Friday, September 11, 2020

क्या सचमुच अपने अतीत की ओर अग्रसर हो रहा पन्ना टाइगर रिजर्व !


।। अरुण सिंह ।।

 बाघ संरक्षण के क्षेत्र में वैश्विक पहचान बनाने वाला मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व क्या सचमुच अपने अतीत की ओर अग्रसर हो रहा है।  बीते 8 माह के दौरान यहां 5 बाघों की जिन परिस्थितियों में मौत हुई है, उससे तो यही प्रतीत होता है कि यहां सब कुछ ठीक नहीं है। ताजा मामला पन्ना टाइगर रिजर्व के वयस्क नर बाघ पी- 123 का है, जिसका सिर कटा शव गत 9 अगस्त 20 को केन नदी में बहता हुआ मिला था। इस सनसनीखेज मामले का खुलासा होने के बाद से पन्ना टाइगर रिजर्व चर्चा में है। मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) मध्य प्रदेश ने 3 सितंबर 20 को जांच टीम गठित कर मामले की जांच के निर्देश दिये हैं। फल स्वरुप 4 सितंबर से पांच सदस्यीय जांच टीम पन्ना टाइगर रिजर्व में डेरा डाले हुए है, जिससे यहां हड़कंप का माहौल है।

 मालुम हो कि यहां के मौजूदा हालात और माहौल को देखकर पन्ना टाइगर रिजर्व का अतीत फिर याद आने लगा है। डेढ़ दशक पूर्व वर्ष 2002 से जनवरी 2009 के बीच यहां बिल्कुल ऐसा ही अफरा-तफरी भरा माहौल था। तत्कालीन जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही और तथ्यों को छिपाने की मानसिकता के चलते बाघों से आबाद रहने वाला यह खूबसूरत वनक्षेत्र शोकगीत में तब्दील हो गया था। उस समय केंद्रीय जांच कमेटी के मुखिया पी.के. सेन ने पन्ना टाइगर रिजर्व के मंडला स्थिति प्रकृति व्याख्या केंद्र में इस बात का खुलासा किया था कि पन्ना टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं बचा। इस भीषण त्रासदी और राष्ट्रीय स्तर पर बदनामी के बाद पन्ना टाइगर रिजर्व फिर कैसे आबाद हुआ, बाघ पुनर्स्थापना योजना को कैसे चमत्कारिक सफलता मिली तथा पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ संरक्षण के मामले में देश और दुनिया को कैसे राह दिखाई, कामयाबी की इस कहानी से हर कोई वाकिफ है। पन्ना के खोये हुए गौरव और प्रतिष्ठा को वापस लाने के लिए तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर.श्रीनिवास मूर्ति, उपसंचालक विक्रम सिंह परिहार व पूरी टीम ने जिस लगन और निष्ठा से कार्य करते हुए पन्ना टाइगर रिजर्व को वैश्विक ख्याति दिलाई, अब यहां पर उस कार्य संस्कृति का नितांत अभाव है। यही वजह है कि लोग अब खुलकर यह कहने लगे हैं कि पन्ना एक बार फिर अतीत की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है।

निश्चित ही यह समय पुनरावलोकन और गलतियों को सुधारने का है। हमें यह देखना होगा की पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता का राज क्या था? यदि इस पर गौर करें तो इसके पीछे अनुशासन, आपसी तालमेल और टीम वर्क की प्रगाढ़ भावना नजर आयेगी। उस समय आर.श्रीनिवास मूर्ति पन्ना की जनता को यह समझाने में कामयाब हुए थे कि वह हर हाल में यहां की धरोहर को वापस लायेंगे, नतीजतन उन्हें बाघों को फिर से आबाद करने के प्रयोग में व्यापक जन समर्थन भी मिला। दुर्भाग्य से आज हालात ठीक विपरीत हैं, यहां न तो अनुशासन है न आपसी तालमेल और न ही टीम वर्क की भावना नजर आती है। पिछले 2 वर्षों से तो पन्ना टाइगर रिजर्व के आला अधिकारियों के बीच ही खींचतान चल रही है। नतीजतन वन कर्मियों में भी आपसी गुटबाजी को बढ़ावा मिला है। अधिकारियों के बीच अहं और वर्चस्व की यह जंग दफ्तर से निकलकर जंगल तक पहुंच गई है, जिसके दुष्परिणाम आने ही थे जो देखने को मिल रहे हैं। वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने में महती भूमिका निभाने वाले तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति द्वारा कहा गया यह कथन गौरतलब है, उनके शब्दों में "मेरे लिए बाघ भगवान है और जो भी मेरे भगवान को मारने की कोशिश करेगा उसे इसका अंजाम भुगतना होगा। पदभार संभालते ही मैंने यह संदेश सबको दे दिया था। मेरे आस-पास कई तरह के लोग हैं और मुझे यह देखना है कि इनमें से कोई भी गलत आदमी न हो। अगर है तो मुझे ऐसे लोगों को पहचान कर उनके अपराधों के लिए उन्हें उत्तरदाई ठहराना होगा"।

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