- पन्ना की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी ने एक दशक पूर्व किया था सचेत
- यदि केन बेसिन के लोगों की जरूरतें पूरी हों तो नदी में नहीं बचेगा पानी
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। इंसान के जीवन की सबसे अहम जरूरत शुद्ध हवा और पानी है। जमीन की तरह पानी भी प्रकृति की दी हुई ऐसी सौगात है जिसे हम कृत्रिम रूप से नहीं बना सकते। सांस लेने के लिए शुद्ध हवा (ऑक्सीजन) हमें वृक्ष प्रदान करते हैं। यदि हमसे पानी और हवा को जबरन छीन लिया जाए, तो हमारी क्या हालत होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। केन बेसिन में रहने वाले लोगों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। नदी जोड़ो परियोजना के जरिए हमारे जीवन का आधार पानी और हवा दोनों हमसे छीना जा रहा है।
दीपाली रस्तोगी पूर्व कलेक्टर |
पन्ना जिले की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी ने एक दशक पूर्व ही केन-बेतवा लिंक परियोजना के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए चेताया था। उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को लिखकर यह बताया था कि यदि केन बेसिन के लोगों की पानी की बुनियादी जरूरतें पूरी की जाएं तो केन नदी में कोई अतिरिक्त पानी ही नहीं बचेगा। उन्होंने यहां तक लिखा था कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना केन बेसिन के लोगों के लिए एक त्रासदी होगी।
गौरतलब है कि जन कल्याण के लिए साहसिक निर्णय लेने वाली महिला आईएएस दीपाली रस्तोगी वर्ष 2005 से 2008 के बीच पन्ना कलेक्टर के रूप में पदस्थ रही हैं। उनके कार्यकाल में पन्ना जिले को विकास का जो स्पर्श व दिशा मिली वह अविस्मरणीय है। आपके समय पन्ना जिले ने बाढ़ की भयावह विभीषिका को भी झेला, लेकिन इनके दुस्साहसिक निर्णयों व अथक प्रयासों से कोई जनहानि नहीं हुई। पन्ना शहर में विकास की जो भी झलक दिखाई देती है, चाहे वह नवीन कलेक्ट्रेट व न्यायालय भवन हो या केंद्रीय विद्यालय व बायपास रोड उन्हीं की देन है। दीपाली रस्तोगी के समय ही चार महत्वाकांक्षी सिंचाई योजनाओं की रूपरेखा भी बनी थी और तत्कालीन तथा मौजूदा समय भी प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन सिंचाई योजनाओं का भूमि पूजन किया था।
पन्ना की पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी ने केन बेतवा परियोजना को रोकने के लिए उस समय कड़ा संघर्ष किया था। जिससे पता चलता है कि पन्ना जिला तथा यहां के लोगों के कल्याण के बारे में उनकी समझ कितनी गहरी और स्पष्ट थी। उन्होंने तथ्यों और प्रमाणों के साथ ही दिखाया था कि यदि मध्यप्रदेश 1983 के अपने जल संसाधन मास्टर प्लान को केन बेसिन में लागू करता तो बेतवा बेसिन में भेजने के लिए पानी ही नहीं बचता।
प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में एक है पन्ना
पन्ना जिले का प्रादुर्भाव वर्ष 1956 में हुआ। इस जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 7029 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें लगभग 43 प्रतिशत वन भूमि है। बुंदेलखंड अंचल का यह जिला विकास के मामले में प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े जिलों में शुमार है। विकास की विपुल संभावनाओं के बावजूद जिला बनने के बाद भी पन्ना का अपेक्षित विकास नहीं हुआ। इस जिले में एक भी बड़ा उद्योग नहीं है जो रोजी - रोजगार का जरिया बने। केवल पत्थर और हीरा की खदानें ही एकमात्र रोजगार का विकल्प हैं। लेकिन वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद ज्यादातर खदानें बंद हैं। इन परिस्थितियों में यहां जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन कृषि और कृषि से संबंधित रोजगार है, जो बिना सिंचाई के संभव नहीं है।
चार सिंचाई योजनाओं की रखी गई थी आधारशिला
पूर्व कलेक्टर दीपाली रस्तोगी के कार्यकाल में ही सिंचाई की चार महत्वाकांक्षी योजनाओं की आधारशिला रखी गई थी। उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संदेश में कहा था कि पन्ना जैसे पिछड़े जिले में जहां सिंचाई का प्रतिशत काफी कम है, चार बड़ी परियोजनाओं के निर्माण का निर्णय लिया गया है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मध्य प्रदेश सरकार इन योजनाओं को समय सीमा में मूर्त रूप देने में सफल होगी तथा पन्ना जिले के किसानों के चिर प्रतीक्षित सपनों को साकार करेगी।
यह इस जिले का दुर्भाग्य है कि किसानों के सपनों को साकार करने वाली इन चार सिंचाई योजनाओं में से सिर्फ एक योजना पूरी हो सकी है। जबकि प्रदेश में लगातार शिवराज जी की ही सरकार है। जल संसाधन विभाग पन्ना के कार्यपालन यंत्री श्री दादोरिया ने बताया कि पवई बहुउद्देशीय परियोजना पूरी हो चुकी है। जबकि मिढ़ासन डायवर्सन वृहद परियोजना व पतने बहुउद्देशीय परियोजना को बंद कर दिया गया है। भितरी मुटमुरु मध्यम परियोजना निर्माण के पहले वर्ष ही टूट कर ध्वस्त हो चुकी है, जो वर्षों से यथावत पड़ी है। उसे पूरा करना अभी तक जरूरी नहीं समझा गया, जबकि इस परियोजना में करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं।
पन्ना को त्रासदी में झोंक,पानी लेना कैसा न्याय ?
देश और प्रदेश में खुशहाली आए यह हर देशवासी चाहेगा। लेकिन किसी इलाके को बर्बाद करके दूसरी जगह खुशहाली लाना कैसे न्याय पूर्ण हो सकता है ? केन नदी के पानी पर पहला हक पन्ना जिले का है, पन्ना को इसका फायदा दिए बिना यहां का पानी दूसरी जगह ले जाना अतार्किक ही नहीं अमानवीय भी है। इससे न सिर्फ पन्ना टाइगर रिजर्व का एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा अपितु राष्ट्रीय पशु बाघ सहित न जाने कितने वन्य जीव बेघर हो जाएंगे। यदि केन-बेतवा लिंक परियोजना मूर्त रूप लेती है तो पन्ना जिले के लोग पानी के उपयोग के अपने अधिकार से हमेशा के लिए वंचित हो जाएंगे।
केन नदी के किनारे वनराज और गजराज साथ - साथ। |
पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जहां इस परियोजना को घातक बताते हुए शुरू से ही इसका विरोध करते आ रहे हैं। वहीं अब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के विरोध से यह विवादित परियोजना फिर सुर्खियों में है। पन्ना जिले के जागरूक लोगों सहित आम व खास सभी इस नदी जोड़ परियोजना का पुरजोर विरोध करते हुए इसे रोकने की मांग कर रहे हैं। विरोध करने वालों में राजमाता दिलहर कुमारी, पूर्व मंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता सुश्री कुसुम सिंह महदेले सहित अनेकों प्रतिष्ठित लोग शामिल हैं।
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