Monday, March 8, 2021

बाघ टी-3 को क्यों कहा जाता है फादर ऑफ़ द पन्ना टाइगर रिज़र्व

  •  पन्ना में उजड़ चुके बाघों के संसार को आबाद कर बनाई वैश्विक पहचान
  •  अठारह वर्ष की उम्र का हो चुका है पन्ना का यह चहेता उम्रदराज बाघ 

पन्ना टाइगर रिज़र्व को आबाद करने वाला सबसे उम्रदराज बाघ टी-3.  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। अपनी विशिष्ट नैसर्गिक पहचान के चलते पर्यटकों व वन्यजीव प्रेमियों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय रहा कान्हा के चहेता बाघ मुन्ना का ही समकालीन एक उम्रदराज बाघ पन्ना में भी है। जिसने यहां बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद किया है। पन्ना टाइगर रिज़र्व में कई वर्षों तक एकछत्र राज करने वाले इस बाघ ने पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाकर अपनी वैश्विक पहचान भी बनाई है। पन्ना को फिर से आबाद करने में इसके योगदान को देखते हुए ही उसे "फादर ऑफ दि पन्ना" भी कहा जाता है।

उल्लेखनीय है कि कान्हा के बाघ मुन्ना ने 19 वर्ष की आयु पूरी करके अपने जीवन को अलविदा कहा है, जबकि पन्ना का बाघ टी-3 अपने जीवन के 18 वर्ष पूरे कर चुका है और अभी भी खुले जंगल में चुनौतियों के बीच स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहा है। पन्ना के इस बाघ की जीवन गाथा अत्यधिक रोचक और रोमांच से परिपूर्ण है। 

वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व से जब बाघों का नामोनिशान मिट गया था और यहां के जंगल शोक गीत में तब्दील हो चुके थे, उस समय यहां पर बाघों की दुनिया को फिर से आबाद करने के लिए टी-3 को पेंच से 7 नवंबर 2009 को पन्ना लाया गया था। 

मालूम हो कि बाघ टी-3 को पन्ना लाने से पूर्व कान्हा व बांधवगढ़ से दो बाघिन को पन्ना लाया गया था ताकि नर बाघ टी-3 के संपर्क में आकर दोनों बाघिन वंश वृद्धि कर सकें। लेकिन नर बाघ से इन बाघिनों की मुलाकात नहीं हो सकी और 27 नवंबर 2009 को यह बाघ अपने घर पेंच की तरफ कूच कर गया। कड़ाके की ठंड में पूरे 30 दिनों तक यह बाघ अनवरत यात्रा करते हुए 442 किलोमीटर की दूरी तय कर डाली। इसे 25 दिसंबर को पकड़ा गया और 26 दिसंबर को दोबारा पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल में लाकर छोड़ दिया गया।

बाघ टी-3 के 30 दिनों की यात्रा का स्मरण करते हुए तत्कालीन क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व आर. श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि वे दिन हमारे लिए बेहद चुनौतीपूर्ण और महत्व के थे। क्योंकि इसी नर बाघ पर पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना का भविष्य टिका हुआ था। 

श्री मूर्ति के मुताबिक इन 30 दिनों में इस बाघ ने हमें बाघों के जीवन, रहन-सहन, व्यवहार और आवास के संबंध में बहुत कुछ सिखाया। इस बाघ ने ही बिखरी हुई पन्ना की टीम को एकजुट किया तथा प्रबंधन को बेहतर बनाने की भी सीख दी। 

अधिकारियों व मैदानी कर्मचारियों की कड़ी मेहनत, सतत निगरानी व स्थानीय लोगों के सहयोग से वह दिन भी आ गया, जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था। नर बाघ टी-3 के संपर्क में आकर बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को चार नन्हे शावकों को जन्म देकर पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से गुलजार कर दिया। नन्हे शावकों के जन्म का यह सिलसिला अनवरत जारी है। मौजूदा समय पन्ना टाइगर रिजर्व व आसपास के जंगल में 60 से भी अधिक बाघ हैं।

जंगल में बाघ की औसत उम्र होती है 12 से 14 वर्ष

खुले जंगल में आमतौर पर बाघ की औसत उम्र अधिकतम 12 से 14 वर्ष होती है, जिसे पन्ना का यह बाघ 4 वर्ष पूर्व ही पूरी कर चुका है। यह उम्र जंगल के बाघों की औसत उम्र से बहुत ज्यादा है। खुले जंगल में चुनौतियों के बीच स्वच्छन्द रूप से विचरण करते हुये इतने उम्रदराज बाघ को देखना किसी अजूबा से कम नहीं है।

 वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने बाघ टी-3 के संबंध में जानकारी देते हुये बताया कि इसके दांत घिस गये हैं तथा यह अब कोर क्षेत्र से बाहर पेरीफेरी में रह रहा है। उम्रदराज होने के कारण शारीरिक रूप से कमजोर हो चुका यह बाघ अब कोर क्षेत्र में अपना साम्राज्य कायम रखने की स्थिति में नहीं है। फलस्वरूप अपनी ही सन्तानों से बचने के लिये यह कोर क्षेत्र को अवलिदा कह बफर क्षेत्र में मवेशियों का शिकार करके अपना जीवन गुजार रहा है।

डेढ़ वर्ष पूर्व आपसी संघर्ष में हुआ था घायल 

पन्ना का यह उम्रदराज बाघ यहां पर 7 - 8 वर्षों तक एकछत्र राज किया है। अधिक उम्र हो जाने के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व के इस किंग ने अब अपने साम्राज्य के विस्तार को कम कर सीमित इलाके में ही विचरण कर रहा है। विगत डेढ़ वर्ष पूर्व इस बुजुर्ग बाघ की पन्ना में ही जन्मे नर बाघ पी-213(31) से भिड़ंत हो गई थी, जिसमें यह घायल हो गया था। घायल होने पर बाघ टी-3 बलैया सेहा वाला इलाका छोड़कर रमपुरा के जंगल में पहुंच गया था। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि इस बुजुर्ग बाघ के दांत घिस चुके हैं तथा यह अब ज्यादातर कोर क्षेत्र से बाहर वाले इलाकों में रह रहा है। 

बुजुर्ग बाघ का निकाल दिया गया है रेडियो कॉलर 


ढाई माह पूर्व बाघ टी-3 का जब रेडियो कॉलर निकाला गया, उसी समय का चित्र।  

पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने वाले इस उम्र दराज बाघ के गले में बंधा रेडियो कॉलर अत्यधिक टाइट हो गया था, जिससे गले में घाव भी हो गये थे। कैमरा ट्रैप से इस बाघ की फोटो मिलने पर पार्क प्रबंधन को जब इस बुजुर्ग बाघ की परेशानी के बारे में पता चला तो उसका रेडियो कॉलर निकाल दिया गया। विगत ढाई माह पूर्व 18 दिसंबर 20 को वन परिक्षेत्र चंद्रनगर कोर के बीट भुसौर में टी-3 को बेहोश कर उसका रेडियो कॉलर निकाला गया तथा गले के घाव की शल्य क्रिया करके उपचार भी किया गया। तब से यह बुजुर्ग बाघ बिना रेडियो कॉलर के ही खुले जंगल में विचरण कर रहा है। वन्य जीव प्रेमी व पर्यटक जंगल में जब कभी इस बाघ को देखते हैं, तो वे खुशी से झूम उठते हैं।

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