Tuesday, December 8, 2020

पन्ना में एक रेड हेडेड वल्चर की सफलता पूर्वक हुई रेडियो टैगिंग

  • गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों के अध्ययन हेतु देश में पहली बार पन्ना टाइगर रिजर्व में हो रहा यह अभिनव प्रयोग 
  • भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से विभिन्न प्रजाति के 25 गिद्धों की होनी है रेडियो टैगिंग

गिद्ध को पकड़ने के बाद उसके शरीर में डिवाइस फिट करते हुए विशेषज्ञ। 

अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों की मदद से एक रेड हेडेड वल्चर की सफलता पूर्वक रेडियो टैगिंग की गई है। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व उत्तम कुमार शर्मा ने जानकारी देते हुए आज बताया कि योजना के तहत अध्ययन हेतु विभिन्न प्रजाति के 25 गिद्धों का रेडियो टैगिंग किया जाना है। जिसके तारतम्य में गत 6 दिसम्बर को वन परिक्षेत्र गहरीघाट के झालर घास मैदान में एक रेड हेडेड वल्चर का जी.पी.एस. टैग किया गया। इस प्रजाति का गिद्ध पन्ना टाइगर रिज़र्व में पाया जाता है। टैगिंग के उपरान्त गिद्ध को जब खुले आकाश में छोड़ा गया तो वह पलक झपकते ही ऊँची उड़ान पर निकल गया।

 

रेडियो टैगिंग के उपरांत गिद्ध को छोड़े जाने का द्रश्य। 

क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि गिद्धों के बारे में कहा जाता है कि ये बहुत लंबी-लंबी दूरियां तय करते हैं। गिद्ध एक देश से दूसरे देश की दूरियां भी तय करते हैं। रेडियो टैगिंग के कार्य से गिद्धों के रहवास, प्रवास के मार्ग एवं पन्ना लैण्डस्केप में उनकी उपस्थिति आदि की जानकारी ज्ञात हो सकेगी, जिससे भविष्य में उनके प्रबंधन में मदद मिलेगी। मालुम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों की सात प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से चार प्रजातियां पन्ना बाघ अभयारण्य की निवासी हैं जब कि शेष तीन प्रजातियां प्रवासी हैं। गिद्धों के प्रवास मार्ग हमेशा से ही वन्य जीव प्रेमियों के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। गिद्ध न केवल एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश बल्कि एक देश से दूसरे देश मौसम अनुकूलता के हिसाब से प्रवास करते हैं। इस अध्ययन के तहत  25 गिद्धों को टैग करने की योजना है, कोशिश की जा रही है कि सभी प्रजातियों को टैग किया जा सके। जी.पी.एस. टैग से विभिन्न प्रजाति के गिद्ध  कैसे रहते हैं, कैसे प्रवास करते हैं तथा रास्ते की भी जानकारी सब प्राप्त होगी। जो गिद्धों के प्रबंधन व उनके संरक्षण के लिए लाभकारी साबित होगा।

 

गिद्धों को कैप्चर करने के लिए निर्मित किया गया विशेष पिंजरा। 

गिद्धों की कैप्चरिंग के लिए डब्ल्यूआईआई द्वारा दक्षिण अफ्रीका और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस), भारत के परामर्श से जो विधि विकसित की गई है, उसके तहत घास के मैदान में 15 मीटर * 5 मीटर * 3 मीटर आकार का पिंजरा बनाया गया है। तक़रीबन कमरे के आकार वाले इस पिंजरे के भीतर ताजे मांस के टुकड़े डालते हैं, जिन्हे खाने के लिए गिद्ध पिंजरे के भीतर आ तो जाते हैं, लेकिन बाहर नहीं निकल पाते। पिंजरे में कैद हो चुके गिद्ध को पकड़कर रेडियो टैगिंग करने के उपरांत उसे पुन: खुले आकाश में उड़ान भरने के लिए छोड़ दिया जाता है। गिद्ध के शरीर में फिट किये गये छोटे उपकरण से उसके रहवास, प्रवास सहित हर गतिविधि की जानकारी मिलती रहती है।   

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