हिमाचल प्रदेश की सांगला घाटी जाने के लिए रिकांगपिओ पहुंचा तो पता नहीं क्यों सांस फूलने लगी। यह अनहोनी बात थी क्योंकि मुझे सांस फूलने या फेफड़ों की कोई बीमारी नहीं है।
अगले दिन मुझे सांगला घाटी जाने के लिए रिकांगपिओ के बस अड्डे से बस पकडऩी थी। बस अड्डे तक पहुंचने के लिए कुछ चढ़ाई चढऩा पड़ती थी।
पीठ पर भारी थैला लादकर होटल के बाहर आया तो लगा कि शायद चढ़ाई न चढऩे पाऊंगा । सामने दो तीन पहाड़ी मजदूर मौजूद थे।
वे मुझे देखते ही समझ गए कि मुझे क्या चाहिए । मेरा बैग लेने के लिए दो मजदूरों मैं थोड़ी छीना झपटी हो गई । आखिरकार एक ने बैग ले लिया मैं बस अड्डे की तरफ जाने वाली चढ़ाई चढ़ने लगा ।
थोड़ी देर में मैंने देखा कि वह मजदूर भी पीछे-पीछे चला रहा है जिसको बैग नहीं मिल पाया था। मेरी समझ में कुछ देर बाद आया कि वह मेरे पीछे-पीछे क्यों आ रहा था। उसे लग रहा था कि मैं चढ़ाई नहीं चढ़ पाऊंगा और जब पस्त पड़ जाऊंगा तो वह मुझे अपनी पीठ पर उठा लेगा। उसे भी भाड़ा मिल जाएगा।
चढ़ाई चढ़ते हुए जब मेरी सांस ज्यादा फूलने लगती थी तब वह इशारा करता था कि मैं उसकी पीठ पर बैठ सकता हूं और मैं उसे इशारे से मना कर देता था। कुछ देर बाद हम दोनों में यह प्रतियोगिता - सी शुरू हो गई। वह चाहता था कि मैं इतना थक जाऊंगा कि उसकी पीठ पर बैठने के लिए मजबूर हो जाऊं और मैं चाहता था कि इसकी नौबत न आए ।
मैं कोशिश करके किसी तरह बस अड्डे पहुंच गया। जिस मजदूर ने मेरा बैग उठाया था उसे तो मैंने पैसे दिए ही इस मजदूर को भी कुछ पैसे दिए जो मेरे साथ इमरजेंसी सेवा के लिए आया था। उसके चेहरे पर आशा के विपरीत कुछ मिल जाने की खुशी थी जिसे देखना मुझे इतना अच्छा लगा और मैं इतना खुश हुआ कि उतनी खुशी पाने के लिए पता नहीं कितने पापड़ बेलने पड़ते।
सांगला घाटी में छुटकुल नाम का एक बहुत सुंदर 'हेरीटेज' गांव है। उसके आगे दो तीन और छोटे गांव हैं। अंतिम गांव में एक ढाबा है जिस पर लिखा है "हिंदुस्तान का अखरी ढाबा"।
इन्हीं गांवों में मुझे एक बूढ़ी औरत दिखाई दी थी जो मंदिर के सामने धूप खाने के लिए अकेली बैठी थी। उस औरत की उम्र का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल था । मैंने आसपास के लोगों से उसके बारे में पूछा तो बताया गया कि उसकी उम्र 100 साल से ज्यादा है और वह सिर्फ धूप खाती है और पानी पीती है।
@असगर वजाहत
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