- कुनबा बढऩे पर कई बाघों ने बफर क्षेत्र को बनाया अपना रहवास
- अब बफर क्षेत्र को सुरक्षित कर बाघों के अनुकूल बनाने की है चुनौती
पेड़ के तने को खुरचकर अपने इलाके का निर्धारण करती बाघिन। (फाइल फोटो) |
अरुण सिंह,पन्ना। बाघों से आबाद हो चुके मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में नन्हे शावकों के जन्म के साथ ही वयस्क बाघों की संख्या भी बढ़ रही है। इन बाघों को सुरक्षित और अनुकूल वातावरण तथा उनके लिए पर्याप्त जगह की उपलब्धता कराना अब पार्क प्रबंधन के सामने बड़ी चुनौती है। अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में इलाके को लेकर बिना किसी संघर्ष के अधिकतम 30 वयस्क बाघ रह सकते हैं। जाहिर है कि शेष बाघों को कोर क्षेत्र से बाहर अपने लिए इलाके का निर्धारण करना होगा। मालुम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व पन्ना, छतरपुर व दमोह जिले के 1598 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसका कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलोमीटर व बफर क्षेत्र 1022 वर्ग किलोमीटर है।
उल्लेखनीय है कि पीटीआर के कोर क्षेत्र में जिस तरह की निगरानी व सुरक्षा व्यवस्था है, बफर क्षेत्र में नहीं है। पार्क प्रबंधन द्वारा अकोला, अमानगंज व किशनगढ़ बफर क्षेत्र को सुरक्षित करने की दिशा में पहल की गई है, परिणाम स्वरूप इन इलाकों में बाघों का मूवमेंट बढ़ा है। लेकिन बफर क्षेत्र के अन्य दूसरे ज्यादातर इलाके असुरक्षित हैं। इन इलाकों में मानवीय गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं है तथा मवेशी भी बेरोकटोक विचरण करते हैं। कोर क्षेत्र के वयस्क बाघ बफर क्षेत्र के जंगल में अपनी टेरिटरी बना सकें, इसके लिए बफर की व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करना होगा। पार्क प्रबंधन का यह मानना है कि पीटीआर के कोर क्षेत्र की धारण क्षमता 30 है, जबकि जनवरी 2020 की गणना रिपोर्ट के मुताबिक कोर क्षेत्र में 42 वयस्क बाघ हैं। विगत 1 वर्ष के दौरान यहां आधा दर्जन बाघों की मौत हुई है, जिसमें सड़क हादसे का शिकार हुई बाघिन भी शामिल है। यहां बाघों के बीच होने वाले आपसी संघर्ष की वजह प्रतिकूल लिंगानुपात के बजाय बाघों की बढ़ती संख्या व जगह की कमी को माना जा रहा है।
बाघों के कुनबे में लगातार हो रही वृद्धि को दृष्टिगत रखते हुए पार्क प्रबंधन ने भविष्य की रणनीति हेतु जो सोच बनाई है, उसके मुताबिक हर दो साल में यदि 33 शावक कुनबे में जुड़ते हैं तो बाघों की आबादी में इनका समायोजन कैसे होगा ? इस बाबत क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा व उपसंचालक जरांडे ईश्वर राम हरि ने चार संभावनाओं का जिक्र किया है। प्रथम यह कि उम्र दराज हो चुके नर बाघों के इलाके पर नये बाघ कब्जा कर लें। यह तभी संभव है जब बूढ़े बाघ की प्राकृतिक मौत हो या फिर युवा बाघ द्वारा उसे अपना इलाका छोडऩे के लिए बाध्य कर दिया जाय। दूसरा यह कि कोर क्षेत्र में जन्मे बाघ वयस्क होने पर कोर क्षेत्र से बाहर बफर में अपने लिए अनुकूल जगह की तलाश करें। तीसरी संभावना यह जताई गई है कि कोर क्षेत्र के बाघ यहां से निकल कर बाहर के इलाकों में चले जायें। पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों में इस तरह की प्रवृत्ति देखी भी गई है। यहां के बाघ बाहरी इलाकों में विचरण करते हुए रानीपुर वन्य जीव अभ्यारण्य, सतना डिवीजन के सरभंगा का जंगल, नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य तथा दक्षिण वन मंडल पन्ना के मोहंद्रा व कल्दा वन क्षेत्र में अपना नया बसेरा बनाया है। चौथी संभावना इलाके को लेकर आपसी संघर्ष और मौत है। क्योंकि बाघ अपने इलाके का निर्धारण करता है और उसकी हरसंभव सुरक्षा भी करता है। बाघिन का इलाका (टेरिटरी) नर बाघ की तुलना में काफी छोटा होता है। नर बाघ आमतौर पर 2 से लेकर 4 बाघिनों की टेरिटरी को अपने आधिपत्य में रखता है। ऐसी स्थिति में संख्या बढऩे पर इलाके में कब्जा करने के लिए उनके बीच आपसी संघर्ष होता है। पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारियों को भविष्य के प्रबंधन में उपरोक्त चारों संभावित परिदृश्य पर विचार मंथन करना होगा।
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This estimation was done when conditions were totally not favourable and prey density was lowest. Now everything is reversed positively. Still composite ecosystem features with intricate table top and sehas around is not fully understood. We need to do a serious study and brainstorming in a minimum today workshop at Panna, then only a serious assessment of Panna potential may be arrived at. Complicated science like Tiger ecology and population dynamics is not as simple as we think. Just a word of caution.
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