Tuesday, October 13, 2020

आओ, अपना वजूद बचाने धरा में डालें हरियाली के बीज

  •   प्रकृति के साथ खिलवाड़ और अत्याचार जीवन के लिए घातक
  •   पृथ्वी को मानव की नहीं बल्कि मानव के लिए पृथ्वी जरूरी


।। अरुण सिंह ।।

यह पृथ्वी हमारे सौरमंडल का सबसे ज्यादा जीवंत और सुंदर ग्रह है। यह खूबसूरत है क्योंकि पृथ्वी में न जाने कितने प्रकार की वनस्पतियां, पेड़-पौधे, जीव-जंतु और पक्षी हैं। यह पृथ्वी इन सब का घर है, इसमें मानव भी शामिल है। लेकिन इस जीवंत और हरे-भरे ग्रह को मानव ने इतने गहरे जख्म दिये हैं कि प्रकृति का पूरा संतुलन ही डांवाडोल हो गया है। हमने अपनी महत्वाकांक्षा और निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु बड़ी बेरहमी के साथ धरती की हरियाली को उजाड़ा है। जिससे न जाने कितने जीव जंतु बेघर होकर विलुप्त हो चुके हैं। हमारी नासमझी पूर्ण बर्ताव का खामियाजा अब हमें ही भोगना पड़ रहा है।

 अब यह निहायत जरूरी हो गया है कि हम समझदारी दिखायें और प्रकृति व पर्यावरण से खिलवाड़ बंद करें। यह पृथ्वी जितनी हमारी है उतनी ही पेड़-पौधों, वनस्पतियों, जीव-जंतु और पक्षियों की भी है। हमें सह- अस्तित्व की अहमियत को समझना होगा, क्योंकि गहरे में सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। किसी की भी कमी पूरे प्राकृतिक चक्र व संतुलन को प्रभावित करती है। अभी तक हम जिस सोच और समझ के साथ जिए हैं वह रास्ता विनाश की ओर जाता प्रतीत होता है। लेकिन हम विनाश की आ रही आहट को अनसुना कर रहे हैं और अपने को श्रेष्ठ साबित करने तर्क भी गढ़ लेते हैं। मनुष्य द्वारा बनाई गई कोई चीज जब नष्ट की जाती है तो उसे बर्बरता कहा जाता है, लेकिन हम प्रकृति द्वारा सृजित किसी चीज को जब नष्ट करते हैं तो हम इसे प्रगति और विकास कहते हैं। इस तरह के दोहरे मापदंड प्रकृति, पर्यावरण व समूची पृथ्वी के अस्तित्व के लिए घातक है। इसलिए समझदारी इसी में है कि हम पृथ्वी का सम्मान करते हुए सह-अस्तित्व की भावना को मजबूती प्रदान करें तथा प्रकृति और पर्यावरण के साथ अत्याचार पर रोक लगाते हुए प्रकृति का श्रंगार करें।

पन्ना टाइगर रिज़र्व के जंगल का विहंगम द्रश्य। 

 गौरतलब है कि पर्यावरण और वन प्राणियों के संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य करने वाले भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी आर श्रीनिवास मूर्ति इन दिनों बीज संग्रहण का अभियान चला रहे हैं। उनकी सोच है कि स्थानीय प्रजातियों के पेड़ पौधों व फलों के बीजों का यदि आम जन संग्रह करें और इन बीजों को खाली उपयुक्त जगह पर गडा दें तो वीरान सी दिखने वाली धारा फिर हरी-भरी नजर आने लगेगी। उदाहरण के लिए श्रीमूर्ति ने बताया कि यह सीताफल का सीजन है, हम इस अवसर का पूरा उपयोग करते हुए इसके बीजों का संग्रह करें उन्हें बर्बाद न होने दें। इसी तरह हर मौसम के फलों और बीजों के बीज संग्रहित कर हम प्रकृति, पर्यावरण व जैव विविधता को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। श्री मूर्ति के इस अनूठे अभियान व सोच ने मुझे भी प्रभावित किया है। क्योंकि मेरा भी ऐसा मानना है कि दुर्लभ और विलुप्ति की कगार में पहुंच चुकी वनस्पतियों के संरक्षण व स्थानीय प्रजातियों का अस्तित्व बचाने के लिए जनता की भागीदारी जरूरी है। जनभागीदारी से ही संरक्षण और संवर्धन का कार्य संभव है।

बीजों का समय पर संग्रह कर उन्हें उपयुक्त जगह पर यदि डाल दिया जाये तो उसके चमत्कारिक परिणाम देखने को मिलते हैं। इस तरह का चमत्कार पन्ना शहर में बाईपास मार्ग पर देखा जा सकता है। यहां घाटीनुमा सड़क के किनारे-किनारे पिचिंग में किसी पर्यावरण प्रेमी ने वर्षों पूर्व नीम के बीज बिखेर दिये थे। जिन बीजों को पत्थरों के बीच जगह मिल गई और वे मिट्टी के संपर्क में आ गये उनके अंकुर फूट आये। अब तो वे बड़े पौधों की शक्ल में आ गये हैं, इस मार्ग पर तकरीबन ढाई - तीन सौ मीटर तक सड़क किनारे नीम के सैकड़ों पेड़ लहलहा रहे हैं। यह इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि हम सब मिलकर यदि इस तरह की पहल करें तो बिना किसी लागत व अधिक श्रम के हम पर्यावरण को बेहतर बनाने के साथ-साथ उपयोगी वनस्पतियों व पेड़ पौधों का भी संरक्षण कर सकते हैं। तो आइए देर किस बात की, हम आज से ही बीजों का संग्रह करें और अपने स्वयं के वजूद को बनाये रखने के लिए धरती में हरियाली के बीज बोयें।

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