Wednesday, July 29, 2020

पन्ना में अनूठे अंदाज में मनाया गया अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस

  •  पहले केक काटा फिर बाघों की मौत पर जताया विरोध 
  •  पन्ना परिवर्तन मंच ने प्रदर्शन कर पार्क प्रबंधन को चेताया 


पन्ना परिवर्तन मंच से जुड़े लोग पन्ना टाइगर रिज़र्व कार्यालय परिसर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुये। 

अरुण सिंह,पन्ना। बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता को लेकर देश और दुनिया में ख्यातिलब्ध हो चुके मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में बीते एक माह के दौरान दो बाघों व एक तेंदुआ की हुई संदिग्ध मौत का मामला सुर्ख़ियों में बना हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के दो दिन पूर्व टाइगर रिज़र्व के कोर क्षेत्र में एक 5 वर्ष के नर बाघ का कई दिन पुराना सड़ा-गला शव मिला था, जिसको लेकर पन्नावासियों व पर्यावरण प्रेमियों ने टाइगर रिज़र्व की निगरानी व्यवस्था पर सवाल उठाते हुये चिंता जाहिर की है। पन्ना के बाघों की सुरक्षा को लेकर पर्यावरण प्रेमियों की इस चिंता का असर आज अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर भी दिखाई दिया। पर्यावरण व बाघ संरक्षण तथा पन्ना के रचनात्मक विकास के लिये समर्पित पन्ना विकास मंच से जुड़े लोगों ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर केक काटकर बाघों के संरक्षण का जहाँ संकल्प लिया वहीँ दो बाघों की मौत पर असंतोष प्रकट करते हुये शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन भी किया।
उल्लेखनीय है कि बाघों के संरक्षण को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करने की मंशा से हर साल 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाने का फैसला साल 2010 में सेंट पिट्सबर्ग बाघ समिट में लिया गया था क्योंकि तब जंगली बाघ विलुप्त होने के कगार पर थे। पर्यावरणविदों का मानना है कि जब हम बाघ की रक्षा करते हैं तो हम पूरे परिस्थितिकी तंत्र को भी बचाते हैं। यही वजह है कि भारत में बाघ को राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिला हुआ है। बाघ देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि तथा धीरज का प्रतीक है। आदिकाल से पन्ना बाघों की धरती रही है, यहाँ के समृद्ध घने जंगलों में स्वच्छंद रूप से बाघ विचरण करते रहे हैं। लेकिन तेजी से मानव आबादी बढ़ने के साथ ही जंगलों पर दबाव बढ़ा जिसका असर बाघों के रहवास और जिंदगी पर पड़ने लगा। मानव आबादी के दबाव से बाघों व वन्य प्राणियों को बचाने के लिये पन्ना टाइगर रिज़र्व की स्थापना हुई। दुर्भाग्य से जिन लोगों पर बाघों व वन्य प्राणियों के सुरक्षा की जवाबदारी थी उन्होंने अपने दायित्यों के निर्वहन में लापरवाही की, फलस्वरूप वर्ष 2009 में पन्ना बाघ विहीन हो गया। उस समय राष्ट्रीय स्तर पर पन्ना टाइगर रिज़र्व की खूब किरकिरी व आलोचना हुई। इसके बाद बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिज़र्व को फिर से आबाद करने के लिये पन्ना  बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। योजना के तहत पहली संस्थापक बाघिन टी-1 बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व से 4 मार्च 2009 को पन्ना लाई गई। इसके बाद कान्हा से बाघिन टी-2 व पेंच टाइगर रिज़र्व से नर बाघ टी-3 को पन्ना लाया गया। बाघिन टी-1 और नर बाघ टी-3 के संसर्ग से 16 अप्रैल 2010 को नन्हे शावकों का जन्म हुआ और पन्ना टाइगर रिज़र्व गुलजार हो गया। बाघों की वंशवृद्धि का यह सिलसिला निरंतर जारी रहा, नतीजतन पन्ना का जंगल बाघों से फिर आबाद हो गया। सफलता की इस कहानी ने देश और दुनिया के लोगों को आकृष्ट किया, दुनिया भर से वन्य जीव प्रेमी व वन अधिकारी बाघ संरक्षण का गुर सीखने पन्ना आने लगे। लेकिन दुनिया को बाघ संरक्षण की राह दिखाने वाला पन्ना टाइगर रिज़र्व इन दिनों बाघों की हो रही मौतों को लेकर चर्चा में है, जिससे पन्ना के बाघों से प्यार करने वाले लोग चिंतित हैं।

  बाघों की हो रही मौत पर सवाल उठना स्वभाविक: हनुमंत सिंह                              


पत्रकारों से चर्चा करते हुये मध्यप्रदेश वन्यप्राणी संरक्षण बोर्ड के पूर्व सदस्य हनुमत प्रताप सिंह। 
बाघों के लिए दुनियां भर में विख्यात पन्ना टाइगर रिजर्व में आज अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर मायूसी देखी जा रही है। यहां दो दिन पूर्व हुई बाघ की मौत से पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता नाराज हैं। आज पन्ना टाइगर रिजर्व के फील्ड डारेक्टर कार्यालय के बाहर जिले के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर पहले तो केक काटा और फिर बाघों की मौत पर नाराजगी जताते हुए प्रर्दशन किया। इस दौरान पन्ना परिवर्तन एवं विकास मंच के तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण प्रेमी एकत्र हुए। यहां विधिवत बाघ संरक्षण के लिए पोस्टर लेकर प्रर्दशन किया गया। इस मौके पर पर्यावरणविद एवं पूर्व मध्यप्रदेश वन्यप्राणी संरक्षण बोर्ड के मेंबर हनुमत प्रताप सिंह ने कहा कि आज अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस है। इस मौके पर हम सब जमा हुए हैं। आज के दिन जो उत्साह पन्ना के लोगों में होता है, वह नजर नहीं आ रहा है। पन्ना में बाघों की लगातार संदिग्ध मौत हो रही है। ऐसे में लगता है कि पार्क को बसाने के लिए जो मेहनत प्रबंधन और स्थानीय लोगों ने की है, बेकार हो जायेगी। पिछले माह पी-213 की मौत हुई थी, यह बाघिन एक मात्र ऐसी बाघिन थी, जिसे वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून ने प्रमाणित किया था कि उक्त बाघिन में पन्ना के जींस है। पार्क प्रबंधन बाघों की निगरानी का दावा करता है, लेकिन बाघ की मौत के कई दिनों बाद उसका सड़ा-गला शव मिलता है, ऐसे में सवाल उठना स्वभाविक है। विगत दिनों मिले बाघ के शव को देखें तो उसके विसरा की जांच करना भी मुश्किल है, ऐसे हालात चिंता जनक है। पन्ना परिवर्तन मंच के सचिव अंकित शर्मा ने कहा कि पार्क को पुनः बसाने पन्ना के लोगों ने अपने क्षेत्र के विकास की बलि दी है, इसके बाद भी यदि बाघों का संरक्षण नहीं हो पा रहा है, तो इसके लिए प्रबंधन जिम्मेदार है। उन्होंने बाघों की हो रही मौत की जांच कराते हुए इसमें दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग की है। एनएसयूआई जिलाध्यक्ष मृगेन्द्र सिंह गहरवार ने कहा कि पन्ना वासियों के सहयोग से बाघ पुर्नस्थापना योजना सफल हुई, लेकिन इन दिनों प्रबंधन बाघ संरक्षण के प्रति संवेदनषील नहीं नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि हम पुनः 2008 की ओर बढ़ रहे हैं। इस दौरान अरूण सिंह, हनुमत प्रताप सिंह, अंकित शर्मा, धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, मार्तण्ड देव बुंदेला, अजेन्द्र सिंह बुंदेला, बबलू यादव, मृगेन्द्र सिंह गहरवार, रेहान मोहम्मद, पीसी यादव, भूपेन्द्र सिंह परमार, जगतपाल सिंह, नृपेन्द्र सिंह, संजय यादव, फैज खान, भारतेन्द्र बुंदेला, फैयाज खान, आषीष खरे, सतेन्द्र राज, रोहित सेन, षिवा श्रीवास्तव, छोटू लखेरा सहित सामाजिक कार्यकर्ता एवं पन्ना परिवर्तन मंच के सदस्य उपस्थित रहे।
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