Sunday, March 14, 2021

बाघिन जिसने बचाया पन्ना के बाघों की मूल नस्ल

  •  इसीलिए टी-2 को कहते हैं पन्ना की सफलतम रानी 
  •  हवाई मार्ग से मार्च 2009 में पहुंची थी कान्हा से पन्ना 
  •  ब्रीडिंग बाघिनों में सर्वाधिक शावकों को दिया है जन्म
  •  पन्ना को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में रहा अहम योगदान 

पन्ना की सफलतम बाघिन टी-2 अपने शावकों के साथ। 
।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व जिसे वर्ष 2009 में बाघ विहीन घोषित किया गया था, वहां टी-2 इकलौती बाघिन है जिसने पन्ना के बाघों की मूल नस्ल को बचाने में कामयाब हुई है। इसलिए यह बाघिन पन्ना टाइगर रिजर्व के लिए खास महत्व रखती है। पन्ना टाइगर रिजर्व को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में भी इस बाघिन का सबसे महत्वपूर्ण और अहम योगदान रहा है। यही वजह है कि इस बाघिन को पन्ना की सफलतम रानी कहा जाता है। बाघ पुनर्स्थापना योजना के तहत वायु सेना के हेलीकॉप्टर से इस बाघिन को 9 मार्च 2009 में कान्हा से पन्ना लाया गया था। पन्ना में कामयाबी का पताका फहराने वाली इस बाघिन ने यहां अन्य दूसरी ब्रीडिंग बाघिनों की तुलना में सर्वाधिक शावकों को जन्म दिया है।  

बाघिन टी-2 के शावक अपनी मां के साथ जल विहार का आनंद लेते हुए। 

 उल्लेखनीय है कि पन्ना की सफलतम रानी बाघिन टी-2 ने अपने 7 लिटर में 21 शावकों को जन्म दिया है, यह संख्या पन्ना टाइगर रिजर्व की ब्रीडिंग बाघिनों में सर्वाधिक है। टी-2 ने पहली बार अक्टूबर 2010 में चार शावकों को जन्म दिया था, जिनमें दो नर व दो मादा शावक थे। इस बाघिन ने अपने सातवें लिटर जुलाई 19 में तीन शावकों को जन्म दिया, जिसमें एक नर व दो मादा हैं। बाघिन टी-2 के मादा शावक भी बड़े होकर वंश वृद्धि कर रहे हैं। जिनमें पी-213 ने अब तक 11 शावक, पी-222 ने भी 11 शावक, पी-234 ने 8 शावक,  पी-234 (23) ने 3 शावक तथा पी-213(32) ने 8 शावकों को जन्म दिया है। बाघिन टी-2 की मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व में चार पीढय़िां हैं। 

पन्ना टाइगर रिजर्व के अलावा इस बाघिन की वंश बेल सतना जिले के चित्रकूट, सतपुरा टाइगर रिजर्व व संजय टाइगर रिजर्व तक फैली है। वर्ष 2016 में पन्ना टाइगर रिजर्व से निकलकर चित्रकूट के जंगल को अपना नया आशियाना बनाने वाली बाघिन पी-213(22) ने वहां अब तक 11 शावकों को जन्म दे चुकी है। इस तरह से यदि बाघिन टी-2 के पूरे कुनबे को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 73 तक जा पहुंचता है। इस आंकड़े से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इकलौती एक बाघिन टी-2 ने बाघों की वंश वृद्धि में कितना अहम और महत्वपूर्ण रोल निभाया है।

खत्म नहीं हुई पन्ना के बाघों की मूल नस्ल 


पन्ना के बाघों की मूल नस्ल को बचाने वाली बाघिन टी-2 का एक अंदाज यह भी। 

इस तथ्य से अभी भी ज्यादातर लोग अनजान हैं कि पन्ना के बाघों की मूल नस्ल समाप्त नहीं हुई है। पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघ विहीन घोषित किए जाने के 4 वर्ष बाद ऐसे आनुवांशिक प्रमाण सामने आये थे जो इस ओर संकेत करते हैं कि पन्ना में बाघ पूरी तरह विलुप्त नहीं हुए थे। मालूम हो कि बाघिन टी-2 द्वारा अक्टूबर 2010 में जन्म दिए गये 4 शावकों के डीएनए टेस्ट परिणाम से पता चला था कि उनका प्रजनन पेंच टाइगर रिजर्व से लाये गये नर बाघ टी-3 द्वारा नहीं किया गया। 

जाहिर तौर पर इससे साफ संकेत मिलता है कि बाघिन टी-2 के प्रथम 4 शावकों (दो नर व दो मादा) का जन्म पन्ना के ही मूल बाघों के द्वारा हुआ था। यह परीक्षण हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेल्यूलर एण्ड  मौलिक्युलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) द्वारा वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के कहने पर किया गया था।

 इस तरह देखा जाए तो बाघ पुनर्स्थापना योजना को सफलता की नई ऊंचाई प्रदान करने तथा पन्ना टाइगर रिजर्व का गौरव बढ़ाने वाली कान्हा की बाघिन टी-2 सही अर्थों में पन्ना की रानी साबित हुई है। इस बाघिन ने न सिर्फ पन्ना के बाघों की मूल नस्ल को संरक्षित किया है बल्कि वंश वृद्धि करके पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघों से आबाद भी किया है। मौजूदा समय लगभग 16 वर्ष की हो चुकी बाघिन टी-2 की चार पीढय़िां पन्ना टाइगर रिजर्व की शोभा बढ़ा रही हैं।

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