Sunday, August 2, 2020

जंगल और ऑफिस दोनों जगह छिड़ी वर्चस्व की जंग

  •  बीते 7 माह में चार बाघों की मौत,जांचों का सिलसिला शुरू 
  •  क्या फिर त्रासदी की ओर अग्रसर हो रहा पन्ना टाइगर रिजर्व 
  •  बाघ संरक्षण के क्षेत्र में पन्ना की बन गई थी वैश्विक पहचान

पन्ना टाइगर रिजर्व की सबसे ज्यादा चहेती बाघिन पी- 213 का शव। 

। अरुण सिंह 

पन्ना। बाघ संरक्षण के क्षेत्र में वैश्विक पहचान बनाने वाले मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में इन दिनों संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बीते 7 माह में यहां चार बाघों की हुई संदिग्ध मौत से जिस तरह के हालात निर्मित हुए हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि यहां सब कुछ ठीक नहीं है। 

जंगल और ऑफिस दोनों जगह वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई है, जिससे बेहतरीन कहीं जाने वाली पन्ना टाइगर रिजर्व की निगरानी व्यवस्था ध्वस्त हो रही है। यही वजह है कि जंगल में अज्ञात कारणों के चलते बाघों की होने वाली मौतों की जानकारी समय पर नहीं हो पाती। कई दिन पुराने सड़े - गले कंकाल मिलते हैं, जिससे मौत की असल वजह और कारणों का भी पता नहीं चल पा रहा। नतीजतन टाइगर रिजर्व में विचरण कर रहे बाघों की सुरक्षा को लेकर न सिर्फ सवाल उठ रहे हैं बल्कि बाघों की हुई मौत के संबंध में जांचों का सिलसिला भी शुरू हो गया है।
 
उल्लेखनीय है कि आधा सैकड़ा से भी अधिक बाघों का घर बन चुके पन्ना टाइगर रिजर्व ने यह मुकाम बीते 10 वर्षो के अथक श्रम व समर्थन से हासिल किया है। बाघ संरक्षण के मामले में पन्ना मॉडल के रूप में स्थापित हुआ था, जहां देश दुनिया से लोग बाघ संरक्षण के गुरु सीखने के लिए आते रहे हैं। लेकिन बीते 7 माह के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व में जिस तरह से सड़े - गले और कीड़ों से बिलबिलाते बाघों के शव मिले हैं, उससे पन्ना की छवि धूमिल हुई है। 

बाघों की हुई मौत के मामले को गंभीरता से लेते हुए पन्ना वासियों ने अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर प्रदर्शन कर आला वन अधिकारियों व शासन का ध्यान आकृष्ट किया। क्षेत्रीय सांसद बीडी शर्मा व खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने भी बाघों की मौत पर नाखुशी जाहिर करते हुए जांच कराने की मांग की। इसका असर शासन स्तर पर हुआ और मामले की जांच करने अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) जसवीर सिंह चौहान शनिवार को पन्ना टाइगर रिजर्व पहुंचे। उनके इस दौरे को गोपनीय रखा गया, कोई प्रेस नोट जारी नहीं हुआ। फिर भी मीडिया कर्मियों को इसकी भनक लग गई। 

पता चला है कि एपीसीसीएफ श्री चौहान उन सभी स्थलों पर पहुंचकर जायजा लिया, जहां बाघों के शव मिले थे। भ्रमण के बाद पन्ना आने के बजाय आप सीधे मंडला स्थित कर्णावती रेस्ट हाउस पहुंचे जहां रात्रि विश्राम किया। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रविवार को यहीं पर एपीसीसीएफ ने टाइगर रिजर्व के अधिकारियों की बैठक भी ली है। अपने इस दौरे में वे मीडिया से दूरी बनाए रहे तथा मोबाइल पर संपर्क करने का प्रयास किए जाने पर भी उनसे संपर्क नहीं हुआ। जाहिर है कि पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन के बारे में स्थानीय लोगों व मीडिया की सोच व सवाल क्या हैं इससे भी वाकिफ नहीं हो पाये, जो मामले की जांच में काफी मददगार साबित हो सकता था और वे जमीनी हकीकत से भी अवगत हो सकते थे लेकिन यह संभव नहीं हो सका। 

सवालों के घेरे में है बाघों की टेरिटोरियल फाइट

जंगल में बाघों के बीच इलाके में वर्चस्व को लेकर संघर्ष होता है, यह बाघों के नैसर्गिक स्वभाव को देखते हुए प्राकृतिक भी है। यदा-कदा इस तरह के संघर्ष में बाघों की मौत भी हो जाती है लेकिन इसका पता चल जाता है। परंतु पन्ना में हुई 4 बाघों की मौत में अजीब संयोग है, पार्क प्रबंधन के मुताबिक इन सभी की मौत टेरिटोरियल फाइट में हुई है लेकिन न तो मृत बाघ की शिनाख्त हो पाई और न ही संघर्ष में जख्मी होने वाले बाघ का कोई पता चला। सिर्फ रेडियो कॉलर वाली बाघिन पी- 213 की पहचान हो सकी है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि बाघों की निगरानी में तैनात अमला आखिर क्या करता है? 

जब बाघों के शव सड़ - गल जाते हैं और कीड़े सब कुछ सफाचट कर देते हैं तब निगरानी दल को कंकाल मिलता है, जिससे जांच के लिए सैंपल तक नहीं लिया जा सकता। ठीक इसी तरह की लापरवाही और तथ्यों को छुपाने का कार्य 10 वर्ष पूर्व होता रहा है। नतीजतन पन्ना से बाघों का खात्मा हो गया। क्या हम फिर उसी पुरानी राह पर चल पड़े हैं ? एपीसीसीएफ श्री चौहान साहब को अतीत में हुई गलतियों पर भी गौर करना चाहिए ताकि उनकी फिर से पुनरावृत्ति न हो। मालुम हो कि बीते 7 माह में चार बाघों की मौत हुई है उनका सिलसिलेवार विवरण इस प्रकार है -


केश क्र. 1 -   पन्ना टाईगर रिजर्व में वर्ष 2020 की शुरुआत बुरी खबर के साथ हुई। टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में रमपुरा बीट के कक्ष क्र. 1355 में 31 दिसम्बर 19 मंगलवार को लेन्टाना की झाडिय़ों के बीच अज्ञात बाघ का कंकाल मिला। बताया गया है कि बाघ की मौत 15 से 20 दिन पूर्व हुई होगी। मौत कैसे व किन परिस्थितियों में हुई, इस बात का खुलासा नहीं हो सका है। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि टेरीटरी के लिये हुये आपसी संघर्ष में बाघ की मौत हुई होगी। पार्क प्रबन्धन की इस आशंका को यदि सच भी मान लिया जाये तो भी सवाल यह उठता है कि मौत के 15-20 दिन तक बाघों की मॉनीटरिंग व निगरानी में तैनात वनकर्मियों को बाघ के मौत की खबर क्यों नहीं लगी?
क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व कार्यालय द्वारा मामले के संबंध में दी गई जानकारी के मुताबिक पन्ना कोर परिक्षेत्र के बीट रमपुरा कक्ष क्र. 1355 में गश्त के दौरान जमुनहाई तलैया के पास लेन्टाना की झाडिय़ों में बाघ का कंकाल पाया गया। सूचना प्राप्त होते ही परिक्षेत्र अधिकारी पन्ना कोर, उप संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व तथा क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया मौके पर पहुँचे। डॉग स्क्वाड को मौके पर बुलाकर सर्चिंग करवाई गई। पार्क प्रबन्धन के मुताबिक मौके पर अवैध गतिविधि के कोई चिह्न नहीं पाये गये। 

बताया गया है कि यह वन क्षेत्र बाघ पी-111 का इलाका है, यहां लम्बे समय से इस बाघ की मौजूदगी देखी गई है। जहां बाघ का कंकाल मिला है उसके आस-पास ताजे पगमार्क भी पाये गये हैं। पार्क के आला अधिकारियों द्वारा मौके पर उपस्थित वनकर्मियों से पूछताछ की गई तो उनके द्वारा बताया गया कि इस क्षेत्र में बाघिन टी-2 के शावक पी-261, पी-262 एवं पी-263 विचरण करते थे। इन तीनों शावकों की आयु लगभग 3 से 4 वर्ष के आस-पास थी, जो जवानी की दहलीज पर थे और अपनी टेरोटरी बनाने के लिये अनुकूल वन क्षेत्र की तलाश कर रहे थे। 

इन तीनों ही बाघ शावकों को रेडियो कॉलर नहीं पहनाया गया था, फलस्वरूप उनके मूवमेन्ट की जानकारी वन अमले को नहीं हो पाती थी। क्षेत्र संचालक द्वारा वनकर्मियों से चर्चा के उपरान्त यह संभावना व्यक्त की गई है कि अपनी टेरीटोरी बनाने के चक्कर में बाघ पी-111 से हुये आपसी संघर्ष में उक्त बाघ की मृत्यु हुई होगी। मृत बाघ टी-2 की छठवीं लिटर की तीन सन्तानों में से कोई एक प्रतीत होता है।


केश क्र.2 - टाइगर रिज़र्व के वन परिक्षेत्र गहरीघाट अंतर्गत बीट कोनी में वन कर्मियों को गश्ती के दौरान नाला में बाघ का क्षत-विक्षत शव मिला। बताया गया है कि मृत बाघ की उम्र लगभग 15 माह है, जो बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत पन्ना टाइगर रिजर्व में जन्मी बाघिन पी- 213 (32) का शावक है। वन कर्मियों को गश्ती के दौरान रविवार को आज कोनी नाला में क्षत-विक्षत हालत में बाघ का जो शव मिला है, वह  7- 8 दिन पुराना प्रतीत होता है। 

बाघ की मौत कैसे व किन परिस्थितियों में हुई इसकी वजह व कारणों का खुलासा नहीं हो सका है। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक बाघिन पी- 213 (32) के चार शावक थे जो 15 माह की उम्र के हो चुके थे। इन्हीं शावकों में से किसी एक की संदिग्ध मौत हुई है। बताया गया है कि कोनी नाला जहां बाघ का शव सड़ी - गली हालत में मिला है वह गहरी घाट वन परिक्षेत्र के बीट कोनी व कक्ष क्रमांक 510 में आता है। पूर्व में भी इस इलाके में दो रेडियो कॉलर वाली बाघिनों की मौत हो चुकी है। जिससे इस वन परिक्षेत्र में बाघों की सुरक्षा व निगरानी व्यवस्था पर सवाल उठ खड़े हुये हैं। 

गश्ती दल को रविवार 3 मई की दोपहर जैसे ही बाघ का शव नाले में पड़ा मिला तत्काल इसकी सूचना पार्क के वरिष्ठ अधिकारियों को दी गई। सूचना मिलते ही क्षेत्र संचालक के. एस. भदौरिया, उपसंचालक जरांडे ईश्वर राम हरि, वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता व संबंधित वन अमला मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। डॉग स्क्वाड को मौके पर बुलाकर सर्चिंग करवाई गई लेकिन अवैध गतिविधि के कोई चिन्ह नहीं पाये गये। शव के नाम पर मौके में बाघ की हड्डियां व सड़ - गल चुका अवशेष मिला, जिससे जांच के लिए सैंपल लिया गया है। मृत बाघ नर है या मादा अभी इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है।

केश क्र.3 -  पन्ना टाइगर रिजर्व की सबसे ज्यादा चर्चित और चहेती बाघिन पी- 213 का पन्ना में बाघों के उजड़ चुके संसार को आबाद करने में अतुलनीय योगदान रहा है। रेडियो कॉलर युक्त इस बाघिन के मृत शरीर का सड़ा गला अवशेष पन्ना कोर क्षेत्र के तालगांव सर्किल में 28 जून रविवार की सुबह ट्रैकिंग दल को मिला। रेडियो कॉलर वाली ब्रीडिंग टाइगर का इस तरह सड़ गल चुका अवशेष मिलने से बाघों की सुरक्षा और मॉनिटरिंग सिस्टम के क्रियान्वयन को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

बाघिन की मौत के इस सनसनीखेज मामले के संबंध में पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया ने जारी प्रेस नोट में बताया कि बाघिन पी-213 का शव पन्ना कोर परिक्षेत्र के बीट महुआ मोड़ कक्ष क्रमांक पी 1345 में तालगांव से महुआमोड़ वनमार्ग पर बाघ अनुश्रवण दल को मिला है। मौके पर तहकीकात करने पर बाघिन के शव को घसीटने के निशान भी पाये गये हैं। उन्होंने बताया कि घसीटने के निशान का पीछा करने पर एक स्थान पर बाघों के आपसी मुटभेड़ के चिन्ह मिले हैं, जिससे प्रतीत होता है कि बाघिन की मृत्यु आपसी लड़ाई में हुई है। 

यदि इसे सच मान भी लिया जाय तब भी सवाल यह उठता है कि रेडियो कॉलर वाली बाघिन जिसकी चौबीसों घण्टे निगरानी होती है, उसका किसी बाघ से संघर्ष होने पर ट्रैकिंग दल को इसकी जानकारी क्यों नहीं हुई? बाघिन का शव सड़कर कंकाल में तब्दील हो गया फिर भी ट्रैकिंग दल घटना से अनजान बना रहा। क्या यह मॉनिटरिंग सिस्टम की असफलता या कहें लापरवाही नहीं है ?  


केश क्र.4 -  पन्ना टाइगर रिजर्व में 27 जुलाई 20 को फिर एक 5 वर्ष के नर बाघ का सडा-गला कंकाल मिला। युवा बाघ की संदिग्ध मौत के संबंध में जानकारी देते हुए क्षेत्र संचालक के. एस. भदौरिया ने बताया कि गहरीघाट रेंज के बीट मझौली कक्ष क्रमांक पी-511 में 5 वर्ष की आयु वाले नर बाघ का 4 - 5 दिन पुराना शव मिला है। बीट गार्ड जब गस्त पर गया तो दुर्गन्ध आने पर खोजबीन की, तब उसे बुरी तरह से सड़ चुका बाघ का शव नजर आया। कोर क्षेत्र में बाघ की संदिग्ध मौत होने की खबर मिलते ही क्षेत्र संचालक श्री भदौरिया सहित उप संचालक श्री जरांडे, वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता व वन अधिकारी मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। 

क्षेत्र संचालक श्री भदौरिया ने बताया कि कोर क्षेत्र में बाघों की संख्या क्षमता से अधिक 39 के लगभग है, जिससे आपसी संघर्ष की घटनायें बढ़ी हैं। युवा नर बाघ की मौत इसी संघर्ष का नतीजा है। श्री भदौरिया के मुताबिक मौके पर खरोंच के निशान व पग मार्क भी मिले हैं।  मृत नर बाघ का पोस्टमार्टम पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता द्वारा मौके पर किया गया तथा जांच के लिए सैंपल लिए गये। पोस्टमार्टम के बाद मौके पर ही वन अधिकारियों की मौजूदगी में बाघ के शव को जला दिया गया। 

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