- बाघों की मौत के गंभीर सवालों को क्यों किया जा रहा अनदेखा
- त्याग और बलिदान कर पन्नावासियों ने क्या इसीलिए किया था आबाद
केन नदी के किनारे पानी में पड़ा बाघ पी-123 का सिर कटा शव। |
अरुण सिंह,पन्ना। सफलता और कामयाबी का एक नया इतिहास रचकर समूचे विश्व को आकृष्ट करने वाला मध्य प्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व जिम्मेदार अधिकारियों की आपराधिक लापरवाही और तथ्यों को छिपाने की प्रवृत्ति के चलते एक बार फिर वर्ष 2009 के बुरे दौर की दिशा में अग्रसर हो चुका है। यदि समय रहते वन महकमे के आला अधिकारी व सत्ता में बैठे लोगों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो बाघों से गुलजार यह वन क्षेत्र फिर उजड़ जायेगा। पिछले 8 महीने के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व में संदिग्ध परिस्थितियों में जिस तरह से बाघों और तेंदुओं की मौत हुई है उससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि यहां सब कुछ ठीक नहीं है। बाघ पी-123 की मौत ने तो वन्य जीव प्रेमियों और पन्ना वासियों को हिला कर रख दिया है। इस बाघ का सिर कटा शव चीख - चीख कर सच्चाई बयां कर रहा था लेकिन अधिकारियों ने उसे सुनने और समझने के बजाय प्रकट तथ्यों पर पर्दा डालने का काम किया है।
उल्लेखनीय है की वर्ष 2002 से 2008 तक पन्ना टाइगर रिजर्व में सच्चाई को छिपाने और वास्तविक स्थिति को अनदेखा करने का कार्य किया जाता रहा है, जिसका परिणाम सभी ने देखा है। क्या हमने पूर्व की गलतियों से कोई सबक नहीं लिया और फिर उसी ढर्रे पर चल पड़े हैं। यदि ऐसा है तो निश्चित ही यह पन्ना जिले के लोगों के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी है। क्योंकि पन्ना में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद कराने के लिए यहां के लोगों ने जो कीमत चुकाई है उसकी भरपाई नहीं हो सकती। बाघों की उजडी दुनिया फिर से आबाद होने पर पन्नावासियों ने खुशी का इजहार कर जश्न मनाना शुरू किया था। दुनिया में शायद पन्ना पहली जगह है जहां बाघ का जन्मदिन उत्सव की तरह मनाया जाता है। यहां के लोगों ने पन्ना टाइगर रिजर्व तथा जंगल में विचरण करते बाघों से तालमेल बिठाकर इस उम्मीद से जीना सीख लिया था कि आने वाले समय में पन्ना की पहचान एक पर्यटन स्थल के रूप में हो सकेगी जो यहां के लोगों के जीवन यापन का जरिया बनेगा। लेकिन फिर से वही पुरानी गलतियों को दोहरा कर जिम्मेदार वन अधिकारी आम जनता की उम्मीदों और सुनहरे सपनों पर पानी फेरने का काम कर रहे हैं जो पन्ना जिलावासियों के साथ बहुत बड़ा धोखा है।
गौर से देखें बाघ पी-123 का सिर कटा शव
पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण करने वाले किसी वयस्क नर बाघ का ऐसा सिर कटा शव भी देखने को मिलेगा हमने कभी कल्पना नहीं की थी। लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि यह दृश्य हमें देखने को मिला। यदि बाघों की प्राकृतिक रूप से आपसी लड़ाई में मौत होती है तो उसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि टेरिटोरियल वन्य प्राणियों में इस तरह का संघर्ष नैसर्गिक है। लेकिन यदि अन्य कारणों से लड़ाई होती है तो पार्क प्रबंधन को इस पर न सिर्फ गौर करना चाहिए अपितु वजह जानने तथा समस्या का समाधान करने का प्रयास भी होना चाहिए। बाघों की हो रही मौत को आपसी संघर्ष की कहानी से ढंकने का प्रयास न तो उचित है और न ही पार्क के हित में है। जहां तक बाघ पी-123 की मौत का मामला है तो वह पूरी तरह से उलझ चुका है। उसकी मौत किन परिस्थितियों में व कैसे हुई इस संबंध में पार्क प्रबंधन अपना रटा रटाया जवाब दे चुका है लेकिन सिर कटा शव प्रबंधन के लिए जरूर मुसीबत बन सकता है। इस संबंध में क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से जो जवाब दिया है वह बेहद बचकाना और अस्वीकार्य है। क्योंकि किसी भी एंगल से ऐसा नहीं लगता कि बाघ के सिर को मगर ने खाया होगा। यह तभी संभव हो सकता है जब केन नदी के मगर धारदार हथियार से सिर काटने में पारंगत हों।
कितने अंग सुरक्षित मिले यह भी रहस्य
कथित रूप से आपसी संघर्ष के परिणाम स्वरुप वयस्क नर बाघ पी-123 जख्मी होकर केन नदी में गिर जाता है। पार्क प्रबंधन को जानकारी मिलने पर जख्मी बाघ की तलाश होती है लेकिन वह नहीं मिलता। घटना के बाद तीसरे दिन 9 अगस्त 20 की शाम बाघ का शव नदी में तैरता हुआ 8 किलोमीटर दूर पठाई कैंप के पास मिलता है। दूसरे दिन 10 अगस्त को बाघ का शव नदी किनारे से निकाल कर जब खुले में लाया गया तो पता चला कि बाघ का सिर गायब है। वन्य प्राणी चिकित्सक द्वारा पोस्टमार्टम किया जाता है, बाघ का शव पानी में रहने के कारण फूला हुआ था और उससे भीषण दुर्गंध भी उठ रही थी। पार्क प्रबंधन द्वारा इस मौके पर दो पत्रकारों को भी ले जाया गया था जिसमें मैं भी शामिल था। पोस्टमार्टम के बाद वहीं नदी किनारे बाघ के शव को अधिकारियों और दो पत्रकारों की मौजूदगी में जला दिया गया। अब सवाल यहां यह उठता है कि बाघ के शव में कितने अंग सुरक्षित पाए गये व कितने अंग नदारद थे। यह तो सर्वविदित हो चुका है कि बाघ के शव से सिर गायब था। इसके अलावा बाघ के शरीर में कितने अंग पाये गये व कितने नहीं, इस बात का जिक्र 10 अगस्त को क्षेत्र संचालक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में नहीं किया गया। जबकि आमतौर पर बाघ की मौत होने पर जारी होने वाली विज्ञप्ति में इस बात का जरूर जिक्र किया जाता है। लेकिन बाघ पी-123 के मामले में इस परंपरा का निर्वहन क्यों नहीं हुआ, यह भी एक बड़ा सवाल है। जिसका जवाब पोस्टमार्टम रिपोर्ट के सामने आने व जांच से ही मिल सकता है।
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