- घटना से दुःखी लोगों ने जताई संवेदना, कर रहे आर्थिक मदद
- हाथी के हमले में ड्यूटी के दौरान शहीद हुए थे रेंजर बी.आर. भगत
हांथी के हमले में असमय काल कवलित होने वाले रेंज आफीसर बी.आर. भगत। |
अरुण सिंह,पन्ना।
जंगल में ड्यूटी के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले 52 वर्षीय रेंज ऑफिसर बी.आर. भगत की शहादत जिन परिस्थितियों में हुई है, उससे पन्ना टाइगर रिजर्व के वन कर्मियों को गहरा आघात पहुंचा है। घटना के चार दिन गुजर जाने के बाद भी वनकर्मी सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं। इस दर्दनाक हादसे ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है। देश भर से वन महकमे के लोग व वन्यजीव प्रेमी जहां शोक संवेदना जता रहे हैं वहीं अनेकों लोग पीड़ित परिजनों को आर्थिक मदद के लिए भी आगे आये हैं। मालूम हो कि राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन पूर्व 14 अगस्त को दोपहर टाइगर सर्चिंग के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व के नर हाथी रामबहादुर ने कर्तव्यनिष्ठ वन अधिकारी बी.आर. भगत को दांत से दबा कर मार दिया था। हाथी ने ऐसा क्यों और किन कारणों के चलते किया, यह एक रहस्य है जिसे समझ पाना आसान नहीं है। वजह जो भी हो लेकिन पन्ना टाइगर रिजर्व ने एक होनहार, मेहनती और कर्तव्यनिष्ठ वन अधिकारी को खो दिया है जिसकी भरपाई संभव नहीं है।उल्लेखनीय है कि दिल दहला देने वाला यह दर्दनाक हादसा उस समय हुआ है जब पन्ना टाइगर रिजर्व तमाम तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है। बीते 7 माह के दौरान यहां 5 बाघों की मौत हुई है, जिसको लेकर पन्ना टाइगर रिजर्व की निगरानी व्यवस्था व प्रबंधन पर भी सवाल उठ रहे हैं। मामले की गूंज प्रदेश स्तर तक होने पर अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) जे.एस. चौहान हकीकत जानने पिछले दिनों पन्ना टाइगर रिजर्व का दौरा भी किया था। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि श्री चौहान के जाते ही फिर एक वयस्क बाघ की आपसी संघर्ष में मौत हो गई और उसका शव तीसरे दिन केन नदी में बहते हुए मिला। इस मामले को लेकर प्रतिक्रियाओं का दौर चल ही रहा था कि हाथी के हमले में पन्ना टाइगर रिजर्व के हिनौता रेंज में विगत 8 वर्षों से पदस्थ रहे वन परिक्षेत्र अधिकारी बी.आर. भगत शहीद हो गये। इस तरह लगातार हो रही घटनाओं से पन्ना टाइगर रिजर्व सुर्खियों में बना हुआ है जिसका असर यहां के आला अधिकारियों व मैदानी कर्मचारियों पर भी पड़ा है। हालात यह हैं कि अधिकारी जहां तनाव में हैं वहीं चुनौतियों और समस्याओं से जूझने वाले मैदानी वनकर्मी व महावत भी सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं।
कैसा है हांथी रामबहादुर का इतिहास
पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूदा समय 14 हाथियों का एक भरा पूरा कुनबा है। इन प्रशिक्षित हाथियों का उपयोग जंगल की सुरक्षा व निगरानी तथा बाघों की सर्चिंग में किया जाता है। बारिश के मौसम में जब जंगली रास्तों पर वाहन चलाना संभव नहीं होता तथा पहाड़ी नालों पर भी पानी रहता है उस समय दुर्गम क्षेत्रों में हाथियों से ही जंगल और वन्य प्राणियों की निगरानी होती है। जहां तक हाथी रामबहादुर की बात है तो यह टाइगर सर्चिंग व निगरानी के लिहाज से बेहद उपयोगी और काबिल माना जाता है लेकिन इसका मिजाज थोड़ा आक्रामक है। यह हाथी लगभग 20 वर्ष पूर्व 1 सितंबर 2001 को संजय टाइगर रिजर्व से पन्ना लाया गया था। उस समय हाथी रामबहादुर के साथ हथिनी गंगावती तथा उसकी बेटी मोहनकली भी यहां आई थी। तकरीबन 50 - 55 वर्ष के नर हाथी रामबहादुर ने पन्ना टाइगर रिजर्व की सबसे उम्रदराज हथनी वत्सला को मद के दौरान वर्ष 2003 में बुरी तरह से घायल कर दिया था। अथक प्रयासों व लंबे समय तक चले उपचार के बाद किसी तरह वत्सला के प्राण बचे थे। लेकिन 5 साल बाद फिर इसी हाथी ने 2008 में वत्सला पर हमला कर उसे घायल कर दिया और यह बुजुर्ग हथिनी एक बार फिर मौत को चकमा देकर बच गई। अत्यधिक उम्र दराज (100 वर्ष से अधिक) होने के कारण हथनी वत्सला अब हाथी कैंप में विशेष देखरेख के बीच रहती है।
वन योद्धाओं का बढ़ाना होगा मनोबल
निगरानी कैम्प में ड्यूटी पर तैनात वन कर्मचारी। |
विकट से विकट परिस्थितियों और हालातों में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले प्रथम पंक्ति के वन योद्धाओं का मनोबल बढ़ाने तथा उनमें उत्साह और ऊर्जा का संचार करने के लिए प्रबंधन को हर संभव प्रयास करना होगा। सुख सुविधाओं से दूर जंगल के दुर्गम इलाकों में स्थित निगरानी कैंपों में रहकर ये वन कर्मी चौबीसों घंटे जंगल व वन्य प्राणियों की सुरक्षा में तत्पर रहते हैं। लेकिन यह जानकर बेहद अफसोस हुआ कि जान जोखिम में डालकर जंगल की रखवाली करने वाले छोटे कर्मचारियों को विगत 4 माह से वेतन नहीं मिली। मानवीय दृष्टि से सोचें कि भूखे पेट भजन भी नहीं होता तो फिर इन वन कर्मियों से जंगल की चौबीसों घंटे निगरानी व सुरक्षा की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है? निगरानी और सुरक्षा का कार्य टीम भावना और समन्वय से होता है। पन्ना टाइगर रिजर्व के मैदानी वन कर्मियों में जिस तरह का उत्साह और टीम भावना के साथ काम करने का जुनून व जज्बा 10 वर्ष पूर्व था, उसमें कमी आई है। इस कमी को दूर करने की जरूरत है ताकि वनकर्मी तनाव मुक्त रहकर अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें। हां एक बात और यह कि जो लोग काम करते हैं गलतियां भी उन्हीं से होती हैं जो स्वाभाविक है। लेकिन हमें गलतियों को ढकने और छिपाने में अपनी उर्जा लगाने के बजाय गलतियों से सीख लेने का साहस भी दिखाना होगा ताकि उसी गलती की पुनरावृत्ति न हो। गलतियों को ढकना और उसे छिपाने के लिए काल्पनिक थ्योरी बनाना पतन का कारण बनता है। हमें 2008-2009 भूलना नहीं चाहिये क्योंकि पन्ना टाइगर रिज़र्व यह त्राशदी भोग चुका है।
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