Wednesday, October 14, 2020

गरीबों के लिए महज सपना बनकर रह गया पक्का मकान

  •  पन्ना जनपद की ग्राम पंचायत गौरा के आदिवासियों की स्थिति जस की तस 
  •  कच्चे घरों में रहने को मजबूर, अधूरे बने शौचालयों का भी नहीं हो रहा उपयोग

 

पन्ना जनपद के ग्राम पंचायत गौरा का नजारा। 


। अरुण सिंह 

पन्ना। हर किसी का यह सपना और ख्वाहिश होती है कि उसका भी एक सुंदर व साफ-सुथरा आशियाना हो। सरकार की बहुप्रचारित और सबसे ज्यादा चर्चित प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू होने के साथ ही हर गरीब ने पक्के मकान का सपना देखना शुरू कर दिया था। लेकिन योजना का सही ढंग से जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन न होने से गरीबों के लिए पक्का मकान महज सपना बनकर रह गया है। 

झोपड़ीनुमा कच्चे घरों में असुविधाओं के बीच रहने वाले गरीबों, जिन्हें इस योजना का लाभ मिल जाना चाहिए था वे आज भी भटक रहे हैं। जब कि कई ऐसे लोग जो साधन संपन्न हैं वे अपात्र होने पर भी प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेने में सफल हुए हैं। आखिर जिस नेक मंशा और मकसद को ध्यान में रखकर योजनायें बनती हैं, उनका सही ढंग से क्रियान्वयन क्यों नहीं हो पाता ?

 जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 16 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत गौरा सड़क मार्ग के किनारे स्थित है। मुख्यालय के नजदीकी आदिवासी बहुल इस गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना की जमीनी हकीकत जानने के लिए बीते रोज जब हम पहुंचे और लोगों को पता चला कि पन्ना से पत्रकार आये हैं, तो लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। सबकी अपनी - अपनी समस्यायें व तकलीफें थीं और हर कोई अपनी व्यथा सुनाने को उतावला नजर आ रहा था। 

आदिवासी बस्ती का जायजा लेने जब हम गांव में घुसे तो जो नजारा देखने को मिला उससे शासन द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की हकीकत समझने में देर नहीं लगी। ग्रामीणों की हालत तथा उनके घरों को देखकर पता चला कि योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है। गरीबों के नाम पर इसका ज्यादा लाभ बिचौलिये और साधन संपन्न लोग उठा रहे हैं। अपात्रों की बल्ले - बल्ले है और पात्रता रखने के बावजूद गरीब ग्रामवासी सरपंच, सचिव और अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं, फिर भी उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही। 

ग्रामीणों के बीच खड़ी वृद्ध आदिवासी महिला दुजिया ने हाथ जोड़कर कहा कि पंचायत सचिव पक्का मकान दिलाने के लिए पैसा मांगता है, अब हम कहां से पैसा लायें? इस महिला ने उम्मीद के साथ कहा कि अब आप ही लोग कछु करो तो शायद हमाई भी सुनाई हो जाये, हमें भी पक्का मकान रहबो को मिल जाये।

सिर्फ नाम की है महिला सरपंच, दबंग चला रहा पंचायत 


ग्राम पंचायत गौरा में महिला सरपंच गौरी भाई चौधरी सिर्फ नाम की सरपंच है, सरपंची तो गांव का ही एक दबंग चला रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि पंचायत सचिव भी गांव यदा-कदा ही आता है। आलम यह है कि आदिवासी मोहल्ला के अधिकांश लोग पंचायत सचिव को पहचानते तक नहीं हैं। गांव के सीताराम आदिवासी, सुखचरन बसोर, मद्धु गोंड़ व सुंदरलाल ने बताया कि तीन माह पहले 130 लोगों के नाम प्रधानमंत्री आवास के लिए जोड़े गये थे लेकिन एक भी आवास नहीं बना। ग्रामीणों ने बताया कि आदिवासी मोहल्ले में अभी तक सिर्फ 7 आवास बने हैं जो चार-पांच वर्ष पुराने हैं। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि आवास के लिए 10 से 20 हजार रुपये की मांग की जाती है। पैसा न दे पाने के कारण पात्रता के बावजूद हमें योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा।

कच्चे घरों में जहरीले कीड़ों का बना रहता है डर 

आदिवासी मोहल्ले के छोटे-छोटे कच्चे घरों में एक साथ कई लोग रहते हैं, जिससे तमाम तरह की कठिनाइयां होती हैं। बारिश के मौसम में चारों तरफ घास फूस उग आने से हर समय जहरीले कीड़ों का डर बना रहता है। अघनिया आदिवासी व लछिया आदिवासी ने कहा कि हुजूर हम बहुत गरीब हैं। हमाओ नाम भी लिख लें, हमाये पास घर नहीं है। शौचालयों के बारे में पूछे जाने पर ग्रामवासियों ने बताया कि कुछ घरों में आधे अधूरे शौचालय बने थे लेकिन वे उपयोग करने लायक नहीं हैं। शौच के लिए गांव के लोग बाहर खेत व मैदान में जाते हैं। सुंदरलाल का कहना है कि हम कई वर्षों से प्रधानमंत्री आवास बनने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि पक्के मकान में रहने की इच्छा जीते जी पूरी नहीं हो पायेगी।

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