Tuesday, September 1, 2020

करिश्माई वन अधिकारी आर.श्रीनिवास मूर्ति हुए सेवानिवृत्त

  •   पन्ना में बाघों को फिर से आबाद कराने में रही है इनकी अहम भूमिका 
  •  उम्मीद है भविष्य में भी इनकी क्षमताओं व ज्ञान का मिलता रहेगा लाभ

पन्ना टाइगर रिज़र्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति। 

अरुण सिंह,पन्ना।  हम बात कर रहे हैं भारतीय वन सेवा के उस करिश्माई अधिकारी की जिसके जुनून, जज्बे और अथक श्रम से पन्ना का खोया हुआ गौरव वापस मिला है। पन्ना को फिर से आबाद कराकर उसे वैश्विक पहचान दिलाने वाले वन अधिकारी आर. श्रीनिवास मूर्ति सोमवार 31 अगस्त 2020 को सेवानिवृत्त हो गये हैं। लाज़मी है इस मौके पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कुछ प्रकाश डाला जाय ताकि पन्ना के लिए उनके योगदान को तरोताजा किया जा सके।

 मालूम हो कि बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल हमेशा से बाघों के श्रेष्ठ हैबिटेट के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन वन अधिकारियों की आपराधिक लापरवाही और तथ्यों को छिपाए रखने की मानसिकता के चलते वर्ष 2002 से जनवरी 2009 के बीच पन्ना का जंगल पूरी तरह से बाघ विहीन हो गया। पर्यावरण और वन्य जीव संरक्षण में रुचि होने के साथ एक पत्रकार के रूप में भी मैं वर्ष 1990 से इस अंचल में सक्रिय हूं। जाहिर है कि पन्ना टाइगर रिजर्व की हर गतिविधि और बाघों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए किए गए जाने वाले प्रयासों पर मेरी नजर रहती थी। मुझे याद है कि बाघों की लगातार घटती संख्या और उनके गायब होने को लेकर पन्ना टाइगर रिजर्व वर्ष 2002 में ही चर्चित होने लगा था। पार्क प्रबंधन का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए इस दौरान नवभारत सतना में मेरी अनेकों खबरें प्रमुखता के साथ प्रकाशित हुईं, लेकिन हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ते ही चले गये। वह काला दिन आज भी मेरी स्मृति में है जब केंद्रीय जांच कमेटी के मुखिया पी.के. सेन ने मंडला स्थिति प्रकृति व्याख्या केंद्र में पत्रकारों से चर्चा करते हुए इस बात का खुलासा किया था कि पन्ना टाइगर रिजर्व में अब एक भी बाघ नहीं बचा।

भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारयों के साथ श्री मूर्ति। 


हमेशा बाघों से आबाद रहने वाला यह बेहद खूबसूरत वन क्षेत्र शोकगीत में तब्दील हो चुका था। हकीकत का खुलासा होने पर पन्ना टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गया, पन्ना में भी जनाक्रोश भड़क उठा। पन्ना टाइगर रिजर्व कार्यालय के निकट डायमंड चौराहे पर सैकड़ों लोगों ने नारेबाजी करते हुए आपराधिक लापरवाही के लिए जिम्मेदार वन अधिकारियों का पुतला जलाकर अपने आक्रोश और गुस्सा का इजहार किया। ऐसे प्रतिकूल वातावरण और विकट परिस्थितियों के बीच पन्ना में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने की पहल शुरू हुई। बेहद चुनौतीपूर्ण और असंभव प्रतीत होने वाले इस कार्य को कामयाब बनाने की जिम्मेदारी शासन ने भारतीय वन सेवा के अधिकारी और श्रीनिवास मूर्ति को सौंपी। श्री मूर्ति ने इस कठिन चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया अपितु पन्ना के खो चुके गौरव को फिर से वापस लाने के लिए अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर दिया। भड़के जनाक्रोश और विरोध के उठते स्वरों को शांत करने तथा जनता का विश्वास व समर्थन हासिल करने के लिए श्री मूर्ति ने अथक प्रयास किये। आपके द्वारा प्रकृति व्याख्या केंद्र मंडला में केन नदी के किनारे स्थानीय जनप्रतिनिधियों व गणमान्य नागरिकों के साथ एक परिचर्चा भी आयोजित की गई। जिसका बहुत ही सकारात्मक असर हुआ।

बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत प्रथम चरण में बांधवगढ़ और कान्हा से दो बाघिन टी-1 और टी-2 को मार्च 2009 में पन्ना लाया गया। लेकिन तब तक यहां एक भी नर बाघ नहीं बचा था। ऐसी स्थिति में पेंच टाइगर रिजर्व से नर बाघ टी-3 को नवंबर 2009 में पन्ना लाया गया। इस नर बाघ ने श्री मूर्ति सहित पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारियों व अमले के धैर्य, साहस और क्षमता की अपने तरीके से इतनी कठिन परीक्षा ली कि अनेकों लोग हिम्मत हार बैठे। लेकिन श्री मूर्ति के दिल व दिमाग में पागलपन की हद तक जुनून सवार हो चुका था और वह हार मानने को तैयार नहीं हुए। अंततः बाघ टी-3 पन्ना वापस लौटा और पन्ना टाइगर रिजर्व में सफलता की रोमांचक कहानी लिखी जाने लगी। वह शुभ घड़ी भी जल्दी आ गई जब बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को नन्हे शावकों को जन्म देकर पन्ना टाइगर रिजर्व को गुलजार कर दिया। नन्हे शावकों के आगमन से हर तरफ खुशी और जश्न का माहौल नजर आने लगा, लोगों का आक्रोश और गुस्सा भी ठंडा पड़ गया। क्षेत्र संचालक आर श्रीनिवास मूर्ति के अथक श्रम, टीम वर्क की भावना, जुनून, जज्बा और इमानदारी से आम जनमानस भी बेहद प्रभावित हुआ, फलस्वरूप पार्क के विरोध में उठने वाले स्वर भी धीमे पड़ गये और बड़ी संख्या में लोग बाघ संरक्षण के कार्य का समर्थन करने लगे। इस बदलते माहौल के बीच ही श्री मूर्ति ने जनसमर्थन से बाघ संरक्षण का नारा दिया जिसे लोगों ने उत्साह के साथ अपनाया। पन्ना टाइगर रिजर्व में एक अनूठी कार्य संस्कृति विकसित होने लगी, बाघ संरक्षण का कार्य देशभक्ति का पर्याय बन गया। वन अधिकारी व कर्मचारी जब मिलते तो जय हिंद बोलते, यह उच्चारण लोगों में नई ऊर्जा का संचार करने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि पन्ना टाइगर रिजर्व सफलता के नित नये सोपानों को चढ़ते हुए बीते 10 सालों में इस मुकाम पर जा पहुंचा है कि दुनिया भर के कई देश पन्ना की कामयाबी से सीख लेकर बाघ संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।



 पन्ना को इस गौरवशाली मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय वन सेवा के जुझारू वन अधिकारी आर.श्रीनिवास मूर्ति 31 अगस्त 2020 को सेवानिवृत्त हो चुके हैं। लेकिन शासकीय सेवा से मुक्त होने के बाद भी इनकी अद्भुत क्षमताओं और बाघ संरक्षण के ज्ञान का लाभ पन्ना को मिलता रहेगा ऐसी उम्मीद है। पन्ना जिला सहित समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र के लोग इस करिश्माई वन अधिकारी की सेवानिवृत्ति पर उनके अभूतपूर्व योगदान को याद करते हुए उन्हें सैल्यूट करते हैं। श्री मूर्ति पन्ना में सृजन और सफलता का जो इतिहास रचा है वह हमेशा अविस्मरणीय रहेगा। अब पन्ना जिलावासियों व पार्क प्रबंधन की यह जवाबदारी है कि श्री मूर्ति के जनसमर्थन से बाघ संरक्षण के नारे को चरितार्थ करते हुए पन्ना के गौरव को कायम रखें। बाघों को अपना भगवान मानने वाले श्री मूर्ति का यही सबसे बड़ा सम्मान होगा।

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1 comment:

  1. Many many congratulations to Shri SR Shrinivas Murthy sir. This reminds me our togetherness of Kanha Tiger Reserve in 1990s whlie we jointly worked together for a short period. Congratulations for flawless and victorious retirement to take over a new responsibility coming your way Sir.
    I would like to include this story as it is in my magazine titled as "ME & MY EARTH", in its coming issue. Please ......

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