- संसाधनों को नष्ट कर दौलत जमा करने की वृत्ति विनाशकारी साबित
- नग्न आंखों से न दिखाई देने वाले एक सूक्ष्म जीव ने हमें दिखाया आईना
।। अरुण सिंह ।।
नग्न आंखों से न दिखाई देने वाला एक सूक्ष्म जीव भी हमारे पूरे आर्थिक साम्राज्य और कथित महाशक्तियों के गरूर और अहंकार को तहस-नहस कर सकता है, यह बीते कुछ महीनों में कोविड-19 कोरोना वायरस ने साबित कर दिखाया है। वर्ष 2020 इस वैश्विक महामारी के चलते मची उथल-पुथल के लिए जाना जायेगा। इस महामारी ने हमें सिखाया है कि प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और प्रकृति को नष्ट कर दौलत जमा करने वाला विकास का मॉडल पूरी मनुष्यता के लिए विनाशकारी साबित होगा। खुशहाली का रास्ता प्रकृति से लड़कर नहीं अपितु प्रकृति से प्रेम करके ही हासिल किया जा सकता है। अभी तक जिंदगी जीने का हमारा जो तौर तरीका रहा है, वह सह- अस्तित्व की भावना के विपरीत है। कोरोना वायरस के रूप में प्रकृति का हमारे लिए महज एक यह संकेत है कि अभी भी जाग जाओ और इस सुंदर ग्रह पृथ्वी के साथ-साथ खुद के विनाश का कारण न बनो।
उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस इंसान के लालच और धरती से बुरे व्यवहार की वजह से फैला है। कई रिसर्च कोरोना वायरस और पर्यावरण विनाश के बीच संबंध का समर्थन करते हैं। मालूम हो कि वन्य प्राणियों में कई तरह के वायरस प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। जंगल की अनियंत्रित और अधाधुंध कटाई के चलते उनका पर्यावास नष्ट होता है, परिणाम स्वरूप उनके इंसानों के संपर्क में आने का खतरा बढ़ जाता है। वर्ष 2017 में नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में छपे रिसर्च पेपर के मुताबिक जानवरों से फैलने वाली बीमारियों का जोखिम उष्णकटिबंधीय वनों में सबसे ज्यादा है। जहां पेड़ कटाई, डैम निर्माण और सड़क बनाने के काम हो रहे हैं। इस तरह की गतिविधियों से बीमारियां फैलने का खतरा रहता है। क्योंकि इनसे परिस्थितिकी तंत्र में छेड़छाड़ होती है और इंसान व मवेशियों के साथ वन्यजीवों का संपर्क बढ़ता है। वन्य प्राणियों की जो प्रजातियां आमतौर पर इंसानों से दूर रहती हैं वे भी संपर्क में आने लगती हैं। इससे रोगजनक विषाणुओं को फैलने का मौका मिल जाता है। प्रकृति की इस चेतावनी और संकेत से सबक लेकर यदि हम वन्यजीवों और उनके आवास के अधिकारों का सम्मान नहीं करते तो कोविड-19 जैसी अनेकानेक बीमारियों का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।
लॉकडाउन के दौरान वाहनों की आवाजाही थमने पर निर्भय होकर सड़क पार करता चीतलों का झुण्ड। |
यह संकट इस बात का संकेत है कि हम अपनी जीवन दृष्टि पर आमूलचूल बदलाव लायें और प्रकृति को फिर से खुशहाल व समृद्ध करने की दिशा में कदम उठायें। हम बीमार हैं क्योंकि हमारी प्रकृति बीमार है, हमारा स्वास्थ्य प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार का परिणाम है। वायरस हमारे रास्ते को सही करने का संकेत दे रहा है, यह हमें बता रहा है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा। लॉकडाउन के दौरान सभी ने यह देखा और महसूस किया है कि मानवीय दखलंदाजी कम होने तथा कथित विकास का पहिया थमने के साथ ही प्रकृति कुछ ही दिनों में किस तरह खिल उठी थी। प्रदूषण कम हो गया था, चिडय़िां झुण्ड में चहचहाने लगी थीं और सुनसान समुद्र तटों पर डॉल्फिन मछलियां अठखेलियां करती दिखाई देने लगी थीं जो कोलाहल और मनुष्यों के डर से किनारे पर नहीं आती थीं। दुनिया भर के महानगरों व आबादी वाले इलाकों में जहां लॉकडाउन के पूर्व हर समय वाहनों की रेलमपेल व भीड़ रहती थी, लॉकडाउन का सन्नाटा होने पर वन्य प्राणी जंगल से निकलकर शहरों की सड़कों पर सैर करते नजर आने लगे थे। सड़कों पर निर्भय होकर इन्हें विचरण करते देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह जायजा ले रहे हैं कि उनके पूर्वज यहां पर कहां रहते थे।
जाहिर है कि किसी समय यहां जंगल हुआ करते रहे होंगे, जिन्हें काटकर हमने कंक्रीट की सड़कों और बस्तियों में तब्दील कर दिया। यहां के जंगल में निवास करने वाले वन्य प्राणियों को हमने खदेड़ कर उन्हें सीमित क्षेत्रों में रहने के लिए न सिर्फ मजबूर किया अपितु वहां भी उन्हें चैन से रहने नहीं दे रहे। हमारी लालची और धन संग्रह की वृत्ति वनों को नष्ट करने तथा वन्य प्राणियों का शिकार करने के लिए प्रेरित करती है। जिससे प्राकृतिक संतुलन खतरे में पड़ गया है। यहां यह गौरतलब है कि इस धरती में सिर्फ मनुष्य ही नहीं रहते और भी प्राणी हैं, जिन्हें शुद्ध आबोहवा और सुरक्षित आश्रय चाहिए। लेकिन हमने पूरी प्रकृति को अपने कब्जे में ले लिया है और अन्य सभी जानवरों पर हावी हो गये हैं। हम यह भूल गये हैं कि हमारी संपूर्ण आर्थिक समृद्धि नग्न आंखों से न दिखाई देने वाले अत्यंत छोटे सूक्ष्म जीवों द्वारा भी मिटा दी जा सकती है।
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