Thursday, May 6, 2021

ब्रम्हाण्ड की गतिविधियों से जुड़े हैं महामारियों के तार!

 


कोरोना की दूसरी वेव ने भारत समेत पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। यहां तक कि जिन्हें वैक्सीन लग गई हैं, उनमें से भी कुछ लोगों को यह वायरस संक्रमित कर दे रहा है। सब स्तब्ध हैं। सच तो यह है कि कोरोना को अभी तक डॉक्टर्स समझ ही नहीं पाए हैं कि वास्तव में इस वायरस का मूल चरित्र कैसा है। ऐसे में, जब पूरी दुनिया के वैज्ञानिक व डॉक्टर्स परेशान हों, तब यह बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम महामारियों के इतिहास पर नज़र डालें। और महामारियों को समझने का प्रयास करें। चूंकि अपने अध्ययन के दौरान मैंने जो निष्कर्ष निकाला उसे समझने के लिए सबसे ज़रूरी है कि पहले हम अपने ब्रम्हांड की संरचना को भौतिकी नज़रिये से समझ लें। उसके बाद चीज़ें समझने में आसान हो जाएंगी। इसलिए सबसे पहले हम संक्षेप में अपने ब्रम्हांड की संरचना को समझते हैं।

दरअसल हमारे ब्रम्हांड में कई गैलेक्सीज़ हैं। अभी तक 10^11 (यानी 100000000000) गैलेक्सीज की ही खोज हो पाई है। उसमें हमारी गैलेक्सी भी एक है। इसका नाम 'मिल्की वे' है। हिंदी में इसे "आकाश गंगा" कहते हैं। हमारी इस गैलेक्सी (आकाश गंगा) में भी अभी तक 10^11 तारों की ही खोज हो सकी है। यानी, अभी भी अनगिनत तारे खोजे जाने बाकी हैं। हमारा सूर्य भी एक तारा ही है। सूर्य हमारी पृथ्वी से लगभग 13 लाख गुना बड़ा है। इसे ऐसे समझें कि सूर्य को अगर हम एक फुटबॉल मान लें तो, सूर्य में पृथ्वी जैसी 13 लाख छोटी गोलियां भरी जा सकती हैं। सूर्य से भी लाखों-करोड़ों गुने बड़े तारे हमारी गैलेक्सी में ही हैं। ब्रम्हांड में तो और भी न जाने कितने बड़े-बड़े तारे होंगे। ब्रम्हांड की तो बात ही छोड़ दीजिए।

इसी तरह से हमारा 'सोलर सिस्टम' (सौरमंडल) सूर्य के चारों ओर चक्कर काट रहा है। इसमें नौ ग्रह (8 ग्रह और एक छूद्र ग्रह) शामिल हैं। ये सभी ग्रह सूर्य के चारों और चक्कर काट रहे हैं। सभी ग्रह अलग-अलग त्रिज्या के वृत्त में थ्री-डायमेंशनल स्पेस में चक्कर काट रहे हैं। इसीलिए ये कभी आपस में टकराते नहीं हैं। इसी तरह से, हमारा सूर्य भी किसी बड़े सिस्टम के चारों ओर (अपने सभी नौ पिंडों को लेकर) चक्कर काट रहा है। इसी तरह से वह बड़ा निकाय भी किसी दूसरे बड़े पिंड के चारो ओर चक्कर काट रहा है।

ब्रम्हांड में इस तरह के कई सूर्य हैं। लाखों-करोड़ों-अरबों सूर्य हैं। वो सब भी इसी प्रक्रिया में गतिमान हैं। यानी पहला, दूसरे के चारों और चक्कर काट रहा है। फिर दूसरा, पहले को साथ लेकर किसी तीसरे के चारों और चक्कर काट रहा है। फिर तीसरा, पहले और दूसरे को साथ लेकर किसी चौथे के चारों और चक्कर काट रहा है। इस तरह से यह क्रम चलता ही जा रहा है, चलता ही जा रहा है, चलता ही जा रहा हैज्। फिजिक्स की भाषा में, इसके पीछे गुरुत्वाकर्षण बल की ताक़त है। इस तरह से हमारा पूरा ब्रम्हांड भी एक अन्य ब्रम्हांड के चारों ओर चक्कर काट रहा है। यहीं से मल्टीवर्स या बहुब्रम्हांड यानी एक से अधिक ब्रम्हांडों की परिकल्पना का अंकुरण होता है। और एक-दूसरे के चारों ओर चक्कर लगाने के पीछे जो ऊर्जा है, वह दो पिंडों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल की वज़ह से है।

दरअसल, हर एक कण, दूसरे कण को प्रभावित करता है। भौतिकी की भाषा में, हर दो पदार्थों के बीच गुरुत्वाकर्षण बल, चुम्बकीय बल, विद्युतचुम्बकीय तरंगों समेत तमाम बल कार्य करते हैं। जिसकी वज़ह से हर कण, दूसरे कण को प्रभावित करता है। यहां तक कि धरती पर गिरा हुआ एक सूखा तिनका भी सूर्य और ब्रम्हांड के कण-कण को प्रभावित कर रहा है। वो अलग बात है कि उसका प्रभाव बेहद कम है। इतना कम कि हम नग्न आखों से उसका असर देख नहीं पाते। यानी, इस ब्रम्हांड में सब ऊर्जा का खेल है। सब ऊर्जा संतुलन का खेल है। यहां कुछ भी मुक्त नहीं है। सब एक-दूसरे बंधे हैं। सूर्य को हटा दीजिए, सारे ग्रहों का संतुलन तत्क्षण बिगड़ जाएगा। पृथ्वी का वज़ूद समाप्त हो जाएगा। पृथ्वी को हटा दीजिए, चांद का वज़ूद समाप्त हो जाएगा। इसी तरह से ब्रम्हांड, गैलेक्सी, सौरमंडल, सूर्य, पृथ्वी, हम, आप, वृक्ष, पशु, पक्षी और हर वो चीज जिसे आप सोच सकते हैं, कुछ भी यहां मुक्त नहीं है। सब किसी मशीन के पुर्ज़ों की तरह अपने-अपने फंक्शन में लगे हैं। पूरा ब्रम्हांड संतुलन के सिद्धांत पर टिका है। यहां तक कि सूर्य को पिता, धरती को माता और बाकी सबको धरती की संतान कहे जाने के पीछे भी अपना तर्क है। उसकी भी वज़ह सक्षेप में जान लेते हैं। जैसा की हम जानते हैं, सूर्य की वज़ह से धूप होता है। धूप की वज़ह से गर्मी बढ़ती है। गर्मी की वज़ह से वाष्पीकरण की प्रक्रिया होती है। वाष्पीकरण की प्रक्रिया की वज़ह से बादल बनते हैं। बादलों की वज़ह से बारिश होती है। बारिश की वज़ह से धरती पर जलचक्र संतुलन बना है। और इसी वज़ह से धरती हरी-भरी है। धरती पर प्रजनन की प्रक्रिया सतत चल रही है। अगर सूर्य धीरे-धीरे बुझ जाए (जो होना तय है), तो धरती सूख जाएगी। धरती मृत हो जाएगी।

कहते हैं, ब्रम्हांड में अभी भी लाखों-करोड़ों सूर्य हैं। ब्रम्हांड में इससे पहले भी लाखों-करोड़ों सूर्य थे। वो धीरे-धीरे बुझ गये। वो पृथ्वियां भी मर गईं। सूख गईं। उनपर जीवन समाप्त हो गये। आज वो सभी लाखों-करोड़ों अज्ञात पृथ्वियां सूखी मिट्टी और खनिज का बड़ा सा गोला मात्र बनकर ब्रम्हांड में तैर रही हैं। उनका कोई इतिहास भी नहीं है। जब उनपर कुछ बचा ही नहीं तो इतिहास बताएगा कौन! इतिहास लिखेगा कौन। यही गति इस धरती का भी होना तय है। लेकिन अभी नहीं, कुछ लाख वर्षों बाद। इस तरह से इस ब्रम्हांड में कुछ भी फ्री नहीं है। कुछ भी निरपेक्ष नहीं है। कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं। यहां तक कि हमारे-आपके विचार तक निरपेक्ष नहीं हैं। आप अपने विचारों का विश्लेषण करके देखिए। आप पाएंगे, आपके विचारों तक पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है। आप कब, कहां, किस जगह, क्या सोचेंगे, वो वाह्य व आंतरिक तमाम परिस्थितियों पर निर्भर करता है। आप अपना जीवन पथ ही मुड़कर देख लीजिए। आप पाएंगे, आज आप जो कुछ भी हैं, वहां आपको पहुंचाने में समय के बहाव और घटनाओं की स्टेयरिंग ने आपको वहां तक पहुंचाया है। आप तो बस किसी लिखी-लिखाई स्क्रिप्ट के अभिनेता मात्र बनकर रह गये।

कुल मिलाकर, इस ब्रम्हांड में कुछ भी मुक्त नहीं है। कुछ भी। एक तिनका भी सूर्य को प्रभावित करता है। सूर्य भी तिनके-तिनके को प्रभावित करता है। यहां तक कि सूर्य दिन में दो-दो बार समुंदर को उठा-उठाकर पटक देता है, जिसे हम ज्वार व भाटा कहते हैं। हम देखते ही रह जाते हैं। सोचिए, इतने अथाह समुंदर तक को जो सूरज प्रतिदिन दो बार उठाकर पटक देता है, आपको क्या लगता है, वह हमें-आपको प्रभावित नहीं करता है!

अब आते हैं, कुछ रोचक तथ्यों पर...

सूर्य पर हर ग्यारह वर्षों पर सोलर तूफान आते हैं। धब्बे बनते हैं। यह घटना जब-जब होती है, तब-तब धरती पर उथल-पुथल मचती है। इसी तरह से सूर्य पर हर 90 वर्षों के अंतराल पर बड़े-बड़े विस्फोटक गुबार बनते हैं। धब्बे बनते हैं। गैसों के गुब्बारे बनते हैं। फिर फटते हैं। महाविस्फोट होते हैं। सूर्य के अणुओं और ऊर्जा का पोलराइजेशन (ध्रुवीकरण) होता है। उपर्युक्त दोनों ही स्थितियों में हमारे सौर मंडल में ऊर्जा संतुलन बिगड़ता है। उथल-पुथल मचता है। पूरी धरती पर भौतिक परिस्थितियों के अलावा व्यक्ति विशेष की मानसिक स्थिति तक पर गहरा असर पड़ता है।

इन दोनों में से सबसे ख़तरनाक असर सूर्य पर 90 वर्षों में होने वाली घटनाएं डालती हैं। इस 90 वर्ष के पूरे होने के वर्षों में धरती पर महामारियां फैल सकती हैं। अकाल पड़ सकते हैं। एक के बाद एक दुर्घटनाएं हो सकती हैं। धरती भूकंपों से भर जाती है। विश्वयुद्ध हो सकते हैं। धरती पर आत्महत्याएं बढ़ती हैं। लोगों की मति मारी जाती है। धरती पर ना-ना प्रकार से त्रासदियां ही त्रासदियां आती हैं। अगर आप देश-दुनिया से अपडेट रहते हैं, तो आप इस समय उपर्युक्त घटनाओं के उदाहरणों से भरे पड़े होंगे। पिछले एक वर्ष से धरती पर कोरोना, निसर्ग, बेमौसम ओलावृष्टि, बर्फबारी, गैस लीक़, ऑयल प्लांट में आग, यूरोप के एक वित्तमंत्री का आत्महत्या कर लेना, एक के बाद लगातार भूकंप, टिड्डी दलों का हमला, कई देशों में जलवायु आपातकाल इत्यादि सब अकारण ही नहीं हो रहे हैं। इसके पीछे वज़ह है। आख़िर, इससे पहले आपने एकसाथ इतनी त्रासदियों को कभी देखा??? नहीं ना???

आज से 100 साल के आसपास पीछे जाने पर पता चलता है कि 1918 तक धरती दूसरे विश्वयुद्ध से जूझ रही थी। विश्वयुद्ध के बाद शीतयुद्ध का दौर शुरू हो गया। पूरी दुनिया की सांसे अटकी थी। अब थोड़ा और पीछे चलते हैं। आज से क्रमश: 200 व 300 साल पहले (1818 व 1718 में) भी भयावह महामारियां फैली थीं। ओशो तो यहां तक कहते हैं कि इन वर्षों में पैदा होने वाले बच्चे (चाहे वो किसी भी जीव के हों) औसत रूप से कम प्रतिभाशाली होंगे। क्योंकि ये एक तरह से सूर्य के बूढ़ा होने का वर्ष है। इन वर्षों में धरती पर ऊर्जा कम होती है। धरती अलसायी हुई, सुस्त होती है। सूरज थका हुआ सा होता है। इसके बाद सूरज फिर उभरना शुरू करता है। 45 वर्षों बाद सूरज अपनी फिर अपनी जवानी पर होता है। उस समय पूरी धरती (पूरा सौर मंडल) ऊर्जा से लबरेज़ होती है। उस समय धरती पर महापुरुषों के जन्म की संभावनाएं अधिकतम होती हैं।

इसलिए पृथ्वी पर जो त्राहिमाम का दौर चल रहा है, यह भी अकारण नहीं है। बस ज़रूरत है इनपर शोध किये जाने की। सच तो यह है कि इस विषय पर आधुनिक विज्ञान द्वारा अभी तक उतना शोध किया ही नहीं गया, जितनी इसे ज़रूरत थी। अगर हम पिछले हजारों वर्षों में अकाल, युद्ध, विश्वयुद्ध, महामारियों समेत पृथ्वी पर होने वाले उथल-पुथल का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करें, उन्हें समझें, अस्तित्व के नियमों व प्रकृति के स्वभावों को पढ़ें और उसका पूर्वानुमान लगाकर समय पर सावधान हो जाएं, व्यावसायिक हितों में अंधे होकर पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं, तो धरती पर होने वाले जान-माल के भीषण व तकलीफ़देह नुकसान से बचा जा सकता है।

@अजय सिंह 

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