Wednesday, October 21, 2020

जहरीली नहीं है घर की दीवारों में नजर आने वाली छिपकली

  •  घर के ईकोसिस्टम में इनकी होती है महत्वपूर्ण और जादुई भूमिका
  • दीवार के ईकोसिस्टम की खाद्य श्रृंखला में छिपकली सबसे ऊपर



प्रकृति, पर्यावरण और वन्य जीवों पर निरंतर लिखने वाले कबीर संजय की लेखन शैली अत्यधिक सहज, सरल व बोधगम्य है। इनके आलेख रोचन व ज्ञानवर्धक जानकारियों से भरपूर होते हैं, जिन्हें लोग बड़े ही चाव से पढ़ते हैं। अभी हाल ही में आपकी नई किताब "चीता : भारतीय जंगलों का गुम शहजादा" प्रकाशित हुई है जो बेहद पसंद की जा रही है। जंगलकथा में आज आपने घर की दीवारों में नजर आने वाली छिपकली के बारे में अत्यधिक रोचक और उपयोगी जानकारी साझा की है। जो जस की तस प्रस्तुत है -

क्या घरों की दीवारों पर चिपकी, इधर-उधर फिरने वाली छिपकलियां जहरीली होती हैं। क्या उनकी त्वचा में जहर होता है। क्या वे काट भी सकती हैं। वे दोस्त हैं या दुश्मन। उनसे कैसे दूर रहा जाए। ये तमाम सवाल हैं जो आमतौर पर छिपकली को लेकर पूछे जाते रहे हैं। लेकिन, सच तो यह है कि छिपकलियां दुश्मन नहीं हैं। वे दोस्त हैं। घर के ईकोसिस्टम में उनकी भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण और जादुई है। कैसे। आइये जानते हैं...

पिछली पोस्ट स्किंक पर लिखी थी। उस पर लोगों की बेहद उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मिली। एक छोटा सा शर्मीला जीव जो किसी भी इंसान को देखते ही सबसे पहले छिपने की कोशिश करता है, उसे लेकर हमारे मनो-मस्तिष्क में तमाम यादें ताजा हैं। उसके तमाम नाम है और उससे जुड़ी मान्यताएं। इन्हीं में से किसी ने यह सवाल भी किया कि छिपकलियां जहरीली होती हैं। उनकी त्वचा में जहर होता है।

आमतौर पर लोग मानते हैं कि छिपकलियां जहरीली होती हैं और उनकी त्वचा में जहर होता है। लेकिन, सच्चाई इससे अलग है। भारत में पाई जाने वाली कोई भी छिपकली जहरीली नहीं है। बल्कि घरेलू छिपकलियां तो पेस्ट कंट्रोल करने में हमारी मदद ही करती हैं। घरों की दीवारों  पर चिपककर दौड़ती-भागती छिपकली घात लगाकर हमला करती है। न जाने कितने मच्छरों का वो सफाया कर देती है। छोटे कॉकरोच को निगल जाती है। दीमकों को चट कर जाती है। चींटियां साफ कर देती है। घर की दीवार का जो ईकोसिस्टम है, वह उस खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर है। वह वही भूमिका अदा करती है जो जंगल में शेर करता है। यानी अपने शिकार की तादाद को काबू में रखना। हां, यह जरूर है कि बहुत सारे अन्य जीवों की तरह ही छिपकलियों के ऊपर भी बहुत सारे बैक्टीरिया पनपते हैं। हो सकता है कि उन बैक्टीरियां की वजह से किसी तरह की फूड प्वाइजनिंग हो जाए। बाकी, वे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती।

दरअसल, रेप्टाइल या सरीसृपों के चेहरे भावहीन होते हैं। उन्हें देखकर यह नहीं पता चलता कि वे खुश हैं या दुखी। इसके चलते ज्यादातर लोग उन्हें लेकर आशंकित रहते हैं। हम स्तनपाई जीवों के शरीर पर बाल होते हैं। सरीसृपों के बाल नहीं होते। हमारे कान बाहर की तरफ होते हैं, उनके कान भी बाहर नहीं होते। हम गर्म खून वाले हैं, वे ठंडे खून वाले हैं। इसके चलते जाड़े के दिनों में उन्हें अपने शरीर को गर्म करने के लिए काफी धूप या गर्मी चाहिए होती है। आपने कई बार जाड़े में बेहद सुस्त पड़ी छिपकली देखी होगी। जो हिल-डुल भी नहीं पाती हो। इन शारीरिक विभिन्नताओं के चलते बहुत सारे लोग सरीसृपों से घृणा करते हैं। उन्हें देखने और छूने से उन्हें अजीब गिनगिनाहट होती है। लेकिन, अगर हम अपने इन मनोभावों पर काबू कर सकें तो ये जीव भी अपना जीवन वैसे ही बिताते हैं जैसे कि अन्य कोई जीव। जरा सोचिए अगर वे जहरीली होती तो क्या सदियों से इंसान उन्हें अपने घरों की छतों और दीवारों से यूं ही चिपककर जीवन बिताने देता। छिपकलियां न तो जहरीली हैं और न ही घृणा की पात्र...

00000 

No comments:

Post a Comment