो-चार दिन बाद ही हमें एहसास हुआ कि घोसला खाली नहीं है उसमें अंडे भी हैं। पक्षियों का यह बसेरा हमारे उत्सुकता और आकर्षण का केंद्र बन गया। प्रतिदिन हम छिपकर पक्षियों की गतिविधि पर नजर रखते रहे। एक दिन तेज हवा के साथ जमकर बारिश शुरु हुई, हवा के झोंकों से क्रिसमस ट्री भी झूमने लगा।मौसम के तेवरों को देख ऐसा लगा कि गमले के पौधे में लटका पक्षियों का यह घोसला आज नहीं बच पाएगा।
घर के आँगन में गमले पर लगे क्रिसमस ट्री की डाल से लटकता खूबसूरत पक्षी सनबर्ड का घोसला। |
सुबह बारिश थमते ही दौड़कर मैंने जब पौधे को देखा तो घोंसला सुरक्षित था। निश्चित ही मेरे लिए यह आश्चर्य चकित कर देने वाला सुखद अनुभव था। अब घोंसले के अंडे भी फूट चुके हैं जिनसे चूजे निकल आए हैं। इन चूजों की आवाज घोसले से बाहर आने लगी है। मादा पक्षी ज्यादातर चूजों की सुरक्षा हेतु घोंसले के भीतर ही रहती है। यदा-कदा तेज गति से बाहर जाती है और जल्दी ही वापस लौट आती है।
नर पक्षी घोसले के भीतर तो नहीं जाता लेकिन दिन में कई बार खाने की सामग्री चोंच में लेकर आता है और मादा पक्षी के सुपुर्द कर फुर्र हो जाता है। अब इन दो खूबसूरत पक्षियों की जीवनचर्या को सजगता से देखना मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। पक्षी भी अब मेरी मौजूदगी से असहज नहीं होते, मादा पक्षी पूरे इत्मीनान के साथ घोसले में बैठी रहती है।
पक्षी दर्शन व उनकी पहचान करना भी एक रोमांचक अनुभव होता है। अपने आसपास के परिवेश पर यदि सजगता से देखें तो न जाने कितने अनजाने परिंदे उड़ते फुदकते नजर आ जाएंगे। पक्षियों को निहारना और उनकी पहचान करना अब मेरा न सिर्फ शौक बन गया है, बल्कि इसमें आनंद भी आता है। अवर टाइगर रिटर्न पुस्तक के लेखक व मेरे मित्र पियूष सेखसरिया ने पक्षी दर्शन के लिए मुझे एक बाइनाकुलर व डॉ. सलीम अली की सुप्रसिद्ध पुस्तक भारत के पक्षी भेंट की है, जो पक्षी दर्शन के शौक में काफी मददगार साबित हो रही है। हां तो हम बात कर रहे हैं छोटे चमकदार पक्षी पर्पल सनबर्ड की। डॉक्टर सलीम की पुस्तक में इस खूबसूरत पक्षी का वर्णन कुछ इस प्रकार है-
पक्षी का अंग्रेजी नाम पर्पल सनबर्ड व हिंदी में शकरखोरा
प्रजनन काल में नर का मुख्य रंग गाढ़ा धात्विक नीला और बैगनी, जो दूर से काला दिखता है। छाती के दोनों ओर उज्जवल पीले व गुलाली परगुच्छ। प्रजनन काल को छोड़कर नर व मादा समान, ऊपरी भाग भूरे या जैतूनी भूरे, निचले भाग मलिन फीके पीले परंतु नर के पंख का रंग मादा से गाढ़ा व छाती पर लंबी चौड़ी काली मध्य रेखा। जोड़ों में खुले जंगल में बिहार। यह पक्षी समस्त भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार में पाया जाता है। माप व रंग व्यवस्था के आधार पर तीन उप प्रजातियां मान्य हैं।
जीवनशैली - बगीचों, उपवन, खेत, झाड़ीदार व छोटे पेड़ों के खुले जंगल में बिहार। आहार - कीट, मकड़ियाँ और मुख्यतः मकरंद। लंबी नीचे को मुड़ी, पतली चोंच व नली जैसी जीभ द्वारा आसानी से फूलों का मकरंद पीता है। उसी समय फूलों के पर - परागण में सहायक होता है। मादा अकेले नीड रचती व अंडे सेती है। परंतु नीड का पोषण करने में नर भी सहायता करता है।
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