Wednesday, April 21, 2021

बुंदेलखंड के पन्ना शहर में रही है जल वितरण की अनूठी व्यवस्था

  •   जल सुरंगों के जरिए कुओं में पहुंचता था झीलनुमा तालाब का पानी 
  •   अब हमने बिसरा दिया है, जल संरक्षण और संवर्धन की समृद्ध परंपरा


पहाड़ की तलहटी में बना पन्ना शहर के प्राचीन धर्मसागर तालाब का द्रश्य। फोटो - अरुण सिंह 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। सदियों से बुंदेलखंड और सूखा एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। अल्प वर्षा के चलते इस अंचल के लोगों को हर पांच साल में दो बार सूखे की विभीषिका का सामना करना पड़ता था। लेकिन अतीत में यहां के बाशिंदों ने कम पानी में भी जीवन जीने का तरीका ढूंढ लिया था। उस दौर में बुंदेलखंड क्षेत्र के लोगों ने जल संरक्षण और संवर्धन की अनूठी परंपराओं को अपनाकर पानी के संकट का मुकाबला किया। बारिश के पानी का संचय कर उसके वितरण की जो व्यवस्था ढाई सौ वर्ष पूर्व बुंदेला शासकों ने की थी, वह आज भी एक मिसाल है।

 उल्लेखनीय है कि जंगल और पहाडियों से घिरे मंदिरों के शहर पन्ना में चारों तरफ राजाशाही जमाने में कई तालाबों का निर्माण कराया गया था। तब से लेकर अब तक पन्ना शहर की आबादी कई गुना बढ़ चुकी है, इसके बावजूद सैकड़ों साल पुराने तालाब आज भी पन्ना शहर के जीवन का आधार बने हुए हैं। शहर के प्राचीन तीन तालाब धर्म सागर, लोकपाल सागर व निरपत सागर से ही मौजूदा समय भी शहरवासियों की प्यास बुझ रही है। शहर के निकट मदारटुंगा पहाड़ी की तलहटी में बना धर्मसागर तालाब पन्ना की शान है। इस झीलनुमा सुंदर तालाब का कंचन जल अतीत में भूमिगत जल सुरंगों के जरिए शहर के सभी कुंओं में पहुंचता रहा है। जल वितरण की इस अनोखी व्यवस्था के कारण गर्मी के दिनों में भी पन्ना शहर के पुराने कुएं पानी से लबरेज रहते हैं।

 गौरतलब है कि बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना शहर की भौगोलिक स्थिति काफी जटिल है। पहाड़ों से घिरे इस शहर के आसपास गहरे सेहा हैं, बारिश का पानी बहकर इन्हीं सेहों में समा जाता है। पठारी इलाका होने के कारण चट्टानों के सैकड़ों फीट नीचे भी पानी नहीं मिलता। इन परिस्थितियों में पेयजल संकट से निपटने के लिए तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा जगह-जगह जल कुंडों, कुओं, बावडियों और तालाबों का निर्माण कराया गया।

 

राजमंदिर पैलेस पन्ना के अन्दर स्थित तालाब, जो अब दयनीय स्थिति में है।  

बताया जाता है कि महाराजा छत्रसाल के पुत्र हृदयशाह के शासन काल तक पन्ना में पेयजल संकट बरकरार रहा। लेकिन हृदयशाह के बड़े पुत्र महाराजा सभा सिंह ने 1739 में जब पन्ना रियासत की बागडोर संभाली, तब उन्होंने रियासत की जनता को जल संकट से निजात दिलाने के लिए सोच - विचार शुरू किया। महाराजा सभा सिंह ने जब पन्ना रियासत की कमान संभाली, उसके कुछ साल बाद ही यहां भीषण अकाल पड़ गया। रियासत की जनता को इस आपदा से उबारने के लिए उन्होंने राहत कार्य शुरू कराया। अकाल के समय शुरू हुए राहत कार्य से ही पन्ना शहर के निकट मदारटुंगा पहाड़ी की तलहटी में धर्मसागर तालाब का निर्माण हुआ। 

"अतीत गौरव पन्ना" पुस्तक के लेखक शंकर सिंह ने रियासत कालीन दस्तावेजों का अध्ययन करने के उपरांत यह लिखा है कि धर्मसागर तालाब का निर्माण महाराजा सभा सिंह द्वारा सन 1745 से 1752 के बीच कराया गया।मदारटुंगा पहाड़ी की तलहटी में जहां धर्मसागर तालाब बना है, वहां पहले से ही एक प्राकृतिक जलस्रोत था, जिसे धर्मकुंड के नाम से जाना जाता था। इस कुंड के ऊपर महाराजा सभा सिंह ने शिव मंदिर का निर्माण कराया और इस मंदिर के चारों तरफ खुदाई का कार्य शुरू हुआ। इस तालाब के ठीक मध्य में निर्मित शिव मंदिर यहां आज भी अतीत की गौरव गाथा को अपने जेहन में समेटे विद्यमान है। 

पन्ना की जल सुरंगे आज भी कौतूहल का विषय 

जल वितरण की अनूठी मिसाल रही पन्ना शहर की भूमिगत जल सुरंगे आज भी कुतूहल का विषय बनी हुई हैं। शहर के प्रमुख सभी कुओं तथा राज मंदिर पैलेस में स्थित तालाब तक इन जल सुरंगों का जाल इस तकनीक से फैलाया गया था कि धर्मसागर तालाब का पानी बिना किसी बाधा के सुगमता पूर्वक पहुंच सके। सदियों पुरानी इन प्राचीन जल सुरंगों की देखरेख व प्रबंधन न होने से इनका उपयोग अब भले ही बंद हो गया है, लेकिन अभी भी शहर के कई प्राचीन कुओं में भूमिगत जल सुरंग के जरिए पानी पहुंचता है। 

पन्ना की पहाड़कोठी स्थित प्राचीन बीहर का नजारा।

शहर में गांधी चौक से कलेक्ट्रेट मार्ग के बीच सड़क किनारे एक स्थान पर निरंतर पानी निकलता रहता है। वहां पर कुछ वर्ष पूर्व पक्का गड्ढा नुमा एक संरचना बना दिया गया है, जो हमेशा लबालब भरा रहता है। यहां से चाहे जितना पानी निकाला जाए कम नहीं होता। जानकार बताते हैं कि इस जगह पर जल सुरंग क्षतिग्रस्त हुई होगी, जिससे पानी निकल रहा है। कुल मिलाकर यहां की जल सुरंग व निर्माण की तकनीक हर किसी के जेहन में कौतूहल पैदा करती है।

 अब अतिक्रमण का शिकार हो रहे प्राचीन तालाब 


शहर के निकट स्थित राजशाही ज़माने का विशालकाय लोकपाल सागर तालाब। 

प्रशासनिक उपेक्षा और अनदेखी के चलते पन्ना शहर के तीनों जीवनदायी तालाब अब अतिक्रमण का शिकार हो चुके हैं। पन्ना - पहाड़ीखेरा मार्ग पर शहर के निकट ही 492 एकड़ क्षेत्र में निर्मित लोकपाल सागर तालाब भी अतिक्रमण की चपेट में आ चुका है। इस तालाब के निर्माण हेतु तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा लोकपाल सिंह ने इस स्थल का चयन इस तरह किया था कि अल्प वर्षा में भी यह तालाब लबालब भर जाता था। इस तालाब के पानी से शहरवासियों की जहां प्यास बुझती थी, वहीं खेतों की सिंचाई के लिए क्षेत्र के किसानों को भी आवश्यकता के अनुरूप पानी मिल जाता था।

 लेकिन तालाब के कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण हो जाने से अच्छी बारिश होने पर भी तालाब नहीं भर पाता, जिससे सिंचाई के लिए किसानों को अब पूर्व की तरह पानी नहीं मिल पा रहा है। सतत उपेक्षा और अनदेखी के कारण अतिक्रमण का जाल फैलता ही जा रहा है, जिससे शहर के इन जीवनदायी तालाबों का वजूद संकट में है।

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