Sunday, January 10, 2021

आज हमने धान की रोटी खाया - बाबूलाल दाहिया

 


 जी हाँ धान की रोटी ! धान हमारे क्षेत्र का बहुत पुराना अनाज है जिसके अवशेष हड़प्पा मोहन जोदाड़ो आदि के खुदाई में भी मिले है। कहते है जब तक फारसी का यह लोक प्रिय शब्द ,,अनाज ,, प्रचलन में नही आया था  और गेहूं चना आदि बाहर के अन्न यहां नही आये थे तब तक सभी अन्न 'धान्य' और' लघु धन्य' ही कहलाते थे।

धान्य तो अपना धान ही था पर लघु धान्य में - कोदो, कुटकी ,सावां ,काकुन, मडुवा, बाजरा, ज्वार आदि सभी आते थे जिन्हें अब मोटे अनाज य 'माइनर मिलट् ' कहा जाता है।

 किन्तु धान का छिलका उतारने के बाद  उसका जो भाग निकलता है उसे चावल कहते है।

 "चावलम " यानी जिसे चबा लेने से शरीर मे तुरन्त बल आ जाय। क्योकि पहले चावल एक घण्टे पानी मे भिगो कर कच्चा भी नास्ते के रूप में चबाया जाता था। किन्तु बहुत लोगो को यह पता न होगा कि इस चावल को निकालते समय धान से भूसी निकल जाने के बाद भी 5 भाग बनते है जिन्हें,

1,, चावल

2,, किनकी

3,, टुटेशन

4,, मेरखुआ

5,, कना

आदि नामो से पुकारा जाता है। टुटेशन तो बारीक बाली किनकी है पर मेरखुआ पोकची अधपकी धान का मरजीवक चावल कहलाता है जो भूसी में ही चिपका रहता है।

इनमे चावल और किनकी को तो सीधे राध कर भात खाया जाता है और कना को मवेशियों को खिलाया जाता है । लेकिन "टुटेशन " छोटी किनकी और मेरखुआ को पिसा कर उसकी रोटी ही खाई जाती है। किन्तु यह बहुत कम मात्रा में निकलता है इसलिए इन  कड़कदार लेकिन गुरतल रोटियों का आनंद 10 --15 दिन से अधिक नही मिलता।

चावल और रोटी के तासीर में भी बहुत अंतर होता है। भात का तासीर जहाँ ठंडा होता है वही रोटी का तासीर गर्म।

 इसलिए रोटी अगहन से माघ तक ही खाई जाती है जिससे सीत जनित बीमारियां भी नही होती।

 किन्तु उसके बाद खाने से गर्म तासीर के कारण पेट मे जलन सी होने लगती है। पर इन रोटियों को तभी खाया जा सकता है जब उनके साथ दो हिस्सा सब्जी,  भुर्ता या चने की भाजी हो? साथ ही हरी लहसुन धनिया में पीसा हुवा नमक भी।

 लेकिन इसकी रोटी बनाने की भी तकनीक होती है । बस थोड़ी - थोड़ी मात्रा में आटे को माडते जाय और हाथ से पोते जाय। क्यो कि बेलन चौकी इसमे काम नही करते।

भइया इसीलिए तमाम बोलिया हिंदी की दादी कौंन कहे पर दादी से कम नही है ? जिनमे खेत की तैयारी से लेकर बोते नीदते काटते थाली में आई यह रोटी परोसते तक दोढाई सौ शब्द बन जाते है। और वह समूचे शब्द बोलियों के होते हैं। किसी भाषा के नही?

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