Tuesday, April 13, 2021

पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना की सफलता का क्या है राज ?

  • कैसे तय किया पन्ना टाइगर रिज़र्व ने शून्य से 70 का सफर 
  • इस चमत्कारिक सफलता से मिली पन्ना को वैश्विक पहचान


पर्यटकों के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व का प्रवेश द्वार। (फोटो - अरुण सिंह)

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व ने बाघ पुनर्स्थापना योजना की चमत्कारिक सफलता के चलते अपनी वैश्विक पहचान बनाई है। यह एक ऐसा वन क्षेत्र है जो वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो गया था, लेकिन अब यहां बाघों का उजड़ा हुआ संसार फिर से आबाद हो गया है। बीते 11 वर्षों में पन्ना ने शून्य से 70 का सफर तय किया है, जो किसी करिश्मा से कम नहीं है। विश्व स्तर पर पन्ना टाइगर रिजर्व सफलता का मानक बन चुका है। यही वजह है कि देश और दुनिया भर से वन अधिकारी व वन्यजीव प्रेमी पन्ना की कामयाबी का राज जानने तथा उसे देखने और समझने के लिए यहां आते हैं।

 उल्लेखनीय है कि सदियों से बाघों के प्रिय रहवास स्थल रहे पन्ना के जंगल वर्ष 2009 में बाघ विहीन हो गये थे। बाघों के प्राकृतिक रहवास जहां उनकी दहाड़ गूंजा करती थी, वहां सन्नाटा पसर गया था। कहते हैं कि जंगल में जब बाघ की दहाड़ गूंजती है तो प्रकृति भी अंगड़ाई लेकर जीवंत हो उठती है। लेकिन वनराज की विदाई होने के साथ ही पन्ना के जंगल में पक्षियों के गीत भी शोक गीत में तब्दील हो गये थे। लेकिन बाघ पुनर्स्थापना योजना की कामयाबी ने पन्ना के खोए हुए गौरव को वापस लौटा दिया है। अब यहां का जंगल वनराज की दहाड़ और नन्हे शावकों की अठखेलियों से गुलजार है।

बाघिन टी-2 के शावक अपनी मां के साथ जलविहार करते हुए। (फोटो - पीटीआर ऑफिस) 

 पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि मौजूदा समय पन्ना के जंगलों में 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। यहां 13 प्रजनन क्षमता वाली बाघिनें हैं, जो शावकों को जन्म देकर बाघों की वंश वृद्धि में अहम भूमिका निभा रही हैं। बीते 11 वर्षों में यहां लगभग 110 शावकों का जन्म हुआ है। श्री शर्मा ने बताया कि अभी हाल ही में बाघिन टी-6 ने चार व बाघिन पी-151 ने दो शावकों को जन्म दिया है। बीते चार माह के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व में 15 शावकों का जन्म हुआ है।

पुनर्स्थापना योजना के तहत बांधवगढ़ से आई थी पहली बाघिन

 बाघ विहीन होने के बाद पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर बाघों से आबाद करने के लिए वर्ष 2009 में ही बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू कर दी गई थी। योजना के तहत 4 मार्च 2009 को बांधवगढ़ से पहली बाघिन टी-1 को पन्ना लाया गया। इसके 5 दिन बाद ही 9 मार्च को वायुसेना के हेलीकॉप्टर से दूसरी बाघिन टी-2 को कान्हा टाइगर रिजर्व से पन्ना लाया गया। इन दो युवा बाघिनों के पन्ना पहुंचने के कुछ दिनों बाद पता चला कि यहां एक भी नर बाघ नहीं है। फलस्वरुप बाघों के आबाद करने की योजना पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया। पन्ना के जंगल में दोनों युवा बाघिनें जीवनसाथी न मिल पाने के कारण कई महीने तन्हाई में ही जीवन गुजारने को मजबूर हो गईं।

बाघ टी-3 को बेहोश कर उसके घाव का उपचार करते चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता व रेस्क्यू टीम।  (फोटो - पीटीआर ऑफिस)  
                                            
पन्ना के जंगलों का चप्पा-चप्पा छानने के बाद जब पार्क प्रबंधन को यहां नर बाघ की मौजूदगी के कोई चिन्ह नहीं मिले, तब अन्यत्र कहीं से एक नर बाघ को पन्ना लाने की योजना बनी। योजना के तहत पेंच टाइगर रिजर्व से युवा बाघ टी-3 को सड़क मार्ग से 6 नवंबर 2009 को पन्ना लाया गया। नये और अजनबीमाहौल में यह बाघ कुछ दिनों तक यहां रहा, लेकिन जब उसे यहां की आबोहवा रास नहीं आई तो वह अपने पुराने घर की ओर निकल पड़ा। पन्ना टाइगर  रिजर्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति के नेतृत्व में अधिकारियों व कर्मचारियों की टीम निरंतर इस बाघ का पीछा करती रही और 25 दिसंबर 2009 को इसे दमोह जिले के तेजगढ़ के जंगल में बेहोश कर फिर पन्ना लाया गया। यह नर बाघ पन्ना के जंगल में रुके और बाघिनों के साथ जोड़ा बनाकर वंश वृद्धि में योगदान दे, इसके लिए अनूठा तरीका खोजा गया, जो कामयाब रहा। बाघिन टी-1 से इस बाघ की मुलाकात हुई और बाघ पुनर्स्थापना के सफलता की कहानी यहीं से शुरू हुई।

 बाघिन टी-1 ने पहली बार जन्में चार शावक


बाघिन टी-1 अपने नन्हे शावकों को फीडिंग कराते हुए। (फोटो - पीटीआर ऑफिस) 

पन्ना की पटरानी के नाम से प्रसिद्ध बांधवगढ़ की बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल 2010 को पन्ना टाइगर रिजर्व के धुंधुआ सेहा में जब चार नन्हे शावकों को जन्म दिया, तो वन अमला व अधिकारियों सहित पन्ना के नागरिक खुशी से झूम उठे। इन नन्हे मेहमानों के आने से सूना पड़ा पन्ना का जंगल गुलजार हो गया। कान्हा से पन्ना आई बाघिन टी-2 जिसे सफलतम रानी कहा जाता है, इस बाघिन ने पहली बार अक्टूबर 2010 में 4 शावकों को जन्म दिया था। बाघों की वंश वृद्धि में इस बाघिन का अतुलनीय योगदान रहा है। पन्ना में इस बाघिन ने अब तक अपने 7 लिटर में 21 शावकों को जन्म दिया है।

पन्ना बाघ पुनर्स्थापना को कैसे मिली यह सफलता ?

0 पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघ विहीन होने पर बिना देरी किये बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू कर दी गई, जिससे टाइगर हैबिटेट (बाघों का रहवास) नष्ट नहीं हो पाया। इससे बाघों को यहां फिर से आबाद करने में मदद मिली।

0 पन्ना के जंगल से बाघ क्यों खत्म हुए, इस अहम मसले पर गहन विचार मंथन व खोजबीन हुई। इससे जो निष्कर्ष निकला, उससे सबक लेकर उन कारणों को दूर किया गया। पोचिंग की घटनाओं पर भी प्रभावी अंकुश लगाया गया।

0 बीमारी से बाघों की मौत न हो इसलिए बाघों में पाई जाने वाली केनाइन डिस्टेंपर नामक जानलेवा बीमारी की रोकथाम हेतु टाइगर जोन वाले ग्रामों के लगभग 6 हजार कुत्तों का टीकाकरण किया गया।

0 आपसी संघर्ष में बाघों की असमय मौत को रोकने के समुचित प्रबंध किये गये। इन फाइटिंग में घायल बाघ- बाघिनों का समय पर तुरंत उपचार किया गया।

0 मानव-वन्य प्राणी द्वंद को रोकने रेस्क्यू टीम को सुदृढ़ किया गया।

0 बाघों का रेडियो कॉलर करके उनकी 24 घंटे निगरानी की गई।

0 जनसमर्थन से बाघ संरक्षण का स्लोगन देकर लोकल कम्युनिटी को संरक्षण से जोड़ा गया।

0 क्षेत्र संचालक से लेकर वन महकमे के चौकीदार तक ने टीम भावना से एकजुट होकर काम किया। स्थानीय लोगों का भी समर्थन व सहयोग लिया गया, जिससे यह चमत्कारिक सफलता मिल सकी।

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