Wednesday, September 9, 2020

पन्ना के सिर विहीन बाघ मामले की क्या है सच्चाई?

  •  घटना स्थल सकरा और पठाई कैंप के बीच की उजागर हो कहानी
  •  टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने तथ्यों पर आखिर क्यों डाला पर्दा 
  •  जांच टीम ने यदि दोषियों को बचाया तो कैसे मिलेगा बाघों को न्याय

पन्ना टाइगर रिज़र्व के सिर विहीन बाघ पी-123 का शव।   

अरुण सिंह,पन्ना। देश और दुनिया को बाघ संरक्षण का पाठ पढ़ाने वाला मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व इन दिनों बाघों की मौतों को लेकर चर्चा में है। बाघों की धरती कहा जाने वाला यह इलाका 10 वर्ष पूर्व अवैध शिकार की घटनाओं पर जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा पर्दा डालने की मानसिकता के चलते उजड़ गया था। जिसे फिर से आबाद करने में अनेकों लोगों ने रात दिन मेहनत की है, तब जाकर बाघ विहीन यह वन क्षेत्र गुलजार हुआ है। लेकिन यहां बाघों की लगातार हुई मौत विशेषकर वयस्क नर बाघ का सिर काटे जाने की घटना ने पर्यावरण और वन्यजीव प्रेमियों को चिंता में डाल दिया है। प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से आबाद कराने में जिन लोगों की भूमिका व योगदान रहा है वे इस घटना से आहत हैं। सबकी बस एक ही मंशा है कि बाघ का सिर काटे जाने के मामले की सच्चाई उजागर हो तथा दोषियों के खिलाफ कार्यवाही हो ताकि बाघों से आबाद हो चुका यह वन क्षेत्र उजड़ने से बच सके।

आखिर पन्ना टाइगर रिजर्व के सिर विहीन बाघ मामले की सच्चाई क्या है? इसे जानने और समझने के लिए हमें पीछे नजर डालनी होगी। कथित रूप से जिस दिन वयस्क नर बाघ पी-123 (जिसका सिर विहीन शव केन नदी में मिला) व बाघ पी-431 के बीच बाघिन टी-6 को लेकर आपसी संघर्ष हुआ, वह 7 अगस्त का दिन था। इस संघर्ष में बाघ पी-123 जख्मी होकर वन परीक्षेत्र गहरी घाट के बीट झालर में सकरा के पास केन नदी में गिर गया। बाघों के बीच हुए इस संघर्ष की घटना को वन कर्मियों द्वारा देखा गया था और वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना भी दी गई थी। कुछ घंटों के बाद क्षेत्र संचालक के.एस.भदौरिया सहित पार्क के अधिकारी मौके पर पहुंचे और जख्मी बाघ की तलाश केन नदी सहित आसपास के जंगल में की गई, लेकिन वह नहीं मिला। इस घटना के तीसरे दिन सकरा से 8 किलोमीटर दूर पठाई कैंप के पास नर बाघ पी-123 का सिर विहीन शव नदी में तैरते हुए पाया गया। जाहिर है कि सकरा और पठाई कैम्प के बीच कुछ न कुछ घटित हुआ है, इसी रहस्य से पर्दा उठाया जाना जरूरी है ताकि मामले की सच्चाई उजागर हो सके।

अब यहां सवाल यह उठता है कि सिर विहीन बाघ के शव का 10 अगस्त को पोस्टमार्टम होने तथा उसका दाह संस्कार करने के बाद शाम को क्षेत्र संचालक द्वारा मामले को लेकर जो बयान जारी किया गया उसमें यह आशंका जताई गई थी कि बाघ का सिर नदी में शायद मगरमच्छ ने खाया होगा। उनका यह तर्क उसी दिन से सवालों के घेरे में है जिसका आज तक कोई जवाब नहीं दिया गया। आखिरकार घटना की वास्तविक स्थिति और सच्चाई को इस तरह मगरमच्छ की आड़ लेकर छुपाने का प्रयास क्यों किया गया? क्या क्षेत्र संचालक श्री भदौरिया ने यह जानबूझकर किया या फिर अनजाने में लेकिन दोनों ही स्थितियां पार्क व बाघों की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है। मामला जब मीडिया की सुर्खियों में आया और बाघ पी-123 की मौत व सिर गायब होने की घटना को लेकर सवाल उठे तब प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) मध्य प्रदेश आलोक कुमार ने मामले को संज्ञान में लिया और 3 सितंबर को आनन-फानन जांच कमेटी बनाकर जांच के निर्देश दिए गये। मालूम हो कि आलोक कुमार बतौर क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व में रह चुके हैं। उनकी यहां पर पदस्थापना पन्ना को बाघों से आबाद कराने में महती भूमिका निभाने वाले श्रीनिवास मूर्ति का स्थानांतरण होने पर उनकी जगह पर हुआ था, जाहिर है कि पन्ना के बारे में उनकी समझ पर्याप्त होगी उन्हें ज्यादा कुछ बताने की जरूरत नहीं है। हां उनसे यह अपेक्षा जरूर है कि घटना की पूरी सच्चाई प्रगट हो उसे छिपाने व दबाने का कार्य न किया जाये।

बहुत कुछ बता रही है पोस्टमार्टम रिपोर्ट


 हिनौता वन परिक्षेत्र के पठाई कैंप के पास केन नदी में 9 अगस्त की शाम सिर विहीन बाघ का शव तैरता हुआ मिलता है। दूसरे दिन 10 अगस्त को वहीं नदी किनारे क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया व उप संचालक श्री जरांडे की मौजूदगी में शव का पोस्टमार्टम किया जाता है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि बाघ की मौत के बाद उसका सिर धारदार हथियार से काटा गया है। इतना ही नहीं राष्ट्रीय पशु के संवेदनशील अंग (सेक्स ऑर्गन) भी धारदार हथियार से निकाले गये हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इतनी बड़ी सच्चाई प्रकट होने के बावजूद 10 अगस्त को जारी अधिकृत प्रेस नोट में इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है। इसे क्या समझा जाए, क्या यह तथ्यों को छुपाना नहीं है? घटना दिनांक 7 अगस्त से 9 अगस्त के दौरान सकरा से पठाई कैम्प के बीच की कहानी पर भी नजर डालना इस गुत्थी को सुलझाने के लिए जरूरी है। जांच टीम 4 सितंबर से अपने कार्य में जुटी है और मौके पर जाकर स्थिति का जायजा लेने के साथ-साथ संबंधितों के बयान भी लिए हैं। इस टीम से मंगलवार को जब पत्रकार मिले तो उन्होंने जांच की प्रगति के बारे में तो कुछ नहीं बताया लेकिन यह जरूर कहा कि कुछ गलत हुआ है इसलिए हम यहां हैं।

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